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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे २१६ काव्वोति एसो एदस्स सुत्तस्स समुदायत्थो । * एवं माण- मायासंजलणाणं । [ वेदगो ९ ८६. सुगममेदमप्पणासुतं । णकरि कोध-माणाणमुदएण खवगसेटिं चढिदस्स चरिमसमयमाणवेदगस्स माणसंजलणविसय मुकस्ससामित्तं कायव्वं । कोह- माण- मायाणमुद्रण सेढिमारूढस्स चरिमसमयमायावेदगस्स मायासंजलणपदेसुदीरणाविसय मुक्कस्ससामित्तं होदि ति एसो विसेसो एत्थ दट्ठव्वो । * लोहसंजलणस्स उक्कस्सिया पदेस दीरणा कस्स ? ९८७. सुगममेदं पुच्छावकं । * खवगस्स समयाहियावलियचरिमसमयसकस्सायस्स । $ ८८. जो खवगो अण्णदरकम्मंसियलक्खणेणागदो अण्णदरवेद-संलणाणमुदण सेढिमारुहिय जहाकमम पुव्वाणियट्टिकरणगुणट्ठाणाणि बोलिय सुहुमसांपराइयो हो तत्थ समयाहियावलियस कसायभावेणवट्ठिदो तक्कालोदीरिजमाणासंखेजसमयपद्धे घेण पयदुकस्ससामित्तसंबंधो कायव्वो, हेडिमासेसपदेसुदीरणाहिंतो एत्थतणपदेसुदीरणाए गोपुच्छामेंसे उदीर्यमाण असंख्यात समयप्रबद्धोंको ग्रहण कर प्रकृत स्वामित्वका सम्बन्ध चाहिए, यह इस सूत्र का समुच्चयरूप अर्थ है । * इसी प्रकार मानसंज्वलन और मायासंज्वलनकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका स्वामित्व जानना चाहिए । $ ८६. यह अर्पणासूत्र सुगम है । इतनी विशेषता है कि क्रोध और मानके उदयसे क्षपकश्रेणि पर चढ़े हुए अन्तिम समयवर्ती मानवेदकके मानसंज्वलन सम्बन्धी उत्कृष्ट स्वामित्व करना चाहिए । तथा क्रोध, मान और माया संज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणि पर चढ़े हुए अन्तिम समयवर्ती मायावेदकके मायासंज्वलनसम्बन्धी प्रदेश उदीरणाविषयक उत्कृष्ट स्वामित्व होता है, इस प्रकार यह विशेष यहाँ पर जानना चाहिए । * लोभसंज्वलनकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा किसके होती है । $ ८७. यह पृच्छावाक्य सुगम है । * जो एक समय अधिक एक आवलि कालके अन्तिम समय तक सकषायभावसे. अवस्थित है उस क्षपकके होती है । $ ८८. अन्यतर कर्मांशिक लक्षणसे आया हुआ जो क्षपक अन्यतर वेद और अन्यतर संज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणि पर आरोहण कर, क्रमसे अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण गुणस्थानोंको बिताकर तथा सूक्ष्मसाम्परायिक होकर जो एक समय अधिक एक आवलि काळ तक सकषायभावसे अवस्थित है उसके उस कालमें उदीर्यमाण असंख्यात समयप्रबद्धोंकों ग्रहण कर प्रकृत उकृष्ट स्वामित्वका सम्बन्ध करना चाहिए, क्योंकि नीचेकों समस्त प्रदेश १. आ०प्रतौ होदि एसो इति पाठः ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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