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गा० ६२] उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए सादि आदि अणियोगद्दाराणि २०९
६७. सव्वुदीर० णोसव्वुदीर० उक्कस्सउदीर० अणुक्क० उदीर० जहण्णुदी० अजहण्णुदी० अणुभागुदीरणाए भंगो । .
६८. सादि०-अणादि०-धुव-अद्भुवाणु० दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ० उक्क० जह० अजह० किं सादि०४१ सादि० अधुवा । अणुक्क० सादि० अणादि० धुवा अधुवा वा । सेसपयडी० उक्क० अणुक्क० जह० अजह. सादि० अधुवा । चदुगदीसु उक० अणुक्क० जह० अजह. सव्वपयडि० सादि० अधुवा । एवं जाव० ।
* तत्थ सामित्त। उदय-उदीरणा योग्य हैं वहाँ उनकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा जाननी चाहिए यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
६७. सर्व उदीरणा, नोसर्व उदीरणा, उत्कृष्ट उदीरणा, अनुत्कृष्ट उदीरणा, जघन्य उदीरणा और अजघन्य उदीरणाका भंग अनुभागउदीरणाके समान जानना चाहिए ।
६८. सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुवानुगमको अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य प्रदेश उदीरणा क्या सादि है, अनादि है, ध्रुव है या अध्रुव है ? सादि और अध्रुव है। अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुव है। शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य प्रदेश उदीरणा सादि और अध्रुव है। चारों गतियोंमें सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य प्रदेश उदीरणा सादि और अध्रुव है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
विशेषार्थ-मोहनीयको २८ प्रकृतियोंमें एक मिथ्यात्व प्रकृति ही ऐसी है जिसका मिथ्यात्व गुणस्थानमें निरन्तर उदय बना रहता है। शेष सब प्रकृतियाँ ऐसी नहीं हैं। इसलिए यहाँ मिथ्यात्वको छोड़ कर शेष सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्टादि चारों प्रकारको प्रदेश उदीरणा सादि और अध्रुव कही है। अब शेष रही मिथ्यात्व प्रकृति सो इसकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा ऐसे जीवके होती है जो संयमके अभिमुख हुआ अन्तिम समयवर्ती मिथ्यादृष्टि है। यही कारण है कि इसके पूर्व इसकी अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा होती रहती है, इसलिए वह अनादि है और सम्यग्दृष्टि या संयमी जीवके पुनः मिथ्यादृष्टि होने पर जो अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा होती है वह सादि है। तथा भव्योंकी अपेक्षा वह अध्रुव है और अभन्योंकी अपेक्षा ध्रुव है। इसकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा सादि और अध्रुव है यह पूर्वोक्त स्वामित्व विचारसे हो स्पष्ट है। इसकी जघन्य प्रदेश उदीरणा उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाले या ईषत् मध्यम परिणामवाले संज्ञी मिथ्यादृष्टिके होती है, इसलिए उक्त स्वामित्वके अनुसार कादाचित्क होनेसे यह भी सादि और अध्रुव है। तथा अजघन्य प्रदेश उदीरणा जघन्य प्रदेश उदीरणा पूर्वक होनेके कारण सादि और अध्रव है यह स्पष्ट ही है। चारों गतियाँ और उनके अवान्तर भेद कादाचित्क होनेसे इनमें सभी प्रकृतियोंकी चारों प्रकारकी उदीरणा सादि और अध्रुव है यह स्पष्ट ही है।
* प्रकृतमें स्वामित्वका अधिकार है।