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गा० ६२ ]
अणु० लोग० असंखे ० भागो सव्वलोगो वा ।
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$ ३६. देवेसु मोह० उक्क० पदे० लोग० असंखे० भागो अट्ठ चोदस० । अणुक्क • लोग • असंखे ० भागो अट्ठ णव चोद्दस० । भवण ० - वाणवें ० - जोदिसि ० मोह ० उक्क० पदे ० लोग० असंखे ० भागो अद्धट्ठा वा अट्ठ चोहस० । अणुक्क० पदे० लोग० असंखे० भागो अद्ध ड्ट्ठा वा अट्ठ णव चोद्दस० ।
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$ ३७. सोहम्मीसाण० देवोघं | सणकुमारादि सहस्सारा ति मोह ० उक्क० अणुक० केव० पोसि० १ लोग० असं० भागो अट्ठ चोदस० । आणदादि जाव अच्चुदा त्ति मोह • उक्क० अणुक्क० लोग० असं० भागो छ चोद्दस ० । उवरि खेत्तभंगो | एवं जाव ० । $ ३८. जह० पदं । दुविहो णिद्देसो-- ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० जह० पदे० लोग० असंखे० भागो अट्ठ तेरह चोदस० । अजह० सव्वलोगो । प्रदेशोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है ।
विशेषार्थ – पचेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिकका मोहनीयके उत्कृष्ट प्रदेशोंकी उदीरणा करते समय ऊपर आनत कल्प तकके देवोंमें मारणान्तिक समुद्धात करना बन जाता है, इसलिए यहाँ सामान्य तिर्यों में और पचेन्द्रिय तिर्यवत्रिक में मोहनीयके उत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरकोंका त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण स्पर्शन भी कहा है। शेष कथन सुगम है। उसे अपने-अपने स्पर्शन और स्वामित्वको जानकर सर्वत्र जान लेना चाहिए ।
$ ३६. देवोंमें मोहनीयके उत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें मोहनीयके उत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग, त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम साढ़े तीन भाग और कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग, त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम साढ़े तीन भाग, कुछ कम आठ भाग और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया हैं ।
मूलपयडिपदेसउदीरणाए पोसणं
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$ ३७. सौधर्म और ऐशान कल्पमें सामान्य देवोंके समान स्पर्शन है । सनत्कुमारसे लेकर सहस्रार कल्प तकके देवोंमें मोहनीयके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरकोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आनतसे लेकर अच्युत कल्प तकके देवों में मोहनीयके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सनाली चौदह भागों में से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । ऊपर क्षेत्रके समान स्पर्शन है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
$ ३८. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश । ओघ मोहनीयके जघन्य प्रदेशोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भाग और कुछ कम तेरह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अजघन्य प्रदेशोंके उदीरकोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया हैं ।