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________________ गा० ६२ ] मूलपयडिपदेसउदीरणाए खेत्तं १९३ $३० जह० पदं । दुविहो णि० - ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० जह० पदे० के० ? असंखेजा । अजह० के० १ अनंता । एवं तिरिक्खा ० । आदेसेण णेरइय० मोह ० जह० अजह० पदे ० के० ? असंखेजा । एवं सव्वणिरय ० - सव्वपंचिदियतिरिक्खमणुसअप ० -देवा भवणादि जाव अवराजिदा ति । मणुसेसु मोह० जह० के० १ संखेजा । अजह० के० १ असंखेज्जा । मणुसपञ्ज० - मणुसिणी - सव्वदेवा० मोह ० जह० अज० पदे० के० ९ संखेजा । एवं जाव० । $ ३१. खेत्तं दुविहं – जह० उक्क० । उक्कस्से पयदं । दुविहो णि० - - ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० उक्क० केवडि खेत्ते ? लोग० असंखे० भागे । अणुक्क० सव्वलोगे । एवं तिरिक्खोधं । आदेसेण णेरइय० मोह० उक्क० अणुक्क० के० खेत्ते ? लोग० असंखे० भागे । एवं सव्वणिरय - सव्वपंचिदियतिरिक्ख - सव्वमणुस - सव्वदेवा त्ति । एवं जाव० । ३२. जह० पदं । दुविहो णि० - ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० जह० के० खेत्ते ? लोग० असंखे० भागे । अजह० सव्वलोगे । एवं तिरिक्खोधं । आदेसेण § ३०. जघन्यका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश | ओघ मोहनीयके जघन्य प्रदेशोंके उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । अजघन्य प्रदेशोंके उदीरक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं । इसी प्रकार तिर्यञ्चों में जानना चाहिए। आदेशसे नारकियोंमें मोहनीयके जघन्य और अजघन्य प्रदेशोंके उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । इसी प्रकार सब नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव और भवनवासियों से लेकर अपराजित विमान तकके देवोंमें जानना चाहिए । सामान्य मनुष्यों में मोहनीय के जघन्य प्रदेशोंके उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । अजघन्य प्रदेशोंके उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यिनी और सर्वार्थसिद्धि के देवोंमें मोहनीयके जघन्य और अजघन्य प्रदेशोंके उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । $ ३१. क्षेत्र दो प्रकार हैं— जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीय के उत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरक जीवों का क्षेत्र कितना है ? लोकका असंख्यातवाँ भाग क्षेत्र है । अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरक जीवोंका सब लोक क्षेत्र है । इसी प्रकार सामान्य तिर्यञ्चों में जानना चाहिए। आदेशसे नारकियों में मोहनीयके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? लोकका असंख्यातवाँ भाग क्षेत्र है । इसी प्रकार सब नारकी, सब पचेन्द्रिय तिर्यञ्च, सब मनुष्य और सब देवों में जानना चाहिए। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । $ ३२. जघन्यका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकार है-ओघ और आदेश | ओघ मोहनीयके जघन्य प्रदेशोंके उदीरकोंका कितना क्षेत्र है ? लोकका असंख्यातवाँ भाग क्षेत्र है । अजघन्य प्रदेशोंके उदीरकोंका सर्व लोक क्षेत्र है । इसी प्रकार सामान्य तिर्यों में जानना चाहिए । आदेश से नारकियोंमें मोहनीयके जघन्य और अजघन्य प्रदेशोंके उदीरकों का कितना २५
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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