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________________ ८४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ जह० जह० एगस०, उक्क० उवड्वपोग्गलपरियट्ट। अजह० जह० एगस०, उक्क० अंतोमुहुत्तं । एवमित्थिवेद-पुरिसवेद । णवरि अजह० जह० एयस०, उक्क० अणंतकालमसंखेजा पोग्गलपरियट्टा । एवं णवुस० । णवरि अजह० जह० एगस०, उक्क० पुव्वकोडिपुधत्तं । २०९. पंचिंदियतिरिक्खतिये मिच्छ०-अट्ठक० जह० अजह० जह० अंतोमु०, उक्क० पुव्वकोडिपुधत्तं । णवरि अजह० तिरिक्खोघं । सम्मामि० जह० अजह० जह० अंतोमु०, उक्क० सगहिदी देसूणा । एवं सम्म० । णवरि जह० णत्थि अंतरं । अट्ठक०छण्णोक० जह० जह० एगस०, उक० पुव्वकोडिपुधत्तं । अजह० जह० एगस०, उक्क० अंतोमुहुत्तं । तिण्णिवेद० जह० अजह• जह० एगस०, उक्क० पुव्वकोडिपुधत्तं । अन्तरकाल कुछ कम एक पूर्वकोटिप्रमाण है। आठ कषाय और छह नोकषायोंके जधन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल उपाधं पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है। अजघन्य अनुभागके उदीरकक्रा जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तमुहूर्त है। इसी प्रकार स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अनन्तकाल है जो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है । इसी प्रकार नपुंसकवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसके अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिपथक्त्वप्रमाण है। विशेषार्थ-तिर्यञ्चोंमें आठ कषाय और नौ नोकषायोंके जघन्य अनुभागकी उदीरणा सर्वविशुद्ध संयतासंयतके होती है। यह एक समयके अन्तरसे भी सम्भव है, इसलिए इन सबके जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय कहा है। तथा संयमासंयमगुणके उत्कृष्ट अन्तरको ख्यालमें रख कर इन सबके अजघन्य अनुभागके उदीरकका उत्कृष्ट अन्तरकाल उपार्ध पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है । ___ २०९. पञ्चेन्द्रिय तियश्चत्रिकमें मिथ्यात्व और आठ कषायोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिपृथक्त्वप्रमाण है । इतनी विशेषता है कि अजघन्य अनुभागके उदीरकका भंग सामान्य तिर्यश्चोंके समान है। सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य और अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम अपनी अपनी स्थितिप्रमाण है। इसी प्रकार सम्यक्त्वकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसके जघन्य अनुभागके उदीरकका अन्तरकाल नहीं है । आठ कषाय और छह नोकषायोंके जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिपथक्त्वप्रमाण है । अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तमुहूर्त है । तीन वेदोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिपथक्त्वप्रमाण है । इतनी विशेषता है कि तियश्चपर्याप्तकोंमें स्त्रीवेद नहीं है तथा योनिनियोंमें पुरुषवेद और नपुंसकवेद नहीं है। तथा स्त्रीवेद १. आता प्रत्योः अजह० एगस० इति पाठः।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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