SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 387
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास सडक पुत्र - माता विजयदेवी, पिता धनदेव, स्थान मौर्घ सन्निवेश, वशिष्ठ गोत्र । इन्हें शंका थी कि बन्ध-मोक्ष है या नहीं। इनकी कुल आयु ८३ वर्ष की थी, जिसमें ५३ वर्ष गृहस्थी में बीते, १४ वर्ष छद्मस्थ रहे और १६ वर्ष केवलो रहे। इनके शिष्यों की संख्या ४५० थी । ३७२ मौर्यपुत्र - - माता-पिता, स्थान और गोत्र मण्डिक पुत्र के समान । इन्हें देवों के अस्तित्व में सन्देह था । इनके ४५० शिष्य थे। इनकी आयु ६५ वर्ष की थी, जिसमें ६५ वर्ष गृहस्थी में, १४ वर्ष छद्मस्थ पर्याय में और १६ वर्ष केवली पर्याय में व्यतीत हुए। कम्पित--माता का नाम जयन्ती, पिता का नाम देव, ३०० शिष्य थे। इनके मन में शंका थी कि नारकी हैं या नहीं। गृहस्थ, 8 वर्ष तक छद्मस्थ और २१ वर्ष केवली रहे । थे अचल भ्राता - नन्दा माता, वसु पिता, कोशल के रहने वाले और हारीतस गोत्र । इनके कुल ३०० शिष्य । पुण्य के बारे में इन्हें सन्देह था । इनकी आयु ७२ वर्ष थी, जिसमें ४६ वर्ष गृहस्थ, १२ वर्ष छद्मस्थ और १४ वर्ष केवली रहे । तार्य- माता वरुण देवता, पिता दत्त, स्थान वत्स जनपद में तुंगिक सन्निवेश और कौण्डिन्य गोत्र । इनके ३०० शिष्य थे । इनके मन में परलोक के सम्बन्ध में संशय था। इनकी ग्रायु ६२ वर्ष की थी, जिसमें ३६ वर्षं गृहस्थ दशा में, १० वर्ष छद्मस्थ दशा में और १६ वर्ष केवली दशा में बिताये । जन्म स्थान मिथिला, श्रौर गौतम गोत्र । इनके इनकी कुल आयु ७८ वर्ष थी, जिसमें ४८ वर्ष प्रभास - माता प्रतिभद्रा, पिता बल, राजगृह निवासी और कौण्डिन्य गोत्र । इनके ३०० शिष्य थे। इन्हें मोक्ष के बारे में शंका थी । इनकी ग्रायु ४० वर्ष की थी, जिसमें १६ वर्ष कुमार काल ८ वर्ष छद्मस्थ काल और १६ वर्ष केवली दशा का काल था । इन गणधरों में इन्द्रभूति, अग्निभूति और वायुभूति सहोदर थे। इसी प्रकार मण्डिक पुत्र और मौर्यपुत्र की माता एक थी, किन्तु पिता पृथक थे । ये सभी केवलज्ञानी बने और अन्त में राजगृह से मुक्त हुए। भगवान महावीर के जीवन काल में गणधर मुक्त हुए और भगवान के निर्वाण-गमन के पश्चात् इन्द्रभूति और सुधर्म मुक्त हुए । जिस दिन भगवान महावीर को निर्वाण प्राप्त हुआ, उसी दिन गौतम गणधर को केवलज्ञान हुआ। जिस दिन गौतम गणधर को निर्वाण प्राप्त हुया, उसी दिन सुधर्म को केवलज्ञान हुआ। जिस दिन सुधर्म मुक्त हुए, उसी दिन जम्बूस्वामी को केवलज्ञान प्राप्त हुआ। फिर उनके पश्चात् कोई अनुबद्ध केवली नहीं हुआ । दिगम्बर साहित्य में इन गणधरों के सम्बन्ध में विस्तृत विवरण उपलब्ध नहीं होता । किन्तु मण्डलाचार्य धर्मचन्द्र द्वारा विरचित 'गौतम चरित्र' में गौतम गणधर के जीवन के सम्बन्ध में इस प्रकार विवरण उपलब्ध होता है मगध देश में एक ब्राह्मण नगर था । इस नगर में अनेक ब्राह्मण विद्वान निवास करते थे। इसी नगर में सदाचार परायण, बहुश्रुत और सम्पन्न शाण्डिल्य नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसके रूप और शील से सम्पन्न स्थण्डिलः और केसरो नामक दो पत्नियां थीं। एक दिन रात्रि में सोते हुए अन्तिम प्रहर में स्थण्डिला ब्राह्मणी ने शुभ स्वप्न देखे। तभी पांचवें स्वर्ग से एक देव प्रयु पूर्ण होने पर माता स्थण्डिला के गर्भ में आया। गर्भावस्था में माता की रुचि धर्म की ओर विशेष बढ़ गई थी । नौ माह पूर्ण होने पर माता ने एक सुदर्शन पुत्र को जन्म दिया । पुत्र के उत्पन्न होने पर उसके पुण्य का प्रभाव प्रकृति पर भी पड़ा। दिशायें निर्मल हो गई, सुगन्धित वा बहने लगी, आकाश में देव लोग जय-जयकार कर रहे थे ! पुत्र उत्पन्न होने से ब्राह्मण दम्पति को अपार हर्ष हुआ । शाण्डिल्य ब्राह्मण ने पुत्र जन्म के हर्ष में याचकों को मनमाना धन दान दिया। निमितज्ञ ने पुत्र के ग्रहलग्न देखकर भविष्यवाणी की -- 'यह बालक बड़ा होते पर समस्त विद्याओं का स्वामी होगा और सारे संसार में इसका यश फैलेगा 1 बालक प्रत्यन्त सुदर्शन था। उसका मुख म्रत्यन्त तेजस्वी था। माता पिता ने उसका नाम इन्द्रभूति रखा।
SR No.090192
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy