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________________ भगवान पाच ३४१ कारण है कि शासन देवों और देवियों की उपलब्ध मूर्तियों में पद्मावती देवी की मूर्तियों की यक्ष-यक्षणी सख्या सर्वाधिक है। यह भी विशेष उल्लेखनीय है कि पद्मावती की मूर्तियों में सबसे अधिक वैविध्य मिलता है । संभवतः इसका कारण यही रहा है कि पद्मावती को बहुमान्यता के कारण कर कारों ने कल्पना से काप लिया है। शास्त्रानुसार दिगम्बर परम्परा में धरणेन्द्र और पद्मावती का रूप इस प्रकार मिलता हैधरणेन्द्र का रूप कद्विहस्सषतवासुकिरुझटाप सध्यान्यपाणिणिपाशवरप्रणन्ता। श्रीनागराजककुवं धरणोऽभ्रनीलः, मधितो भजतु वासुकिमोलिरिज्याम् ।। अर्थ-नागराज के चिन्हबाला भगवान पार्श्वनाथ का शासनदेव धरणेन्द्र नामक यक्ष है । वह प्राकाश के वर्ण वाला, कछुए की सवारी चाला, मुकूट में सर्प के चिन्ह वाला और चार भुजाओं वाला है। उसके ऊपरी दोनों हाथों में पं तथा नीचे के बांये हाथ में नाग पाश तथा दायाँ हाथ वरदान मुद्रा में है। पद्मावती देवी का रूप इस प्रकार बताया है देवी पद्मावती नाम्ना रक्तवर्णा चतुर्भुजा । पद्मासनाकुशं षत्ते स्यक्षसूत्रं च पङ्कजम् ।। अथवा षड्भुजावेको चतुर्विशति सद्भुजाः । पाशासिकुन्तवालेन्दु - गामुसलसंयुतम् ।। भुजाषट्क समाख्यातं चतुर्विशतिरुच्यते। माइखासिचक्रवालेन्दु-पवमोत्पल शरासनम् ।। शक्ति पाशाङ्कुशं घण्टा वाणं मुसलखेटकम् । त्रिशूलं परशुं कुन्तं वचमाला फलं गवाम् ।। पत्रंब पल्लवं धत्ते वरदा धर्मवत्सला। मर्थ-पार्श्वनाथ तीर्थकर की शासनदेवी पद्मावती देवी है । वह लाल वर्ण वालो, कमल के पासन वाली पौर पर भुजामों में अंकुश, माला, कमल और वरदान मुद्रा है। अथवा वह छह अथवा चोवीस भुजा वाली भी होती है। छह हाथों में पाश, तलवार, भाला, वालचन्द्र, गदा और भूसल धारण करती है। तथा चौवीस हाथों में क्रमः : शंख, तलवार, चक्र, बालचन्द्र, सद कमल, लाल कमल, धनुष, शक्ति, पाश, अंकुश, घण्टा, वाण, मूसल, ढाल, त्रिशूल, फरशा, भाला, वज, माला, फल, गदा, पत्र, पत्र गुच्छक अोर बरदान मुद्रा होती है।' आशाधर प्रतिष्ठा पाठ के अनुसार पद्मावती कुक्कुट सर्च की सवारी करने वाली है तथा कमल के प्रासन पर बैठती है। उसके सिर के ऊपर सर्प के तीन फणों वाला चिन्ह होता है। पद्मावती कल्प में चार भुजामों में पाश, फल, वरदान और अंकुश होते हैं। श्वेताम्बर ग्रंथ निर्वाणकालका, माचार दिनकर आदि के अनुसार पार्श्वनाथ तीर्थकर के यक्ष का नाम 'प.श्वं' है। वह हाथी के मुख वाला, सिर के ऊपर सपं फण, कृष्ण वर्ण बाला और चार भुजा वाला है । उसके दोनों दां। हाथों में विजौरा और सांप होता है (प्राचार दिनकर में गदा) तथा वांये हाथों में नेवला और सर्प धारण करता है। श्वेताम्बर ग्रन्थों में उसकी सवारी कुक्कुट सर्प बताई है। इसी प्रकार पार्श्वनाथ की यक्षी का नाम पद्मावती है । वह सुवर्ण वर्ण वाली, कुक्कुट सर्प की सवारी और चार भुजाओं वाली है। उसके दांये हाथों में कमल और पाश हैं तथा बांये हाथों में फल और अंकुश होते हैं । (आचार निकर के अनुसार बांये हाथों में पाश और कमल होते हैं।) दिगम्बर और श्वेताम्बर अन्यों में पद्मावती देवी का जो उपयुक्त स्वरूप बतलाया है, उसके अनुरूप १.मावती देवी की कुछ मूर्तियां अवश्य मिलती हैं, किन्तु परम्परा से हटकर भी अनेक मूर्तियाँ उपलब्ध होती हैं । कुछ १ ठक्कुर केक कृत वास्तुसार प्रकरण
SR No.090192
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size15 MB
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