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________________ भगवान नेमिनाथ से सम्बद्ध नगर खाण्ड गुफा में प्राकर रहे थे। और भी बड़े-बड़े प्राचार्यों ने इस तीर्थ की वन्दना की थी। प्रारम्भ से ही दिगम्बर जैन इसे अपना पूज्य तीर्थ मानते रहे हैं और प्राचीन काल से यहां की वन्दना के लिये दिगम्बर जैन यात्रा संघ जाते रहे हैं। पुरातत्व और इतिहास के साक्ष्यों से यह सिद्ध होता है कि गिरनार के देव नेमिनाथ हैं और वह जैनों का तीर्थ रहा है। सौराष्ट्र के प्रभासपट्टन से बेथीलोनिया के बादशाह नेवचडनज्जर (Nebuchadnaazar) का एक ताम्रपट लेख प्राप्त हुआ है। इसे डॉ० प्राणनाथ विद्यालंकार ने पढ़ा था, जिसका प्राशय यह है--- "रेवानगर के राज्य का स्वामी सु जाति का देव, नेवचडनज्जर पाया है, वह यदुराज के नगर (द्वारका) में पाया है। उसने मन्दिर बनवाया। सूर्य..."देव नेमि कि जो स्वर्ग समान रैवत पर्वत के देव हैं (उनको) हमेशा के लिये मर्पण किया।" -'जैन' भावनगर भा० ३५ अंक, पृ०२ स्मरणीय है कि नेवुन डनज्जर का समय ११४० ई० पू० माना जाता है। अर्थात् आज से ३०० वर्ष पूर्व भी गिरनार जनों का तीर्थ था। दक्षिण भारत के कल्लरगड्डु (शिमोगा) से प्राप्त सन् ११२१ के एक शिलालेख में भगवान नेमिनाथ के निर्वाण प्राप्त करने का उल्लेख है । उस समय अहिच्छन में विष्णुगुर राय कारता था । उसने ऐन्द्रध्वज पूजा की। देवेन्द्र ने उसे ऐरावत हाथी दिया। शिलालेख का मूल पाठ इस प्रकार है "हरिवंश केतु नेमीस्वर तीर्थ दतिसुत्तगिरे गंगकुलांवर भानु पुट्टिदं भासुरसेज विष्णुगुप्तनेम्ब नृपालम् ।। मा-पराधिनायं सम्राज्यपदवियं ककोण्डहिच्छत्र-परवोल सुखमिर्दु नेमितीर्थकर परमदेव-निर्वाण कालबोल ऐन्द्रध्वज वेब पूजेयं माडे देवेन्द्रनोसेदु । प्रनुपमदैरावतमं । मनोनुरागदोल' विष्णुगुप्ताङ्गम् । __ जिनपूजेयिन्दे मुक्तिय । ननय॑मं पडेगुमन्दोलिदुदु पिरिवे ॥ -जनशिलालेख संग्रह भाग २ पृ. ४०८-६ अर्थ-जब नेमीश्वर का तीर्थ चल रहा था, उस समय राजा विष्णुगुप्त का जन्म हुआ। वह राजा अहिच्छत्रपुर में राज्य कर रहा था। उसी समय नेमितीर्थकर का निर्वाण हुमा । उसने ऐन्द्रध्वज पूजा की । देवेन्द्र ने उसे ऐरावत हाथी दिया। इस शिलालेख से यह सिद्ध होता है कि नेमिनाथ एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे। शिलालेख में गंग वंशावली दी गई है। गिरनार पर्वत पर भी कुछ शिलालेख मिले हैं। इनमें सर्व प्राचीन लेख क्षत्रप रुद्रसिंह का है। यह लेख खण्डित है और इसे डॉ. वल्हर ने पढ़ा था । लेख से यह ज्ञात होता है कि गिरनार की गुफाओं का निर्माण सौराष्ट्र के साही राजाओं ने ईसा की दूसरी शताब्दी में जैनों के लिए कराया था। इस लेख के सम्बन्ध में मि० वर्गेस ने लिखा है 'इस शिलालेख में सबसे रोचक शब्द है 'केवलिज्ञानसम्प्राप्तानाम् केवल ज्ञान शब्द केबल जैन शास्त्रों में हो मिलता है । अतः यह स्वीकार करना होगा कि शिलालेख जनों से सम्बन्धित है। इससे ज्ञात होता है कि इन मुफानों का निर्माण ईसा की द्वितीय शताब्दी में सौराष्ट्र के साही राजाओं ने जैनों के लिए किया हो। संभव है, गुफाये लेख से प्राचीन हों ।' मि० वर्गस का यह अनुमान गलत नहीं लगता। ईसा पूर्व पहली-दूसरी शताब्दी में घरसेनाचार्य यहाँ की चन्द्रगुफा में रहते थे, यह ऊपर बताया जा चुका है । १. Times of India 19 March 1935 २ Burgess, the Repport on the Antiquties of kathiawad and kacchha, pp. 141-143.
SR No.090192
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size15 MB
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