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________________ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास इन उल्लेखों से इस जैन मान्यता की पुष्टि होती है कि वसुदेव, श्रीकृष्ण और नेमिनाथ शौरीपुर के रहने वाले थे, जबकि हिन्दू मान्यता में शौरीपुर को कोई स्वीकृति नहीं मिलती। जैन मान्यता के अनुसार जरासन्ध के श्राक्रमणों से परेशान होकर और युद्ध की तैयारी के लिये समय प्राप्त करने के उद्देश्य से यादवों ने शौरीपुर से पलायन किया था और द्वारका नगरी का निर्माण करके वहाँ रहने लगे थे । जब हम हिन्दू पुराणों से पूर्ववर्ती वैदिक साहित्य पर दृष्टिपात करते हैं तो हमें उसमें भी परिष्टनेमि के उल्लेख अनेक स्थलों पर प्राप्त होते हैं । वैदिक साहित्य में ऋग्वेद को प्राचीनतम रचना स्वीकार किया जाता है । उसमें अनेक मन्त्रों का देवता श्ररिष्टनेमि है और उसकी बार-बार स्तुति की गई है । " वेद के माण्डूक्य, प्रश्न और मुण्डक उपनिषदों में भी अरिष्टनेमि के उल्लेख मिलते हैं । ३:२ हिन्दू साहित्य के समान बौद्ध साहित्य में भी अरिष्टनेमि का स्मरण श्रनेक स्थानों पर किया गया है । 'लंकावतार' के तृतीय परिवर्तन में लिखा है - जैसे एक ही वस्तु के अनेक नाम होते हैं, ऐसे ही बुद्ध के भी पसंख्य नाम हैं। लोग इन्हें तथागत, स्वयंभू, नायक, विनायक, परिणायक, बुद्ध, ऋषि, वृषभ, ब्राह्मण, ईश्वर विष्णु, प्रधान, कपिल, भूतान्त, भास्कर, प्ररिष्टनेमि श्रादि नामों से पुकारते हैं । 'ऋषि भाषित सुत्त' में अरिष्टनेमि और कृष्ण निरूपित पैंतालीस अध्ययन हैं। उनमें बीस प्रध्ययनों के प्रत्येक बुद्ध प्ररिष्टनेमि के तीर्थकाल में हुए थे । इतिहासकारों में कर्नल टाड लिखते हैं- 'मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन काल में चार बुद्ध या मेघावी महापुरुष हुए हैं । उनमें पहले श्रादिनाथ और दूसरे नेमिनाथ थे । नेमिनाथ ही स्क्रेण्डोनेविया निवासियों के प्रथम 'प्रोडिन' और चीनियों के प्रथम 'फो' देवता थे।' श्रीकृष्ण के गुरु छान्दोग्य उपनिषद् में देवकी - पुत्र श्रीकृष्ण का उल्लेख मिलता है । उसमें उनके गुरु का नाम घोर माङ्गिरस बताया है । प्राङ्गिरस ऋषि ने श्रीकृष्ण को नैतिक तत्वों एवं अहिंसा का उपदेश दिया। जैनों की मान्यतानुसार भगवान नेमिनाथ ने श्रीकृष्ण को अहिंसा का उपदेश दिया था। प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान् धमनिन्द कौशाम्बी ने 'भारतीय संस्कृति और अहिंसा' पुस्तक के पृष्ठ ३८ में यह संभावना व्यक्त की है कि घोर माङ्गिरस नेमिनाथ के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं हो सकते । यद्यपि इस संभावना की पुष्टि अन्य प्रमाणों द्वारा अभी तक नहीं हो पाई है। किन्तु जैन पुराणों में श्रीकृष्ण को अहिंसा का उपदेश देने वाले नेमिनाथ और छान्दोग्य उपनिषद् में श्रीकृष्ण को अहिंसा का उपदेश देने वाले घोर प्राङ्गिरस में समानता के बीज ढूंढ़े जा सकते हैं । श्रन्वेषण के फलस्वरूप नेमिनाथ मौर प्राङ्गिरस में ऐक्य स्थापित हो जाय तो कोई आश्चर्य न होगा । श्रीकृष्ण को विष्णु का अवतार मानने की परिकल्पना 4. हिन्दू धर्म में श्रीकृष्ण का प्रभाव सर्वोपरि है। भागवत आदि पुराणों में विष्णु के जिन चौवीस अपना दशावतारों की कल्पना की गई है, उनमें श्रीकृष्ण को पूर्णावतार और शेष प्रवतारों को प्रशावतार स्वीकार किया गया है । वेदों में अवतारवाद की यह कल्पना दृष्टिगोचर नहीं होती । उपनिषद् काल में भी अवतारवाद का जन्म नहीं हुआ। ब्राह्मण काल में अवतारवाद के वीज प्राप्त होते हैं । शतपथ ब्राह्मण में सर्वप्रथम यह उल्लेख मिलता है कि प्रजापति ने मत्स्य, कूर्म और वराह का अवतार लिया था। किन्तु इसमें भी विष्णु के अवतार लेने का कोई संकेत नहीं है। पौराणिक काल में संभवतः इसी भावना को पल्लवित और विकसित करके विष्णु के अवतार की कल्पना की गई । इस प्रकार अवतारवाद की मान्यता वैदिक धर्म के लिये सर्वथा नवीन मौर प्रपूर्व थी। किन्तु afro ऋषियों को वेदों में वर्णित भौतिक और काल्पनिक देवताओं को तिलाञ्जलि देकर विष्णु के मानव देहधारी अवतार की कल्पना क्यों करनी पड़ी, यह जानना अत्यन्त रुचिकर होगा और उससे वैदिक धर्म के क्रमिक विकास के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है । १. ऋग्वेद ११४८६६ १२४१६० १०, ३४१५३।१७ १०।१२।१७८१ मथुरा संस्करण १६६०
SR No.090192
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size15 MB
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