SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 308
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २९३ महाभारत-पुत्र दूत के राजनयिक निवेदन का विपरीत ही प्रभाव पडा । स्वाभिमानी और स्वातन्त्र्य प्रेमी यादव किसी सम्राट् की दासता को अंगीकार करने को तत्पर नहीं थे। महाराज श्रीकृष्ण ने दूत को संबोधन करते हुए उत्तर दिया-'शृगाल की मृत्यु भाती है तो वह नगर की ओर जाता है। तुम्हारा वह दम्भी राजा सेना सज्जित करके यादव कुल के विरुक्ष अभियान करना चाहता है, यादव कुल रणभूमि में पाकर उसका स्वागत करेगा और उसके दर्प का समुचित उत्तर देगा। यादव कुल का यह उत्तर अपने राजा से जाकर कह देना।' यह कह कर उन्होंने दूत को वहाँ से विदा कर दिया । दूत ने यादवों का यह उत्तर अपने सम्राट को निवेदन कर दिया। इधर यादवों ने परिवर्तित परिस्थिति पर मन्त्रणागार में मन्त्रणा की। निर्णय हुमा कि यादवों को कुछ अवसर प्राप्त करने के लिये जरासन्ध से कुछ निश्चित अवधि के लिए शान्ति-सन्धि कर लेना उपयुक्त होगा। इस कार्य के लिए कुमार लोहजघ को भार सौंपा गया। कुमार लोहजंघ शूरवीर, चतुर, व्यवहार कुशल और नीतिश पुरुष था। वह गिरिब्रज पहुँच कर जरासन्ध से मिला। उसने उसे समझाया कि युद्ध से दोनों पक्षों की ही जन-धन-हानि होमी । यह बुद्धिमत्तापूर्ण होगा कि सम्रा पौर यादव कुल में एक सीमित अवधि के लिए शान्ति सन्धि निष्पन्न हो जाय । अवधि के पश्चात् इसका पुनर्नवीकरण करने अथवा अन्यथा प्रवृत्ति करने का दोनों पक्षों को मधिकार होगा। यादवों के इस नीतिज्ञ राजदूत की तर्कसंगत बातों का जरासन्ध पर भी प्रभाव पड़ा। वह भी तैयारी के लिए कुछ समय चाहता था। अन्त में दोनों पक्षों की पारस्परिक सहमति द्वारा एक वर्ष की शान्ति सन्धि पर दोनों मोर के हस्ताक्षर हो गये। कुरुक्षेत्र में महाभारत युद्ध एक वर्ष की अवधि के पश्चात् जरासन्ध विशाल वाहिनी लेकर कुरुक्षेत्र के विस्तृत मैदान में जा पहुंचा। श्रीकृष्ण भी अपनी सेना सज्जित करके वहाँ जाउदे । श्रीकृष्ण के पक्ष में समस्त यादवों के अतिरिक्त पाण्डव, दशाह, भोज, पाण्ड्य, इक्ष्वाकु वंशी मेरू, राष्ट्रवर्धन, सिंहल, बदर, यमन, ग्राभीर, काम्बोज, द्रविड देश के नरेश, शनि का भाई चारुदत्त, पगरय, आदि अनेक नरेश थे। इनके पक्ष में सात प्रक्षौहिणी सेना थी। दूसरी मोर जरासन्ध के पक्ष में कौरवों के अतिरिक्त गान्धार, सिन्ध, मध्य देश के नरेश कर्ण श्रादि नरेश थे। उसकी सेना का संख्याबल ग्यारह प्रक्षौहिणी था। दोनों पक्षों की सेनायें जब प्रामने-सामने हट गई, तब कुन्ती बड़ो. चिन्तित हो गई। वह युधिष्ठिर पादि पुत्रों की सहमति से कर्ण के पास पहुँची। उसने कर्ण को कण्ठ से लगाकर उसे सम्पूर्ण वृत्तान्त प्रारम्भ से १. अक्षौहिण्यामिस्यवि : सप्तत्या राष्टभिः शतैः । संयुक्तानि सहस्राणि गजानामेकविंशतिः ।। एवमेब रथानां तु संख्यानं कीर्तितं बुषः । पञ्चषष्टि सहस्राणि षट्रासानि दर्शवतु।। संख्यातास्तुरगास्तविना रचतुरंगमैः । नणां शतसहस्राणि सहस्राणि तथा नव । शतानि वीणि चान्यानि पञ्चाशश्च पदातयः ॥ -रमरकोश टीका भारते अक्षौहिणी प्रमाणम्अहिण्याः प्रमाण सु बाङ्गाष्टकति कंगः। रयैरेतेहस्विनः पञ्चश्व पदातिभिः ।। --एक अक्षौहिणी में २१८७० हाथी, २१८७० रथ, ६५६१० अश्व, १०९३५० पदाति सैनिक होते हैं ।
SR No.090192
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy