SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 251
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास भरत के मन में तो प्रारम्भ से ही राजपाट और गृहस्थी की ओर से विरक्ति थी। उनका मन विषय वासनाओं की ओर जाता ही नहीं था। जब राम अयोध्या लौटे नहीं थे, तब तक तो उन पर राज्य का भार था । अतः वे चाहते हुए भी मुनि दीक्षा नहीं ले सके । किन्तु राम के वापिस आने पर उन्होंने मुनि बनने की मन में ठानी। एक दिन उन्होंने रामचन्द्र जी से अपने मन की बात कही और उनसे प्राज्ञा मांगी। यह जानकर माता कैकेयी बिलाप करने लगी। राम और लक्ष्मण ने उसे समझाया - भैया भी तुम्हारी यु मुनि के कठोर व्रत पालने की नहीं है । अतः तुम घर में रहकर राज्य शासन करो और धर्म का पालन करो। भरत उनकी आज्ञा उल्लंघन नहीं कर सके । किन्तु फिर भी घर में रह कर मुनियों के उपयुक्त व्रतों का पालन करने लगे। एक दिन सीता, विशल्या, उर्वशी, कल्याणमाला, जितपद्मा, वसुन्धरा यदि दोनों भाइयों की रानियाँ भरत का मन विराग से हटाने के उद्देश्य से भरत के पास श्राकर बड़े प्रेम से बोली- देवर ! चलो, हम सब मिल कर जलकीड़ा करें। भरत उनके प्यार भरे आग्रह को टाल न सके और न चाहते हुए भी वे उनके साथ चल दिये । सबने सरोवर पर जाकर जल क्रीड़ा की । परस्पर विनोद करते हुए सबने जल में स्नान किया । पश्चात् भरत उठकर निकट के चैत्यालय में जाकर भगवान की पूजा करने लगे। स्त्रियों में से कोई वीणा बजाने लगी, कोई नृत्य करने लगी । २३६ भरत घर में बेरागी इतने में त्रैलोक्य मण्डन हाथी बन्धन तुड़ाकर इधर-उधर भागने लगा । विघाड़ता हुआ वह अनेक बाग बगीचों को उजाड़ने लगा, उसने अनेक घर ढा दिये। उसकी चिंघाड़ सुनकर श्रनेक हाथी भी बन्धन तुड़ाकर भागने लगे । घोड़े हिनहिनाने लगे। सारी अयोध्या में आतंक छा गया। राम-लक्ष्मण, हनुमान आदि सभी हाथी को पकड़ने प्राये, किन्तु वह किसी के वश में नहीं पाया। हाल के सीधी भागा, जहाँ रानियाँ जल-क्रीड़ा कर रही थीं। हाथी को आता हुआ देख कर रानियों भय के मारे भरत के पीछे छिप गईं। हाथी को भरत की ओर जाते देख कर सब हाहाकार करने लगे। किन्तु भरत को देखते ही हाथी को अपने पूर्व जन्म का स्मरण हो आया और सूंड नीची करके शान्त भाव से खड़ा हो गया। भरत ने बड़े प्रेम से, उससे कहा--' गजेन्द्र ! तुम इस प्रकार क्रुद्ध कैसे हो गये ? भरत का प्रश्न सुनकर हाथी रोने लगा । सबको बड़ा आश्चर्य हुम्रा I भरत सीता और विशल्या के साथ उसी हाथी पर बैठ कर घर छाया । भोजन आदि से निवृत्त होने पर राज सभा में उसी हाथी की चर्चा थी। इतना क्रुद्ध होने पर भी यकायक भरत को देखकर वह शान्त कैसे हो गया तथा खुशामद करने पर भी चार दिन से आहार क्यों नहीं ले रहा । उसी समय अयोध्या के बाहर उद्यान में देशभूषण कुलभूषण केवली भगवान का श्रागमन हुग्रा । समवसरण को रचना देख कर वनमाली ने उनके आगमन की सूचना राम को दी। यह समाचार सुन कर राम ने अपने आभूषण उतार कर माली को दे दिये और नगर में ड्योंढ़ी पिटवा कर राम लक्ष्मण आदि के साथ केवली भगवान के दर्शनों को गये। साथ में सभी विद्याधर, राज परिवार, पुरजन थे । सबने वहाँ पहुँच कर भगवान की वन्दना-पूजा की और भगवान का उपदेश सुना। भगवान से हाथी के सम्बन्ध में प्रश्न करने पर भगवान ने बताया कि भारत और इस हाथी के जीब इस जन्म से पहले ब्रह्मोत्तर स्वर्ग में देव थे। प्रभिराम का जीव तो स्वर्ग से चलकर यह भरत हुआ है तथा मृदुमति का जीव मायाचारपूर्वक तप करने के कारण स्वर्ग से चलकर यह हाथी हुप्रा है । भरत को देखने से उसे पूर्व जन्म का स्मरण हो माया, इसलिए वह शान्त हो गया। अपने जन्मान्तर का हाल जानकर भरत ने केवली भगवान से दीक्षा देने की प्रार्थना की। तो राम कातर होकर कहने लगे - भाई ! पिता ने तुम्हें राज्य दिया था। अब इसे किसे दोगे। हमने तो तुम्हारे लिए ही विजय की है। यह चक्ररत्न भी तुम्हारा ही है। तुम इसे सम्भालो । यदि तुम हमसे विरक्त हो तो हम बाहर चले जायेंगे। पिता गये, अब तुम भी चले जाओगे। पति और पुत्र के वियोग में माता कैकेई रो रोकर जान दे देगी।' तब भरत बोले- 'अब तक तो पिता की आज्ञा से मैंने राज्य किया। अब तुम करना।' यह कहकर भरत ने मुनि दीक्षा लेली । उसके साथ कैकेयी आदि ने भी आर्यिका दीक्षा ग्रहण करली । हाथी ने श्रावक के व्रत ले लिए और चार वर्ष तक घोर तपश्चरण कर वह छठे स्वर्ग में देव हुआ । भरत भी तपस्या करके कर्मों का नाश कर मुक्त हो गये ।
SR No.090192
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy