SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास युद्ध विभीषण के यह वचन सुन कर रावण क्रोध में अंधा होकर विभीषण को मारने दौड़ा, तब विभीषण भी के लिये तैयार हो गया । तब मंत्रियों ने समझा-बुझाकर दोनों को रोका। किन्तु रावण क्रोध में भर कर बोला-' दुष्ट ! तू शत्रु से मिल गया है । अतः तू इसी समय लंका से निकल जा ।' विभीषण वोला- 'अच्छी बात है। मैं अभी यहाँ से जाता हूँ । यदि मैंने लंका नष्ट न की तो में रत्नश्रवा का पुत्र नहीं। इस प्रकार कह कर विभीषण तीस अक्षौहिणी सेना लेकर राम से मिलने चल दिया । विभीषण की सेना का कोलाहल सुनकर वानरवंशी सेना भी युद्ध के लिए तैयार हो गई। राम और लक्ष्मण ने बज्रावर्त और सागरावर्त धनुष उठाये और नगर से बाहर युद्ध के लिये सेना भी उनके पीछे चल दी। तब विभीषण ने राम के पास दूत भेजा। दूत ने थाकर राम से कहा - 'देव ! विभीषण अपने भाई रावण से शत्रुता कर आपकी शरण में आये है ।' राम ने यह सुनकर जांबुनद आदि मंत्रियों को बुला कर मंत्रणा की और यह निर्णय किया कि विभीषण धर्मात्मा है। रावण से सीता को लेकर उसका प्रारम्भ से ही बिरोध रहा है । भतः दोनों में मतभेद और शत्रुता होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। इसलिये विभीषण को अवश्य बुलाना चाहिये । फलनः विभीषण को भेजने के लिये दूत से कह दिया। विभीषण ने ग्राकर राम को नमस्कार किया और बोला-' प्रभो ! इस जन्म में श्राप और दूसरे जन्म में भगवान जिनेन्द्र मेरे शरण हैं ।' राम ने बड़े प्रेम से विभीषण से कहा'विभीषण! में विजय कर राक्षस द्वीप सहित लंका तुम्हें दूंगा, मेरी यह प्रतिज्ञा है ।' इधर यह बात हो रही थी, तब तक अनेक विद्याथों का अधिपति भामण्डल श्रा पहुँचा । उसे देखकर वानर वंशियों को बड़ी प्रसन्नता हुई। उसके साथ एक हजार अक्षौहिणी सेना थी । अब सेना को लेकर राम ने लंका की ओर प्रयाण किया और लंका के बाहर सेना का पड़ाव डाल दिया । उसी के सामने रावण की सेना भी ना हटी। रावण की सेना में चार हजार प्रक्षोहिणी थी और राम की सेना में दो हजार प्रक्षौहिणी थी । सबसे प्रथम रावण की ओर से हस्त और प्रहस्त नामक सुभट अपनी सेना लेकर युद्ध के लिए आये। इधर राम, लक्ष्मण श्रौर नल-नील भी आगे बढ़े। उनके पीछे उनकी सेना थी । युद्ध प्रारम्भ हो गया । रक्त की कीचड़ मच गई। हाथी, घोड़े, मनुष्य कट कट कर गिरने लगे । लाशों पर लाश पड़ने लगीं। तब नल, नील ने भयंकर युद्ध कर frusमाल के प्रहार से हस्त प्रहस्त को मार दिया । दूसरे दिन रावण पक्ष के मारीच आदि राजा युद्ध के लिये आये । उन्होंने भयंकर युद्ध किया। वानर वंशियों में भगदड़ मच गई । तब हनुमान श्रागे बढ़ा। उसके प्रहार से राक्षसवशियों की सेना तितर-बितर होने लगी । उसे रोकने के लिए राक्षसों का सेनापति माली आगे आया। हनुमान और माली का घोर युद्ध हुआ । हनुमान ने माली के हृदय पर भयानक वेग से शक्ति का प्रहार किया । वह मूच्छित हो गया। उसके सैनिक उसे युद्धस्थल से उठा ले गये। तब वोदर माली के स्थान पर लड़ने लगा । हनुमान ने उसे अल्पकाल में ही मार डाला। फिर रावण का पुत्र जंबुमाली लड़ने थाया। दोनों वीरों में बड़ी देर तक युद्ध हुप्रा । हनुमान ने जंबुमाली के सोने पर वच्त्रदण्ड का कठोर प्रहार किया, जिससे वह मूच्छित हो गया। उसको सेना उसे लेकर भाग निकली। हनुमान ने भागती हुईं सेना का पीछा किया और जहाँ रावण खड़ा था, वहाँ होनिर्भय होकर युद्ध करने लगा। उसे देखकर रावण श्रागे बढ़ा, किन्तु उसे रोक कर अन्य योद्धा युद्ध करने लगे और हनुमान को घेर लिया। तब नल, नील, सुग्रीव, सुषंण, विराधित, प्रीतिकर, भामण्डल, समुद्र, हंस यादि राजा मिलकर राक्षस सेना पर टूट पड़े। राक्षस घबड़ा गये । तब वीर कुम्भकर्ण लड़ने उठा । उसने वानरवंशियों को दबाना शुरू किया। तब उससे लड़ने के लिए हनुमान, अंगद, भामण्डल, शशी इन्द्र, श्राय । कुम्भकर्ण ने माया से सबको सुला दिया। सबके हाथ से वस्त्र गिर गये। तब सुग्रीव ने प्रबोधिनी विद्या द्वारा सबको सचेत किया। वे पुनः सचेत हो गये और उससे युद्ध करने लगे। उनके प्रहारों से कुम्भकर्ण घबड़ा गया। तब रावण स्वयं युद्ध करने आया। किन्तु इन्द्रजीत ने उसे रोक कर स्वयं युद्ध करना प्रारम्भ कर दिया। उसने वाणों को वर्षा से सबको क्षत-विक्षत कर दिया। अपनी सेना का यह विनाश देखकर सुग्रीव, भामण्डल आदि उससे युद्ध करने लगे । सुग्रीव इन्द्रजीत से भिड़ गया, भामण्डल मेघनाद से जा जूझा ।
SR No.090192
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy