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________________ २०६ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास लिया । तब रावण ने सब आधीन राजाओं को सेना लेकर आने का निमन्त्रण भेजा। प्रह्लाद के पास भी निमन्त्रणपत्र माया । वह अब सेना लेकर जाने लगा तो पवनकुमार अपने पिता को रोककर बोला-युवक पुत्र के होते हुए बद्ध पिता का युद्ध के लिए जाना उचित नहीं है। और सेना लेकर चल दिया। चलते समय अंजना द्वार पर खंभे के सहारे खड़ी थी। किन्तु पवनकुमार ने उसकी ओर देखा तक नहीं और वहाँ से चल दिया । वहां से चल कर वह मानसरोवर पहुँचा और उसके तट पर ही पड़ाव डाल दिया। सन्ध्या के समय वह अपने मित्र के साथ सट पर बंटा हश्रा था। उसने देखा कि एक चकवी अत्यन्त दुखी हो रही है। उसने मित्र से इसका कारण पूछा । मित्र बोला-यह रात्रि में पति-वियोग के कारण दुखी है । यह सुनते ही पवनकुमार सोचने लगा--एक पक्षी केवल रात्रि भर के लिए अपने पति के वियोग में इतनी दुखी है, तो प्रजना मेरे वियोग में कितनी दुखी होगी जिसे मैंने बाईस वर्ष से त्याग दिया है। यह विचार माते ही मित्र से बोला -मित्र ! मैं मंजना के वियोग को पर एक पल भर के लिए भी सह मी साता यतिम मेरा जीवन चाहते हो तो मुझे मंजना से मिला दो। मित्र ने उसे बहत समझाया कि इस समय जाने से लोक में बड़ी हसी होगी। किन्तु वह अपने आतुर स्वभाव के कारण जिद पर पड़ गया । प्राखिर प्रदस्त रात्रि होने पर गुप्त रूप से उसे विमान पर लेचला और वे शीघ्र ही प्रजना के महल पर जा उतरे । प्रहस्त ने अन्दर जाकर अंजना को पवनकुमार के आने की सूचना दी। प्रजना और पवनकुमार बड़े प्रेम से मिले। और पवनकुमार रातभर उसके पास रहे । प्रातः जब पवनकुमार जाने लगे तो मंजना हाथ जोड़ कर बोली-नाथ! में अभी ऋतुमती होकर चुकी हूँ। संभव है, मुझे गर्भ रह जाय । अब सक पाप मुझसे बोलते नहीं थे। ऐसी दशो में लोग मेरा अपवाद करेंगे। पवनकुमार बोला-'देवि! चिन्ता मत करो। तुम्हारे गर्भ प्रकट होने से पहले ही मैं यहाँ लौट पाऊँगा। फिर भी मैं अपने नाम को यह मुद्रिका दिये जाता हूँ। उससे अपवाद का अवसर नहीं पायेगा।' यों कहकर और मुद्रिका देकर वह अपने मित्र के साथ वहाँ से जैसे गुप्त रूप से आया था, वैसे ही गुप्त रूप से चला गया। कुछ दिनों में अंजना के गर्भ प्रकट होने लगा। उधर युद्ध लम्बा खिच जाने से पवनकुमार जल्दी नहीं लौट सका। अंजना के यह गर्भ देखकर उसकी सास केतुमती को संदेह हुआ। उसने अंजना से पूछा तो अंजना ने रात में पतकमार के पाने की सारी घटना बतादी और उसके प्रमाण में उसने अपने पति द्वारा दी हई मुद्रिका भी दिखाई। किन्त केतमतीको विश्वास नहीं हुप्रा कि उसका पुत्र जिससे बाईस वर्षों तक बोला तक नहीं, उससे मिलने बढ़ चोरी से रात में छिपकर क्यों पावेगा। अवश्य यह इस दुवचरित्र स्त्री का पापाचार है। अंजना ने अपनी दासी वसन्तमाला की भी साक्षी दिलाई। किन्तु केतुमती का संदेह बढ़ता ही गया। उसने क्रोध में भर कर गर्भवती प्रपना को कमर बाईस घड़ी की भूल बाईस वर्ष का दुःख राजा सठ के दो रानिया यी–हेमोदरी और लक्ष्मी । लक्ष्मी भगवान की पूजा-उपासना में लगी रहती । एक दिन सौतिया डामोदरी ने भगवान की प्रतिमा छपा दी। लक्ष्मी दूसरे दिन प्रतिमा को न देखकर बड़ी दुखी हुई। उसने आहार-जाल का त्याग कर दिया । संयोगवश संयमश्री नामक एक आर्यिका महल में पधारी और लक्ष्मी के मुख से भगवान की प्रतिमा की चोरी की बात मुनकर ये सीधी हेमोवरी के पास पहुँचौं । हेमोदरी ने आमिका को भक्तिपूर्वक नमस्कार किया और उत्तम आसन पर बठाया। तब आरिका बोली-पूर्व पुण्य से तुझे राजसंपवा और वैभव मिला। तू इस जन्म में भी धर्म कर । तने देषवश भगवान की प्रतिमा प्रपा दी है, वह दे दे । प्रतिमा चुराने जैसा पाप संसार में दूसरा मही है। इससे नरक गति में माना पाता है। दमोदरी यह सुनकर भयभीत हो गई और उसने प्रतिमा लाकर दे दी, बड़ा प्रायश्चित्त किया, पूजा और प्रभावना की। हेमोदरी ने केवल बाईस घड़ी तक भगवान की प्रतिमा को छिपाये रखा था। उसका यह फल भोगना पड़ा कि उसे अंजना के जन्म में बाईस वर्ष तक पति का वियोग सहना पड़ा।
SR No.090192
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size15 MB
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