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________________ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास सेकी राजहुआ तो अत्यन्त क्रुद्ध होकर सेना लेकर लंका पर आक्रमण कर दिया और निति को मारकर पुनः लंका का राज्य प्राप्त कर लिया तथा राक्षसबंधी पुनः घानन्द से लंका में रहने लगे। उस समय रचनपुर नगर का राजा सहकार था उसकी रानी मानसमुन्दरी को गर्भ के समय इन्द्र जैसी क्रीडा करने की इच्छा होती थी। अतः राजा रानी खूब कीड़ा किया करते थे। जब पुत्र उत्पन्न हुआ तो उसका नाम इन्द्र रक्खा । इन्द्र बड़ा बलवान था। युवा होने पर उसने घपने वैभव आदि इन्द्र जैसे ही बनाने शुरू किये। अपने महल का नाम वैजयन्त रक्खा। अपने हाथी का नाम ऐरावत सभा का नाम सुधर्ना, नर्तकियों का नाम उवंशी, तिलोतमा खवा नागरिकों को देव संज्ञा दी। मंत्री का नाम वृहस्पति, सेनापति का नाम हिरण्यकेश रक्खा। लोकपालों की चारों दिशाओं में नियुक्ति की, जिनके नाम उसने सोम, वरुण, कुबेर औौर यम रक्ते अपनी रानी का नाम शची रक्खा। इसने विजयार्ध की दोनों श्रेणियाँ जीत लीं । 1 एक बार लंकापति माली विजयार्ध की दोनों श्रेणियों को जीतने के लिए विशाल सेना लेकर चला । उसके साथ में वानरवंशी राजा सूरज और वक्षरज भी थे। इन्द्र से उनका भयानक युद्ध हुआ। इस युद्ध में माली मारा गया और राक्षस सेना युद्ध से भाग गई। तब इन्द्र के लोकपाल सोम ने लंका घोर किष्किन्धा पर अधिकार कर लिया। राक्षस और बानरवशी पाताल लंका में जाकर रहने लगे 1 सुमाली के रत्नश्रव नामक पुत्र हुआ। उसका विवाह केकसी से हो गया । केकसी ने एक रात को सोन स्वप्न देखे - एक तो क्रोध से उद्धत सिंह देखा, दूसरा उगता हुआ सूर्य देखा और वासरा परिपूर्ण चन्द्रमा देखा। रानी ने अपने स्वप्नों का हाल पति से कहा। राजा ने विचार कर कहा-प्रिये ! तुम्हारे सीन पुत्र होंगे - एक तो महान योद्धा और पाप कर्म में समर्थ होगा तथा दो कुटुम्ब को सुख देने वाले पुण्य पुरुष होंगे । २०० जब रावण गर्भ में भाया तो रानी अहंकार में भर उठी। वह बात-बात में सिह्नी की तरह दहाड़ उठती थी। यथासमय रावण का जन्म हुआ। एक दिन बालक इन्द्र द्वारा प्रदत्त उस रस्महार के पास पहुँच गया, जिसकी रक्षा हजार नागकुमार देव करते थे। उसने वह हार उठा लिया। सब लोग बालक की महान शक्ति पर माश्चर्य करने लगे। उस हार में नौ रत्न लगे थे । उनमें रावण के नौ मुख और दिखाई देने लगे। तब सब लोगों ने प्यार में बालक का नाम दशानन रख दिया। T कुछ समय के पश्चात् केकसी के कुम्भकर्ण नामक दूसरा पुत्र हुआ। बाद में पूर्ण चन्द्रमा के समान चन्द्रनखा नामक पुत्री हुई और फिर विभीषण नाम का पुत्र हुआ। 1 एक दिन माता केकसी अपने पुत्रों के साथ महल की छत पर बैठी हुई थी। तभी प्राकाश में पुष्पक विमान जाता दिखाई दिया उसे देखकर रावण ने माता से पूछा-मां! यह महा विभूति वाला कौन जा रहा है। तब माता बोली-पुत्र ! यह तेरी मोसी कौशिकी का पुत्र वैश्रवण ( कुबेर ) है। यह विजयार्थ के राजा इन्द्र का लोकपाल है। इन्द्र ने तेरे बाबा माली को मारकर लंका छीन ली थी और इस कुबेर को वहां का लोकपाल बना दिया है। जब से लंका गई है, तब से तेरे पिता और मुझे रात में नींद नहीं पाती है। माता के वचन सुनकर रावण ने माता को धैर्य बंधाया और कहा-मां ! मैं जल्दी ही विजयार्ष के विद्याधरों को हराकर लंका पर अधिकार करूंगा तू लोक धौर चिन्ता छोड़ दे। इसके पश्चात् तीनों भाई वहाँ से भीम नामक वन में जाकर घोर तपस्या करने लगे। कुछ ही समय में रावण को एक हजार विद्यायें सिद्ध हो गई, कुम्भकर्ण को पांच और विभीषण को चार विद्यायें सिद्ध हो गई। इसके बाद रावण ने पुनः तपस्या की मौर चन्द्रहास नामक तलवार प्राप्त हुई विद्या-सिद्धि के समाचार जानकर सारे कुटुम्बी वहाँ भा गये और बड़ा हर्ष मनाने लगे। 1 एक दिन अनुरसंगीतनगर का दैत्य नरेश मय अपनी पुत्री मन्दोदरी को लेकर वहाँ आया। उसके साथ में मारीच मादि उसके मंत्री भी थे। मन्दोदरी अत्यन्त सुन्दरी गुणवती कन्या थी। राजा मय ने अपनी उस कन्या का विवाह रावण के साथ धूमधाम से कर दिया। इसके बाद रावण ने पद्म श्री अशोकलता, विद्युत्प्रभा आदि अनेक राजकन्याओं के साथ विवाह किये
SR No.090192
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size15 MB
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