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________________ बलभद्र राम, नारायण लक्ष्मरा और प्रतिनारायण रावण १९५ जरासंघ के काल में हुई । वह बड़ा प्रतापी नरेश था। उसने बाहुबल द्वारा भरतक्षेत्र के प्राधे मगध साम्राज्य की भाग पर अधिकार कर लिया था। मथरा नरेश कंस उसका दामाद और माण्डलिक राजा राजधानी के रूप में था। वह बड़ा ऋर और अहंकारी था। श्रीकृष्ण ने उसे मारकर प्रजा को उसके अन्याय अत्याचारों से मुक्त किया। किन्तु उससे यादव लोग सम्राट् जरासन्ध के कोप के शिकार हुए। उसने सत्रह वार मथुरा के यादवों पर माक्रमण किये । इन रोज-रोज के प्राक्रमणों से परेशान होकर और शक्ति संचित करने के लिए श्रीकृष्ण के नेतृत्व में यादवों ने मथुरा, शौर्यपुर और वीर्यपुर को छोड़ दिया और पश्चिम में जाकर समुद्र के मध्य में द्वारका बसाकर रहने लगे। कुछ समय पश्चात् कुरुक्षेत्र के मैदान में जरासन्ध और यादवों का निर्णायक युद्ध हुना। उसमें श्रीकृष्ण ने जरासन्ध को मार दिया और वे अर्धचक्री नारायण बने। नारायण श्रीकृष्ण ने अपनी राजधानी द्वारका को ही रखा। इससे राजगह-जो उस समय गिरिराज कहलाती था-का महत्व कम हो गया। इसके पश्चात् राजगृह का राजनैतिक महत्त्व शिशुनागवंशो सम्राट् श्रेणिक विम्बसार के काल में बढ़ा। श्रेणिक ने राजगह को ही अपनी राजधानी बनाया। उसका शासन-काल ई०पू०६०१ से ५५२ माना जाता है। श्रेणिक के शासन काल में मगध साम्राज्य उत्तरी भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य माना जाता था। श्रेणिक प्रारम्भ में म० बुद्ध का अनुयायी था, किन्तु बाद में वह भगवान महायोर का अनुयायो बन गया। श्रेणिक के पश्चात् अजातशत्रु राजगृही का शासक बन गया। उसने अपने वृद्ध पिता को कारागार में डालकर बलात् शासन हथिया लिया। उसने प्रनेक राज्यों को जीतकर उन्हें अपने राज्य में मिला लिया । वैशाली और मल्ल गणसंघों का विनाश उसी ने किया। उसके राज्य-काल के प्रारम्भ के वर्षों में राजगृह मगष साम्राज्य की राजधानी रही। किन्तु बाद में उसने चम्पा को अपनी राजधानी बना लिया। उसके बाद उसके पुत्र. उदायि ने पाटलिपुत्र नगर बसाकर उसे अपनी राजधानी बनाया । इसके बाद राजगह कभी अपने पूर्व गोरव को प्राप्त नहीं कर सको। माजकल राजगृह नगर एक साधारण कस्या है। उसका महत्व तीर्थ के रूप में है । जैन लोग राजगृह के विपुलाचल, रत्नागिरि, उदयगिरि, श्रवणगिरि और वैभारगिरि को अपना तीर्थ मानते हैं। उन्हें पंचपहाड़ी भी कहा जाता है। बोर लोग गद्धकूट पर्वत को प्रपना तीर्थ मानते हैं तथा सप्तपर्णी गुफा में प्रथम वर्तमान राजगृह बौद्ध संगीति हुई थी, ऐसा माना जाता है । यहाँ सोनभण्डार गुफा, मनियारमठ, बिम्बसार बन्दीगृह, जरासन्ध का प्रसाडा और प्राचीन किले के मवशेष दर्शनीय हैं । यहाँ गर्म जल के स्रोत हैं, जिनका जल अत्यन्त स्वास्थ्यकर है। बलभद्र राम, नारायण लक्ष्मण और प्रतिनारायण रावण मलय देश में रत्नपुर नामक नगर था। उसमें प्रजापति राजा राज्य करते थे। उनकी पटरानी का नाम गुणकान्ता था। उनके चन्द्रचूल नामक एक पुत्र था । महाराज के मन्त्री के पुत्र का नाम विजय था। चन्द्रचूस्ट
SR No.090192
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size15 MB
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