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________________ भगवान शान्तिनाथ यहीं पर बलि मादि मंत्रियों ने सात दिन का राज्य पाकर अपनाचार्य के संघ के सात सौ मुनियों की बलि देकर यज्ञ-विधान का ढोंग रचा था । तब मुनि विष्णुकुमार ने वामन ब्राह्म का रूप घरती की याचना की थी। बलि द्वारा संकल्प करने पर मुनिराज ने विक्रियाऋद्धि से अपना शरीर बढ़ाकर एक पग सुमेरु पर्वत पर रखा। दूसरा पग मानुषोत्तर पर्वत पर रक्खा। अब तीसरे पग लायक भूमि की मांग उन्होंने की। सारे लोक में अातंक छा गया । बलि प्रादि चारों मंत्री भय के मारे कांपने लगे। वे मुनि विष्णकुमार के चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगे । तत्काल मुनियों के चारों ओर लगाई हुई प्राग बुझाई गई। सब लोगों ने मुनियों की पूजा की और साधर्मीवात्सल्य के नाते परस्पर में रक्षा सूत्र बांधा। तबसे इस घटना की स्मृति में रक्षा-बन्धन का महान पवं प्रचलित हो गया जो धावण शुक्ला पूर्णिमा को उल्लासपूर्वक मनाया जाता है । यहीं पर पाण्डव और कौरव हुए थे और राज्य के लिए दोनों पक्षों में महाभारत नामक प्रसिद्ध महायुद्ध हुप्रा था। एक बार दमदत्त नामक मुनि उद्यान में विराजमान थे। कौरव उधर से निकले । मुनि को देखते ही वे उन पर पत्थर बरसाने लगे। थोड़ी देर बाद पाण्डव आये। उन्होंने मुनिराज की चरण-वन्दना की और पत्थर हटाये । मुनि तो ध्यानलीन थे। उन्हें उसी समय केवलज्ञान हो गया। कवि बनारसीदास के 'अर्धकथानक' से ज्ञात होता है कि सन् १६०० में कविवर ने यहाँ की सकुटम्ब यात्रा की थी। अधंकथानक से यह भी ज्ञात होता है कि उस काल में भी यहाँ जैन यात्री यात्रा के लिए बराबर माते रहते थे। ___ वर्तमान मन्दिर का भी बड़ा रोचक इतिहास है। यहां पर संवत् १८५८ में ज्येष्ठ वदी तेरस को मेला था। इसमें दिल्ली से राजा हरसुखराय, शाहपुर से लाला जयकुमारमल आदि समाजमान्य सज्जन पाये थे। सभी लोग चाहते थे कि यहाँ जैन मन्दिर बनना चाहिये। प्राचीन मन्दिर द-फट गये थे। नसियों की हालत खस्ता थी। लोगों ने राजा हरसुखराय से मन्दिर निर्माण की प्रार्थना की । राजा साहब मुगल बादशाह शाह पालम के खजांची थे और उनका बड़ा प्रभाव था। राजा साहब ने मन्दिर बनाने की स्वीकृति दे दी। लेकिन मन्दिर बनने में कठिनाई यह थी कि शाहपुर के गूजर जैन मन्दिर बनाने का विरोध करते थे। यह इलाका बहसूमे के गजर नरेश ननसिंह के मधिकार में था। राजा नैनसिंह के मित्र लाला जयकुमारमल भी वहां मौजूद थे। राजा साहब ने उनसे प्रेरणा की कि आप नैनसिंह जी से कह कर काम करा दीजिये। लाला जी ने अवसर देखकर नैनसिंह से मन्दिर की चर्चा छेड़ दो। उसमें राजा साहब का भी जिक्र ग्राया। नैनसिंह जी राजा साहब से कई मामलों में प्राभार से दबे हुए थे। अतः उन्होंने मंजूरी दे दी और मन्दिर का शिलान्यास करने की भी स्वीकृति दे दी। दूसरे ही दिन सैकड़ों लोगों की उपस्थिति में राजा नैनसिंह ने मन्दिर को नींव में पंच ईट अपने हाथ से रक्खीं। राजा हरसुखराय के धन थे लाला जयकुमारमल की देख-रेख में मन्दिर का निर्माण हुमा। जब मन्दिर का कार्य कुछ बाकी रह गया, तब राजा साहब ने जनता की उपस्थिति में समाज के पंचों से हाथ जोड़कर निवेदन किया-सरदारो! जितनी मेरी शक्ति थो, उतना मैंने कर दिया। मन्दिर आप सबका है। इसलिये इसमें सबको मदद करनी चाहिये।' वहाँ एक घड़ा रख दिया गया। सबने उसमें अपनी शक्ति के अनुसार दान डाला। लेकिन जो धन उससे संग्रह हुआ, वह बहुत कम था। राजा साहब का उद्देश्य इतना ही था कि मन्दिर पंचायती रहे और वे अहंकार में ग्रस्त न हो जायें। ___ संवत् १८६३ में राजा साहब ने कलशारोहण और वेदी प्रतिष्ठा का कार्य सम्पन्न कराया। संवत् १८९७ में लाला जयकुमारमल ने मन्दिर का विशाल द्वार बनवाया । मन्दिर के चारों ओर पांच विशाल धर्मशालायें हैं। सन १८५७ में गदर के समय गूजरों ने इस मन्दिर को लूट लिया। वे लोग मूलनायक पार्श्वनाथ की प्रतिमा भी उठा ले गये। बाद में फिर एक बार मन्दिर को लूटा । नया मन्दिर दिल्ली से भगवान शान्तिनाथ की
SR No.090192
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size15 MB
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