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भगवान शीतलनाथ
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काल तक यश देने वाला है।' यह कहकर उसने अपने बनाये हुए शास्त्र को खोलकर उसे सबको सुना दिया । राजा उसकी बातों से बड़ा प्रसन्न द्वश्रा और उसने मुण्डलायन को पृथ्वी और सुवर्ण का दान देकर सम्मानित किया।
इसके बाद उत्साहित होकर मुण्डलायन ने दस प्रकार के दानों का विधान किया (१) कन्यादान (२) सुवर्णदान ( ३ ) हस्तिदान ( ४ ) प्रश्वदान (2) नोदान (३) शन (७) तिदान (5) रथदान
(६) भूमिदान और (१०) गृहदान |
तबसे पूर्वाचार्यों द्वारा प्रणीत दानों के स्थान पर इन दानों की परम्परा चल पड़ी।