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________________ भगवान सम्भवनाथ ११६ तो वह अपने पीछे अपने भानजे सैयद सालार मसऊद गाजी को बहत बड़ी सेना देकर अवध-विजय के लिये छोड़ गया। वह प्रवव को जीतता हुआ बहराइच तक पहुँच गया। उस समय श्रावस्ती का राजा सुहलदेव अथवा सुहृद्ध्वज था। वह जैन था। जैन युद्ध में कभी पीछे नहीं हटे। सुहलदेव भी सेना सजाकर कौडियाला के मैदान में पहुँचा । गाजी और सुहलदेव' का वहाँ डटकर मोर्चा हुआ । इस युद्ध में सन् १०३४ में सैयद सालार और उसकी सारी फौज सूहलदेव के हाथों मारी गई। जैन राजा जितने अहिंसक होते थे, उतने देशभक्त और वीर भी होते थे। किसी जैन राजा ने कभी देश के प्रति विश्वासघात किया हो अथवा युद्ध से मुह मोड़ कर भागा हो, ऐसा एक भी उदाहरण इतिहास में नहीं मिलता। कभी यह नगरी अत्यन्त समृद्ध थी। किन्तु प्रातताइयों ने या प्रकृति ने इसे खण्डहर के रूप में परिवर्तित कर दिया। ये खण्डहर सहेट महेट नाम से मीलों में बिखरे पड़े हैं। यहां पुरातत्व विभाग की ओर से कई बार हो चुकी है। फलतः यहाँ महत्त्वपूर्ण पुरातत्व सामग्री निकली है । इस सामग्री में जैन स्तूपों और पुरातत्त्व मन्दिरों के अवशेष, मूर्तियाँ, ताम्रपत्र आदि भी निकले हैं । सहेट भाग में प्रायः बौद्ध सामग्री मिली है और महेट भाग में प्रायः जैन सामग्री । यह सामग्री ईसा पूर्व चौथी शताब्दी से लेकर बारहवीं शताब्दी तक की है। इमलिया दरवाजे के निकट भगवान सम्भवनाथ का जीर्ण शीर्ण मन्दिर खड़ा है। यह अब सोमनाथ का मन्दिर कहलाता है, जो संभवनाथ का ही विकृत रूप है । खुदाई के समय यहाँ अनेक जन मूर्तियां मिली थीं। इनके अतिरिक्त चैत्यवृक्ष, शासन देवताओं की मूर्तियां भी प्राप्त हुई थी। ये सब प्रायः ११-१२ वीं शताब्दी की हैं। पुरातत्त्ववेत्तानों की मान्यता है कि यहाँ प्रासपास अठारह जैन मन्दिर थे, जिनके अवशेषों पर प्रब झाड़ियां और पेड़ उग आये हैं। कुछ लोगों की मान्यता है कि चन्द्रप्रभ भगवान का जन्म स्थान यहीं पर था। - यहाँ बौद्धों के तीन नवीन मन्दिर बन चुके हैं और वैशाखी पूर्णिमा को उनका मेला लगता है, जिसमें अनेक देशों के बौद्ध पाते हैं।
SR No.090192
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size15 MB
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