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________________ मरत- बाहुबली - युद्ध ६५ और किसानों के द्वारा बड़े यत्न से जिनकी रक्षा की जा रही है ऐसे धान के गुच्छों को देखते हुए दूत ने मनुष्यों को बड़ा स्वार्थी समझा था । इस विवरण से प्रतीत होता है कि पोदनपुर के निकट धान की खेती बहुलता से होती थी । आगे इसी पर्व के श्लोक ३७ में ईख का वर्णन मिलता है। स्त्रियों के वर्णन में कवि ने उनकी श्रृंगारसज्जा पर भी कुछ प्रकाश डाला है। इसमें बताया है कि वहाँ की कृषक बालाओं ने धान की बालों से अपने कान के ग्राभूषण बनाए थे। नील कमलों की मालाओं से अपनी चोटियाँ बांध रक्खी थीं। उन्होंने तोते के रंग वाली हरी चोलिया पहन रक्खी थीं ( श्लोक ३२-३६) उपर्युक्त विवरण से पोदनपुर की फसलों, स्त्रियों के श्रृंगार प्रसाधनों और देष भूषा पर कुछ प्रकाश पड़ता है । हरिवंश पुराण के कर्ता प्राचार्य जिनसेन बाहुबली को पोदनपुर नरेश तो स्वीकार करते हैं किन्तु दोनों पक्षों की नामों की मंदी के विभाग में मानते हैं। संभवतः वितता से उनका भ्राशय वितस्ता (झेलम) नदी से है । किन्तु झेलम के पश्चिम दिग्भाग में न तो धान की खेती होती है, न ईख होती है और न स्त्रियों का परिधान और शृंगार वैसा होता है जैसा कि आदि पुराण में बताया गया है। इससे लगता है कि दोनों पुराणों में पोदनपुर की स्थिति के सम्बन्ध में ऐकमत्य नहीं था । हरिषेण कथाकोष कथा २३ में पोदनपुर की अवस्थिति पर कुछ प्रकाश डाला गया है- 'प्रथोत्तरापथे येथे पुरे पोदननामनि' अर्थात् पोदनपुर नामक नगर उत्तरापथ देश में था। इसी प्रकार कथा २५ में इसी के समर्थन में कहा गया है - 'प्रयोत्तरापथे देशे पोदनाख्ये पुरेऽभवत् ।' उत्तरापथ से प्राशय तक्षशिला से है । feन्तु इसके विरुद्ध बाहुबली की मान्यता दक्षिण भारत में सर्वाधिक रही है मोर भरत ने बाहुबली की जिस स्वर्ण- प्रतिमा का निर्माण कराया था, वह दक्षिण भारत में थो तथा उसकी पूजा रामचन्द्र, रावण और मन्दोदरी ने की थी, इसका समर्थन राजाबलि कथे और मुनिवंशाभ्युदय काव्य से भी होता है तथा श्रादिपुराण में घान और ई की फसलों और कृषक बालाओं के परिधान मादि का जो वर्णन किया है, वह भी दक्षिण भारत की परम्परा से मिलता है । उत्तर पुराणकार प्राचार्य गुणभट्ट ने स्पष्ट शब्दों में पोदनपुर को दक्षिण भारत में स्वीकार किया है। यथा- जम्बू विशेषणं द्वीपे भरते दक्षिणे महाम् । सुरम्यो विषयस्तत्र विस्तीर्ण पोवनं पुरम, २७३/६ अर्थात् जम्बूद्वीप के दक्षिण भरत क्षेत्र में एक सुरम्य नामक बड़ा भारी देश है और वहाँ बड़ा विस्तृत पोदनपुर नगर है । श्री वादिराज सूरि ने भी पार्श्वनाथ चरित सर्ग १ श्लोक ३७-३८ में और सर्ग २ श्लोक ६५ में पोदनपुर को सुरभ्य देश में बताया है। इस काव्य ग्रन्थ में सुरम्य देश को शालि चावलों के खेतों से भरा हुमा बताया है। यह कथन प्रादिपुराण के कथन से मेल खाता है । सोमवेव विरचित मशस्तिलक चम्पू ( उपासकाध्ययन) में 'रम्यक देश में विस्तृत पोदनपुर के निवासी' ऐसा कमन मिलता है- 'रम्यक देश निवेशोपेत पोदनपुर निवेशिनो' पुण्यास्रव कथाकोष कथा २ में 'सुरम्य देशस्य पोदनेश' ऐसा वाक्य है । जैन साहित्य के अतिरिक्त जेनेतर साहित्य में भी पोवनपुर का उल्लेख पोटलि (पोतलि), पोवन, पोतन भादि नामों से मिलता है। बौद्ध ग्रन्थ चुहलकलिंग मस्तक जातक में पोटलि को मस्सक जनपद की राजधानी बताया हैं और मस्सक देश को गोदावरी नदी के निकट सबंध पर्वत पश्चिमी घाट भीर गोदावरी के निकट बताया है। सुत्तनिपात ९७७ में प्रस्मक को गोदावरी के निकट बताया है। पाणिनि ११३७३ प्रश्मक को दक्षिण प्रान्त में बताते हैं। महाभारत ( द्रोण पर्व) में अश्मक पुत्र का वर्णन है । उसकी राजधानी पोतन या पातलि थी। इसमें पोदन्य नाम भी दिया है। हेमचन्द राय चौधरी ने महाभारत के पोदन्य और बौद्ध ग्रन्थों के पोत्तन की पहचान माधुनिक बोधन से 1
SR No.090192
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size15 MB
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