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________________ 34 गणितसारसंग्रह geometrical survey material very like that of Liu Hui of the +3rd "" ____ जहाँ तैत्तिरीय संहिता में केवल २७ नक्षत्रों को मान्यता दी है, वहाँ चीन में २८ नक्षत्र माने गये हैं। तिलोय पण्णत्ती में भी १चंद्र के २८ नक्षत्र माने गये हैं (७-४६५ ), तथा चंद्र के कारणभूत शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में पातालों के पवन का बढ़ना और घटना बतलाया गया है (४-२४०३) । यहाँ इस तथ्य से समानता रखता हुआ यूनान और चीन से सम्बन्धित उल्लेख ध्यान देने योग्य है । जहाँ ईसा पूर्व सातवीं सदी के चीनी ताओ सिद्धान्त के ग्रन्थ कुआन न ( Kuan Tzu) में चंद्रमा के शुक्ल और कृष्ण पक्ष में समुद्री जीवों का बढ़ना और घटना बतलाया है, वहाँ यूनान में एरिस्टाटिल (Aristotle) ने भी यही उल्लिखित किया है। गणित सम्बन्धी अन्य तुलनाएं तिलोय पण्णत्ती के गणित तथा टोडरमल की गोम्मटसार टीका आदि से की जा सकती हैं। इस सम्बन्ध में उल्लिखित ग्रन्थ के अन्य भाग (१-७) भी द्रष्टव्य हैं। यहाँ इतना कहना आवश्यक है कि वर्द्धमान महावीर के तीर्थ में अनन्तात्मक राशियों का अल्पबहुत्व अन्यत्र कहीं देखने में नहीं आया है । दर्शन में गणित के प्रयुक्त करने की अनुपम प्रणाली "अल्प बहत्त्व" में परिलक्षित होती है। केशववर्णी की गोम्मटसार टीका में इस तथा अन्य विषयक प्ररूपणा में प्रयुक्त प्रतीकों में शून्य, धन और ऋणादि के लिये एक से अधिक चिह्न उपयोग में लाये गये हैं, जो ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। उपर्युक्त अवलोकन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि पिथेगोरस कालीन अखिल विश्व में जो गणित युक्त दर्शन का पुनर्जागरण हुआ, उसके इतिहास की भग्न शृंखला की एक कड़ी वर्द्धमान महावीर का तीर्थ कालीन लोकोत्तर गणित (अर्थमितिकी) भी है। * Ibid. p. 213. + Ibid. p. 150. चीनी n के मान ३, V०, ३५७ तथा दाशमिक पद्धति सहित शलाका गणन द्रष्टव्य हैं।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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