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गणितसारसंग्रह
the Indians sought for an ascetic virtue which would enable them to dominate the gods themselves (cf. Wilkins' ), the Taoists sought a material immortality in a universe in which there were no gods to overcome, and asceticism was only one of the methods which they were prepared to use to attain their end.'* । उपर्युक्त तुलना में हम शुभचंद्राचार्य के 'ज्ञानार्णव' की ओर पाठकों का ध्यान आकर्षित करेंगे,
जहाँ आत्मा के व्यक्तित्व के चरम विकास के लिये (अंततः मुक्ति के लिए) प्राणायाम को विघ्न का कारण निरूपित किया है
सम्यक समाधि सिद्धयर्थ प्रत्याहारः प्रशस्यते । प्राणायामेन विक्षिप्तं मनः स्वास्थ्यं न विन्दति ॥ ४ ॥ वायोः संचार चातुर्य मणि माद्यङ्ग साधनम् । प्रायः प्रत्यूह बीजं स्यान्मुनेर्मुक्तिमभीप्सतः॥६॥ प्राणस्यायमने पीडा तस्वां स्यादा सम्भवः। तेन प्रच्याव्यते नूनं ज्ञात तत्वोऽपि लक्ष्यतः ॥ ९ ॥ नातिरिक्तं फलं सूत्रे प्राणायामात्प्रकीर्तितम् । अतस्तदर्थ मस्माभिर्नातिरिक्तः कृतः श्रमः ॥११॥
(प्रकरण संख्या ३०) ... साथ ही वर्द्धमान महावीर के तीर्थ में सिद्ध पद प्राप्त करने हेतु सम्यक् तप को जो प्रधानता दी गई थी वह परम्परा से प्रचलित प्रतिक्रमण में इस प्रकार दृष्टिगत होती है ।
"तवसिद्ध जयसिद्ध संजमसिद्ध चरित्तसिद्धे य।
जाणम्मि दंसम्मि य सिद्धे सिरसा णमंसामि ॥" (२)चीन और भारत के बीच सम्बन्ध जोड़ने वाला एक तथ्य और है, “परिमित क्षेत्र की अनन्त विभाज्यता का खंडन ।" इसके साथ ही सम्बन्धित युगपतत्व (simultaneity) और परमाणु सम्बन्धी तथ्य हैं जिनके लिये वर्द्धमान महावीर के तीर्थ में संकलित सामग्री आदि का तुलनात्मक अध्ययन कितना उपयोगी होगा यह निम्नलिखित उद्धरण से स्पष्ट हो जावेगा,
"Finally, he discusses the relation between the paradoxes of Hui Shih? and the Eleatic paradoxes, without attaining any definite conclusion - the correspondence is, indeed, another example of that extraordinary simultaneity between phenomena which we sometimes find at the two ends of the Old World. For the date of Hui Shiha is late -5th century, and Eleatic Zeno's floruit is placed about-460."
* Ibid. p. 153. + Ibid. p. 154.