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________________ परिशिष्ट-५ डॉ० हीरालाल जैन ने जब सन् १९२३ - २४ में कारंजा के जैन भण्डारों की ग्रन्थसूची तैयार की थी तभी से उन्हें वहाँ की गणितसार संग्रह की प्राचीन प्रतियों की जानकारी थी । प्रस्तुत ग्रन्थ के पुनः सम्पादन का विचार उत्पन्न होते ही उन्होंने उन प्रतियों को प्राप्त कर उनके पाठान्तर लेने का प्रयत्न किया। इस कार्य में उन्हें उनके प्रिय शिष्य व वर्तमान में पाली प्राकृत के प्राध्यापक श्री जगदीश किल्लेदार से बहुत सहायता मिली। उक्त प्रतियों का जो परिचय तथा उनमें से उपलब्ध टिप्पण यहाँ प्रस्तुत किये जा रहे हैं वे उक्त प्रयास का ही फल है । अतः सम्पादक उक्त सज्जनों के बहुत अनुग्रहीत हैं । कारंजा जैन भण्डार की प्रतियों का परिचय क्रमांक - अ० नं० ६३ ( १ ) ( मुख पृष्ठ पर ) छत्तीसी गणित ग्रंथ ( १ ) - ( पुष्पिका में ) सारसंग्रह गणितशास्त्र । ( २ ) पत्र ४९ - प्रति पत्र ११ पंक्तियाँ- आकार ११. ७५४५" (३) प्रथम व्यवहार पत्र १५, द्वितीय २२ (१), द्वितीय ३२, तृतीय ३७, चतुर्थ ४२ ( ४ ) प्रारंभ - ॥ ८० ॥ ॐ नमः सिद्धेभ्यः ॥ अलंघ्यं त्रिजगत्सारं ३० (५) अन्तिम - ( पत्र ४२ ) इति सारसंग्रहे नाम चतुर्थो व्यवहारः समाप्तः ॥ श्रीवीतरागाय नमः ॥ छ ॥ छत्तीसमेतेन सकल ८ भिन्न ८ भिन्नजाति ६ प्रकीर्णक १० त्रैराशिक ४ इंत्ता ३६ नू छत्तीसमे बुदु वीराचार्यरू पेल्हगणितवनु माधवचंद्रत्रैविद्याचार्यरु शोधिसिदरा गि शोध्य सारसंग्रहमे निसिकोंबुदु | वर्ग्रसंकलितानयनसूत्रं ॥ गणितशास्त्रे महावीराचार्यस्य कृतौ त्रिराशिको (६) अन्तिम - ( पत्र ४९ ) घनं ३५ अंकसंदृष्टिः छः ॥ इति छत्तीसीगणितग्रंथसमाप्तः ॥ छ ॥ छ ॥ श्रीः ॥ शुभं भूयात् सर्वेषां ॥ ॥ संवत् १७०२ वर्षे मात्र शिर वदी ४ बुधे संवत् १७०२ वर्षे माह श्रुदि ३ शुक्ले श्रीमूलसंघे सरस्वतीगछे बलात्कारगणे श्रीकुंद कुंदाचार्यान्वये भ० श्रीसकल कीर्तिदेवास्तदन्वये भ० श्रीवादिभूषण तत्पट्टे भ० श्रीरामकीर्तितत्पट्टे भ० श्रीपद्मनंदीविराजमाने आचार्यश्रीनरेंद्रकीर्त्तिस्तच्छिष्य ब्र० श्रीलायका तच्छिष्य ब्र० कामराजस्त च्छिष्य ब्र० लालजि ताभ्यां श्रीरायदेशे श्रीभीलोडानगरे श्रीचंद्रप्रभचैत्यालये दोसी कुंहा भार्या पदमा तयोः सुतौ दोसी केशर भार्या लाछा द्वितीय सुत दोसी वीरभाण भार्या जितादे ताभ्यां स्वज्ञानावर्णिकर्मक्षयार्थं निजद्रव्येण लिखाप्य छत्तीसीगणितशास्त्रं दत्तं श्रीरस्तु ॥ (७) प्राप्तिस्थान- बलात्कारगणमंदिर, कारंजा, अ० नं० ६३ (८) स्थिति उत्कृष्ट, अक्षर स्पष्ट, ( ९ ) विशेषता - पृष्ठमात्रा, टिप्पण - ( समास मे )
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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