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________________ गणितसारसंग्रहः २८० ] शङ्कुच्छायाभक्तं प्रदीपशङ्कन्तरं सैकम् । शङ्खप्रमाणगुणितं लब्धं दीपोन्नतिर्भवति ।। ४५ ।। अत्रोद्देशकः शङ्कुच्छायाद्विनिघ्नेव द्विशतं शङ्कदीपयोः । अन्तरं ह्यङ्गुलान्यत्र का दोपस्य समुन्नतिः ॥ ४६ ॥ शंकु प्रमाणमत्रापि द्वादशाङ्गुलकं गते । ज्ञात्वदाहरणे सम्यग्विद्यात्सूत्रार्थपद्धतिम् ।। ४७ । पुरुषस्य पादच्छायां च तत्पादप्रमाणेन वृक्षच्छायां च ज्ञात्वा वृक्षोन्नतेः संख्यानयनस्य च, वृक्षोन्नतिसंख्यां च पुरुषस्य पादच्छायायाः सङ्ख्यानयनस्य च सूत्रम्स्वच्छायया भक्तांनजेष्टवृक्षच्छाया पुनस्सप्तभिराहता सा । वृक्षोन्नतिः साद्रिहृता स्वपादच्छायाहता स्याद्द्रुमभैव नूनम् ॥ ४८ ॥ [ ९. ४५ दीपक और शंकु के क्षैतिज अंतर के माप को, शंकु की छाया द्वारा भाजित किया जाता है। तब इस परिणामी भजनफल में एक जोड़ा जाता है । इस प्रकार प्राप्त राशि जब शंकु की ऊँचाई के माप द्वारा गुणित की जाती है, तब दोपक की ( जमीन से ऊपर की ) ऊँचाई का माप उत्पन्न होता है ॥ ४५ ॥ उदाहरणार्थ प्रश्न शंकु की छाया की लंबाई उसकी ऊँचाई से दुगुनी है। दोपक और शंकु की क्षैतिज दूरी का माप २०० अंगुल है । इस दशा में दीपक की जमीन से ऊँचाई कितनी है ? इसी तथा गत प्रश्न में शंकु की ऊँचाई १२ अंगुल लेकर नियम के साधन का अर्थ भलीभाँति सीख लेना चाहिये ॥ ४६-४७ ॥ में दी गई ) वृक्ष की छाया की लंबाई का माप ज्ञात हों, माप निकालने के लिए नियम; साथ हो जब ( उसी पाद माप तथा मनुष्य की छाया को लंबाई का संख्यात्मक माप की छाया की लंबाई का संख्यात्मक माप निकालने के लिये जब मनुष्य की ( पाद प्रमाण में दी गई ) छाया की लंबाई का माप तथा ( उसी पाद प्रमाण तब उस वृक्ष की ऊँचाई का संख्यात्मक प्रमाण में ) वृक्ष की ऊँचाई का संख्यात्मक ज्ञात हो, तब ( उसी पाद प्रमाण में ) वृक्ष नियम किसी व्यक्ति द्वारा चुने गये वृक्ष की छाया की लंबाई के माप को निज पाद प्रमाण में नापी गई उसकी निज की छाया के माप द्वारा भाजित किया जाता है । इससे वृक्ष को ऊँचाई प्राप्त होती है । यह वृक्ष की ऊँचाई ७ द्वारा भाजित होकर और निज पाद प्रमाण में नापी गई निज की छाया द्वारा गुणित होकर, निःसन्देह, वृक्ष की छाया की शुद्ध लंबाई के माप को उत्पन्न करती है ॥ ४८ ॥ स (४५) इसी प्रकार, = ( + १ )अ (४८) यह नियम उपर्युक्त १२३ वें श्लोक के उत्तरार्द्ध में दिये गये नियम की यहाँ दिये गये नियम में मनुष्य की ऊँचाई और उसके पाद माप के बीच का संबंध गया है । विलोम दशा है । उपयोग में लाया
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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