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________________ २७४] गणितसारसंग्रहः [९.२१ नृच्छायाहतशङ्कुर्भित्तिस्तम्भान्तरोनितो भक्तः । नृच्छाययैव लब्धं शङ्कोभित्त्याश्रितच्छाया ॥ २१ ॥ ___ अत्रोद्देशकः विंशतिहस्तः स्तम्भो भित्तिस्तम्भान्तरं करा अष्टौ । पुरुषच्छाया द्विघ्ना भित्तिगता स्तम्भमा किं स्यात् ॥ २२ ।। स्तम्भप्रमाणं च भित्त्यारूढस्तम्भच्छायासंख्यां च ज्ञात्वा भित्तिस्तम्भान्तरसंख्यानयनसूत्रम्पुरुषच्छायानिघ्नं स्तम्भारूढान्तरं तयोर्मध्यम् । स्तम्भारूढान्तरहृततदन्तरं पौरुषी छाया ।। २३ ।। शंकु की ऊँचाई ( मनुष्य की ऊँचाई के पदों में व्यक्त ) मनुष्य की छाया द्वारा गुणित की जाती है। परिणामी गुणनफल दीवाल और शंकु के बीच की दूरी के माप द्वारा हासित किया जाता है। इस प्रकार प्राप्त अंतर मनुष्य की उपर्युक्त छाया के माप द्वारा भाजित किया जाता है। इस प्रकार प्राप्त भजनफल शंकु की छाया के उस भाग का माप होता है जो दीवाल पर आरूढ़ है ॥ २१ ॥ उदाहरणार्थ प्रश्न कोई स्तंभ २० हस्त ऊँचा है । इस स्तंभ और दीवाल के बीच की दूरी (जो छाया रेखानुसार नापी जाती है) ८ हस्त है । उस समय मनुष्य की छाया मनुष्य की ऊँचाई से दुगुनी है। स्तंभ की छाया का वह कौन-सा भाग है जो दीवाल पर आरूढ़ है ? ॥ २२ ॥ जब दीवाल पर आरूढ़ (पड़ो हुई ) छाया का संख्यात्मक मान तथा स्तंभ की ऊँचाई. दोनों ज्ञात हों, तब दीवाल और स्तंभ के अंतर ( बीच की दूरी) के माप के संख्यात्मक मान को निकालने के लिये नियम स्तंभ की ऊँचाई और दीवाल पर आरूढ़ (पड़ी हुई ) छाया के माप का अंतर ( मनुष्य की ऊँचाई के पदों में व्यक्त ) पुरुष की छाया के माप द्वारा गुणित होकर, उक्त स्तंभ और दीवाल के अंतर की माप को उत्पन्न करता है । इस अंतर का मान, स्तंभ की ऊँचाई और दीवाल पर आरूढ़ (पड़ी हुई) छायांश माप के अंतर द्वारा भाजित किया जाने पर, (मनुष्य को ऊँचाई के पदों में व्यक्त) मानवी छाया का माप उत्पन्न करता है ॥२३॥ (२१) बीजीय रूप से, , जहाँ उ शंकु की ऊँचाई है, अ दीवाल पर आरूढ़ छाया की ऊँचाई के पदों में व्यक्त मनुष्य की छाया का माप है, और स स्तंभ (शंकु) और दीवाल के बीच की दूरी है। नियम का स्पष्टीकरण पार्श्व में ___ दिये गये चित्र द्वारा हो जाता है। यह बात ध्यान में रखने योग्य है कि यहाँ स्तंभ और दीवाल के बीच की दूरी छाया रेखा पर ही नापी जाना चाहिए। (२३ और २६) इस नियम तथा २६ वी गाथा के नियम में २१ वीं गाथा में दिये गये उदाहरणों की विलोम दशा का उल्लेख है। अ- उब-स - - - - - - -- ---- -----
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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