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________________ गणितसारसंग्रहः अत्रोद्देशकः रज्जुर्गणितेन समा समचतुरश्रस्य का तु भुजसंख्या | अपरस्य बाहुसदृशं गणितं तस्यापि मे कथय ।। ११३३ ॥ कर्णो गणितेन समः समचतुरश्रस्य को भवेद्वाहुः । रज्जुर्द्विगुणोऽन्यस्य क्षेत्रस्य धनाच्च मे कथय ।। ११४३ ॥ आयत चतुरश्रस्य क्षेत्रस्य च रज्जुतुल्यमिह गणितम् । गणितं कर्णेन समं क्षेत्रस्यान्यस्य को बाहुः ।। ११५३ ॥ कस्यापि क्षेत्रस्य त्रिगुणो बाहुर्धनाच्च को बाहुः । कर्णश्चतुर्गुणोऽन्यः समचतुरश्रस्य गणित फलात् ।। ११६३ ।। आयतचतुरश्रस्य श्रवणं द्विगुणं त्रिगुणो बाहुः । कोटिचतुर्गुणा तै रज्जुयुतैर्द्विगुणितं गणितम् ॥ ११७३ ।। आयतचतुरश्रस्य क्षेत्रस्य च रज्जुरन रूपसमः । कोटि को बाहुर्वा शीघ्रं विगणय्य मे कथय ॥ ११८ ॥ २१४ ] [ ७. ११३३ उदाहरणार्थ प्रश्न वर्ग क्षेत्र के संबंध में परिमिति का संख्यात्मक माप क्षेत्रफल के माप के बराबर है । आधार का संख्यात्मक माप क्या है ? उसी प्रकार की दूसरी आकृति के संबंध में क्षेत्रफल का माप आधार के माप के बराबर है । उस आकृति के संबंध में आधार का माप बतलाओ ॥ ११३ ॥ किसी समायत (वर्ग) क्षेत्र के संबंध में कर्ण का माप क्षेत्रफल के माप के बराबर है। आधार का साप क्या हो सकता है ? दूसरी उसी प्रकार की आकृति के संबंध में परिमिति का माप, क्षेत्रफल के माप का दुगुना है। आधार का माप बतलाओं ॥ ११४२ ॥ आयत क्षेत्र के संबंध में यहाँ क्षेत्रफल का माप परिमिति के माप के तुल्य है, और दूसरे उसी प्रकार के क्षेत्र के संबंध में क्षेत्रफल का संख्यात्मक माप कर्ण के माप के बराबर है। प्रत्येक दशा में आधार का माप क्या है ? ॥ ११५ ॥ किसी वर्ग क्षेत्र के संबंध में आधार का संख्यात्मक मान क्षेत्रफल के माप से तिगुना है। दूसरे वर्ग क्षेत्र के संबंध में कर्ण का संख्यात्मक मान क्षेत्रफल के माप से चौगुना है। इनमें से प्रत्येक दशा में आधार का माप क्या है ? ॥ ११६ ॥ किसी आयत क्षेत्र में कर्ण के माप से दुगुनी राशि, आधार से तिगुनी राशि तथा लंब भुजा से चौगुनी राशि लेकर उन में परिमिति का माप जोड़ा जाता है । इस प्राप्त योगफल से दुगुनी राशि क्षेत्रफल का संख्यात्मक माप होती है । आधार का माप बतलाओ ॥ ११७३ ॥ आयत क्षेत्र के संबंध में परिमिति का संख्यात्मक मान १ है । गणना के पश्चात् यह नियम दूसरी रीति भी निर्दिष्ट करता है जो व्यावहारिक रूप में उसी प्रकार है । वह गुणनखंड जिससे क्षेत्रफल २५ को गुणित किया जाता है, ताकि वह परिमिति के माप २० के बराबर हो जावे, है । यदि मन से चुनी हुई आकृति की भुजा ( जो माप में ५ मान ली गई है ) को इस गुणनखंड से गुणित किया जावे तो इष्ट आकृति की भुजा का माप प्राप्त होता है ।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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