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क्षेत्रगणितव्यवहारः
अत्रोद्देशकः
ज्या षड्विंशतिरेषा त्रयोदशेषुश्च कार्मुकं दृष्टम् । किं गणितमस्य काष्ठं किं वाचक्ष्वाशु मे गणक ॥ ४४ ॥ बाणगुणप्रमाणानयनसूत्रम् -
-७. ४६ ]
गुणचापकृतिविशेषात् पञ्चहृतात्पदमिषुः समुद्दिष्टः । शरवर्गात्पञ्चगुणादूना धनुषः कृतिः पदं जीवा ॥ ४५ ॥ अत्रोद्देशकः
अस्य धनुः क्षेत्रस्य शरोऽत्र न ज्ञायते परस्यापि । न ज्ञायते च मौर्वी तद्वयमाचक्ष्व गणितज्ञ ॥ ४६ ॥
उदाहरणार्थ प्रश्न
एक धनुषाकार क्षेत्र की डोरी २६ एवं बाण १३ है । हे गणक, शीघ्रही मुझे इसके क्षेत्रफल और झुके हुए काष्ठ का माप बतलाओ ॥ ४४ ॥
धनुषाकार क्षेत्र के सम्बन्ध में बाणसाप और गुण ( डोरी ) प्रमाण निकालने के लिये नियमढो और झुके हुए धनुष के वर्गों के अन्तर को ५ द्वारा भाजित करते हैं । परिणामी भजन फल का वर्गमूल बाण का इष्ट माप होता है । बाण के वर्ग को ५ द्वारा गुणित कर, प्राप्त गुणनफल को धनुष के चाप के वर्ग में से घटाते हैं । इस परिणामी राशि का वर्गमूल डोरी के संवादी माप को देता है ॥ ४५ ॥
उदाहरणार्थ
धनुषाकार क्षेत्र के बाण का माप अज्ञात है, और दूसरे ऐसे ही क्षेत्र की डोरी का माप अज्ञात है । हे गणितज्ञ, इन दोनों मापों को निकालो ॥ ४६ ॥
धनुष क्षेत्र का क्षेत्रफल निकालने के लिये दिया गया सूत्र, चीन की सम्भवतः पुस्तकों को २१३ ईस्वी पूर्व में जलाये जाने की घटना से पूर्व को पुस्तक च्यु - चांग सुआन -चु ( नवाध्यायी अंकगणित ) में भी इसी रूप में दृष्टिगत होता है ।
ल
क्षेत्रफल = ( क + ल )×,
धनुष की लम्बाई = V५२ + कर बाण की लम्बाई = {V/चर - क} १/५
[ १९१
पुनः धनुष की डोरी की लम्बाई = जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति ( ६/९ ) में तथा त्रिलोक दिया गया है-
जीवा = / ( व्यास - बाण ) ४ बाण ४ ( बाण ) + ( जीवा ) २
व्यास =
४ बाण
यहाँ च = चाप,
क = चापकर्ण,
ल = लम्ब है ।
सूक्ष्म मानों के लिये इस अध्याय की ७३३ और ७४२ वीं गाथाओं को देखिये |
२-५ ल२
प्रज्ञप्ति ( ४ / २५९८ ) में यह मान क्रमशः इस प्रकार
कूलिज के अनुसार पाययेगोरस के साध्य पर आधारित इस सूत्र का उद्गम बाबुल में प्रायः २६०० ईस्वी पूर्व स्फानलिपि ग्रंथों में दृष्टि गत हुआ है । इस सम्बन्ध तिलोय पण्णत्तिका गणित दृष्टव्य है ।