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________________ २/२ १७८] गणितसारसंग्रहः [ ६. ३३४३स्याल्लघुरेवं क्रमशः प्रस्तारोऽयं विनिर्दिष्टः । नष्टाङ्का लघुरथ तस्सैकदले गुरुः पुनः पुनः स्थानम् ॥३३४।। अक्षरों ( syllables ) के विन्यास को इस प्रकार निकालते हैं से आरम्भ होनेवाली तथा दिये गये छन्दों में श्लोकों की महत्तम सम्भव संख्या के माप में अंत होनेवाली प्राकृत संख्याएँ लिखी जाती हैं। प्रत्येक अयुग्म संख्या में १ जोड़ा जाता है, और तब उसे आधा किया जाता है। जब यह क्रिया की जाती है, तब गुरु अक्षर (syllable) निश्चित पूर्वक सूचित होता है । जहाँ संख्या युग्म होती है वह तत्काल ही आधी कर दी जाती है, जिससे वह लघु प्रत्यय (syllable) को सूचित करती है। इस प्रकार, दशा के अनुसार ( उसी समय संवादी गुरु और लघु श्लोक ३३७३ में दिये गये प्रश्नों को निम्नलिखित रूप में हल करने पर ये नियम स्पष्ट हो जावेंगे(१) छन्द में ३ शब्दांश होते हैं; अब हम इस प्रकार आगे बढ़ते हैं३-१ १ दाहिने हाथ की श्रृंखला के अङ्कों को २ द्वारा गुणित करने पर हमें • प्राप्त २ १ होता है। अध्याय २के ९४ वें श्लोक (गाथा) की टिप्पणी में समझाये अनुसार गुणन और वर्ग करने की विधि द्वारा हमें ८ प्राप्त होता है। यही विभेदों की संख्या है। (२) प्रत्येक विभेद में शब्दांशों के विन्यास की विधि इस प्रकार प्राप्त होती हैप्रथम प्रकार : १ अयुग्म होने के कारण गुरु शब्दांश है; इसलिये प्रथम शब्दांश गुरु है । इस १ में (विभेद) १ जोड़ो, और योग को २ द्वारा भाजित करो। भजनफल अयुग्म है, और दूसरे गुरु शब्दांश को दर्शाता है। फिर से, इस भजन फल १ में १ जोड़ते हैं, और योग को २ द्वारा भानित करते हैं; परिणाम फिर से अयुग्म होता है, और तीसरे गुरु शब्दांश को दर्शाता है। इस प्रकार, प्रथम प्रकार में तीन गुरु शब्दांश होते हैं, जो इस प्रकार दर्शाये जाते हैं । द्वितीय प्रकार: २ युग्म होने के कारण लघु शब्दांश सूचित करता है । जब इस २ को २ द्वारा (विभेद) भाजित करते हैं, तो भजनफल १ होता है जो अयुग्म होने के कारण गुरु शब्दांश को सूचित करता है। इस १ में १ जोड़ो, और योग को २ द्वारा भाजित करो; भजनफल अयुग्म होने के कारण गुरु शब्दांश को सूचित करता है। इस प्रकार, हमें यह प्राप्त होता है । इसी प्रकार अन्य विभेदों को प्राप्त करते हैं। (३) उदाहरण के लिये, पाँचवाँ प्रकार (विभेद ) उपर की तरह प्राप्त किया जा सकता है। (४) उदाहरण के लिये, प्रकार (विभेद ) की क्रमसूचक स्थिति निकालने के लिये हम यह रीति अपनाते हैं ।।। १२४ इन शब्दांशों के नीचे, जिसकी साधारण निष्पत्ति २ है और प्रथमपद १ है ऐसी गुणोत्तर श्रेदि लिखो। लघु शब्दांशों के नीचे लिखे अंक ४ और १ जोड़ो, और योग को १ द्वारा बढ़ाओ। हमें ६ प्राप्त
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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