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________________ गणितसारसंग्रहः सैकं तेनाप्तस्य च मिश्रस्य फलं हि वृद्धिः स्यात् ।। २५ ॥ अत्रोद्देशक: पञ्चकशतप्रयोगे फलार्थिना योजितैव धनषष्टिः । कालः स्ववृद्धिसहितो विंशतिरत्रापि कः कालः ।। २६ ॥ अर्धत्रिकसप्तत्याः सार्धाया योगयोजितं मूलम् । शीतिः स्वकालवृद्धथोहि ॥ २७ ॥ व्यर्धचतुष्काशीत्या युक्ता मासद्वयेन सार्धेन । मूलं चतुःशतं षट्त्रिंशन्मिश्रं हि कालवृद्धथोहि ॥ २८ ॥ मूलकालमिश्रविभागानयनसूत्रम्स्वफलोद्धृतप्रमाणं कालचतुर्वृद्धिताडितं शोध्यम् । मिश्रकृतेस्तन्मूलं मिश्रे क्रियते तु संक्रमणम् ॥ २९ ॥ - विभाजित करो। परिणामी राशिको में मिलाओ। प्राप्तफल द्वारा मिश्रयोग को विभाजित करने पर इष्ट ब्याज प्राप्त होता है ॥२५॥ उदाहरणार्थ प्रश्न ५ प्रतिशत प्रतिमाह के अर्घ से किसी साहूकार ने ६० उधार दिये। अवधि तथा समय मिलाकर २० होता है। बतलाओ कि अवधि क्या है? ॥२६॥ ११ प्रति ७.३ प्रति मास की दर से ब्याज पर दिया गया मूलधन ७०५ है । समय और ब्याज का मिश्रयोग ८० है। समय तथा ब्याज के मानों को अलग-अलग निकालो ॥२७॥ ३३ प्रति ८० की दर से २३ माहों के लिये ब्याज पर दिया गया मूलधन ४०० है और समय तथा ब्याज का मिश्रयोग ३६ है। समय तथा ब्याज अलग-अलग बतलाओ ॥२८॥ मूलधन और ब्याज की अवधि को उनके मिश्रयोग में से अलग करने के लिये नियम अवधि और मूलधन के दिये गये मिश्रयोग के वर्ग में से वह राशि घटाई जाती है जो मूलधनदर को ब्याजदर से भाजित करने और अवधिदर तथा दिये गये ब्याज की चौगुनी राशि द्वारा गुणित करने पर प्राप्त होती है । इस परिणामी शेष के वर्गमूल को दिये गये मिश्रयोग के सम्बन्ध में संक्रमण क्रिया करने के उपयोग में लाते हैं ॥२९॥ (२५ ) प्रतीक रूप से, ब = म+ +१ } = ब, जहाँ म = ब+ अ धाXआ४४बxम ! (२९) प्रतीक रूप से, १ = ध अथवा अ, ( यथा स्थिति) जहाँ, मध+अB दिये गये नियम के अनुसार, मूल (करणी) गत राशि का मान (ध-अ)र है; इसके वर्गमूल तथा मिश्र इन दोनों के सम्बन्ध में संक्रमण की क्रिया की जाती है। * संक्रमण क्रिया को समझने के लिये अध्याय ६ का श्लोक २ देखिये।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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