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________________ [८७ -५. ३.] त्रैराशिकव्यवहारः सपादहेम त्रिदिनैः सपञ्चमैनरोऽर्जयन् व्येति सुवर्णतुर्यकम् । निजाष्टमं पञ्चदिनैर्दलोनितैः स केन कालेन लभेत सप्ततिम् ॥ २६ ॥ गन्धेभो मदलुब्धषट्पदपदप्रोद्भिन्नगण्डस्थलः साधं योजनपञ्चमं ब्रजति यः षड्भिर्दलोनैर्दिनैः। प्रत्यायाति दिनैत्रिभिश्च सदलै: क्रोशद्विपञ्चांशकं ब्रूहि क्रोशदलोनयोजनशतं कालेन केनाप्नुयात् ॥२७॥ वापी पयःप्रपूर्णा दशदण्डसमुच्छ्रिताञ्जमिह जातम् । अङ्गुलयुगलं सदलं प्रवर्धते सार्धदिवसेन ।। २८॥ निस्सरति यन्त्रतोऽम्भः सार्धेनाहाङ्गुले सविंशे द्वे । शुष्यति दिनेन सलिलं सपञ्चमाङ्गुलकमिनकिरणैः ॥२९॥ कूर्मो नालमधस्तात् सपादपञ्चाङ्गुलानि चाकृषति । सार्धस्त्रिदिनैः पद्मं तोयसमं केन कालेन ॥३०॥ द्वात्रिंशद्धस्तदीर्घः प्रविशति विवरे पञ्चभिः सप्तमाधैः कृष्णाहीन्द्रो दिनस्यासुरवपुरजितः सार्धसप्ताङ्गुलानि । पादेनाह्रोऽङ्गुले द्वे त्रिचरणसहिते वर्धते तस्य पुच्छं रन्धं कालेन केन प्रविशति गणकोत्तंस मे बेहि सोऽयम् ॥ ३१ ।। इति गतिनिवृत्तिः। मुद्रा कमाता है, ४३ दिन में 3 स्वर्ण मुद्रा तथा उस (1) की ? स्वर्णमुद्रा खर्च करता है; बतलाओ कि वह ७० स्वर्ण मुद्रायें कितने दिनों में बचा सकेगा ? ॥२६॥ एक श्रेष्ठ हाथी, जिसके गण्ड स्थल पर झरते हुए मद की सुगन्ध से लुब्ध भ्रमर राशि पदों द्वारा आक्रमण कर रही है, ५६ दिन में एक योजन का भाग तथा ३ भाग चलता है; और, ३३ दिन में ३ क्रोश पोछे हट जाता है; बतलाओ कि वह क्रोश कम १०० योजन की कुल दूरी कितने समय में तय करेगा? ॥२७॥ एक वापिका पानी से पूरी भरी रहने पर गहराई में दश दण्ड रहती है। अंकुरित होता हुआ एक कमल तली से १३ दिन में २३ अंगुल के अर्ध ( rate) से ऊगता है। यन्त्र द्वारा १३ दिन में वापिका का पानी निकल जाने से पानी की गहराई २३. अंगुल कम हो जाती है। और, सूर्य की किरणों द्वारा १६ अंगुल (गहराई का ) पानी वाष्प बनकर उड़ जाता है; तथा, एक कछुआ कमल की नाल को ३३ दिन में ५१ अंगुल नीचे की ओर खींच लेता है। बतलाओ कि वह कमल पानी की सतह तक कितने समय में ऊग आवेगा? ॥२८-३०॥ एक बलयुक्त, अजित, श्रेष्ठ कृष्णाहीन्द्र (काला सर्प) जो ३२ हस्त लम्बा है, किसी छिद्र में 2 दिन में ७३ अंगुल प्रवेश करता है और दिन में उसकी पूँछ २९ अंगुल बढ़ जाती है। हे अंकगणितज्ञों के भूषण ! मुझे बतलाओ कि यह सर्प इस छिद्र में कितने समय में पूरी तरह प्रवेश कर सकेगा ? ॥३१॥ इस प्रकार, गति निवृत्ति प्रकरण समाप्त हुआ। पंचराशिक, सप्तराशिक और नवराशिक सम्बन्धी नियम स्व स्थान से 'फल' को अन्य स्थान में पक्षान्तरित करो (जहाँ वैसी ही मूर्त राशि आवेगी); ( तब इष्ट उत्तर को प्राप्त करने के लिये विभिन्न राशियों की) बड़ी संख्याओं वाली पंक्ति को ( सबको (२८-३०) कुएँ की गहराई मूल गाथा में तली से नापी गई 'ऊँचाई' कही गई है।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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