________________
६६]
मणिनसारसंग्रहः
अवोद्देशक
कश्चिदंशोंऽशकैः कैश्चित्पश्चभिः स्वैर्धेतो दलम् । वियुक्तो वा भवेत्पादस्तानंशान् कथय प्रिय ॥१३७।।
__ भागमातृजातौ सूत्रम्भागादिमजातीनां स्वस्वविधिर्भागमातृजातौ स्यात् । सा षड्विंशतिभेदा रूपं छेदोऽच्छिदो राशेः ॥१३८॥
उदाहरणार्थ प्रश्न एक भिन्न निज के पाँच अन्य भिन्नों से मिलाया जाने पर हो जाता है; और, एक अन्य भिन्न निज के पाँच अन्य भिन्नों द्वारा हासित होकर हो जाता है। हे मित्र ! उन सब अक्षात मिलों का मान निकालो ॥१३७॥
भागमातृ जाति [ दो या अधिक प्रकार के भिन्नों से संयुक्त भिन्न ] ऊपर वर्णित सभी प्रकार के भिन्नों का जिसमें समावेश है ऐसे भागमात्र प्रकार के भिन्न सरल करने के लिये नियम
भागमात्र भिन्नों में, सरल भिन्नों को आदि लेकर विभिन्न प्रकार के भिन्नों सम्बन्धी नियम प्रयोज्य होते हैं । भागमात्र भिन्न के २६ प्रकार होते हैं। जिस राशि का हर नहीं होता उस राशि का हर एक ले लेते हैं ॥१३॥
( १३७ ) इस प्रश्न में, प्रथम दशा को हल करने में, आरम्भ के स्थानों को छोड़कर अन्य स्थानों में है और भिन्नों को चुनो; और तब गाथा १२२ में दिये गये नियम द्वारा प्रथम भिन्न को निकालो जो प्राप्त होगा । अथवा, १२५वीं गाथा के अनुसार आदि भिन्न के सिवाय छोड़े हुए अन्य स्थानों के भिन्न को निकालने के लिये
और चुनो; भिन्न आवेगा। इसी तरह वियुत भिन्नों वाली दूसरी दशा को १३२वीं और १३५वीं गाथा के नियम की सहायता से साधित किया जा सकता है।
(१३८ ) २६ प्रकार के भिन्न तब प्राप्त होते हैं जब कि भाग, प्रभाग, भागभाग, भागानुबंध और भागापवाह को एक बार में क्रमशः दो, तीन, चार अथवा पाँच लेकर संचय (combinations) संख्या निकालते हैं। जैसे, भाग और प्रभाग मिश्रित होते हैं, भाग और भागभाग मिश्रित रहते हैं, आदि । दो का मिश्रण करने पर १० संचय प्राप्त होते हैं, ३ का मिश्रण एक बार में लेने से १० संचय, चार का मिश्रण एक बार लेने पर ५ संचय और सबको एक बार लेने पर १ संचय, इस तरह कुल २६ प्रकार प्राप्त होते हैं। १३वी गाथा के अन्त में ऐसे मागमात्र प्रकार का प्रश्न हैं जिसमें पाँचों प्रकार सम्मिलित हैं।