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________________ -३. ६०] कलासवर्णव्यवहारः [४९ प्रकारान्तरेण समानच्छेदमुद्भावयितुमुत्तरसूत्रम्छेदापवर्तकानां लब्धानां चाहतौ निरुद्धः स्यात् । हरहृतनिरुद्धगुणिते हारांशगुणे समोहारः।।५६॥ अत्रोद्देशकः जेम्बूजम्बीरनारङ्गचोचमोचाम्रदाडिमम् । अक्रषीद्दलषड्भागद्वादशांशकविंशकैः ॥५७॥ हेनस्त्रिंशचतुर्विंशेनाष्टमेन यथा क्रमम् । श्रावको जिन पूजायै तद्योगे किं फलं वद ॥५८।। अष्टपञ्चदशं विशं सप्तषत्रिंशदशकम् । एकादशत्रिषष्टथंशमेकविंशं च सङ्क्षिप ॥५१॥ एकद्विकत्रिकायेकोत्तरनवदशकषोडशान्त्यहराः। निजनिजमुखप्रमांशाः स्वपराभ्यस्ताश्च किं फलं तेषाम् ।।६०।। १ यह और अनुगामी श्लोक M में अप्राप्य हैं । २ P में ५७ और ५८ श्लोक छूट गये हैं। ३ यह श्लोक केवल 5 और B में प्राप्य है। साधारण ( common ) हर को दूसरी विधि द्वारा निकालने का नियम हरों के सभी संभव गुणनखंडों और उनके सभी अन्तिम ( ultimate) भजन फलों के सन्तत गुणन से निरुद्ध (लघुत्तम समापवर्त्य ) प्राप्त होता है । निरुद्ध को हरों द्वारा भाजित करने से प्राप्त भजन फलों में हरों और अंशों का गुणन करते हैं । इस प्रकार से प्राप्त हरों और अंशों सम्बन्धी अपवयों के हर समान होते हैं ।।५६।। उदाहरणार्थ प्रश्न एक श्रावक ने जिन पूजा के लिए जम्बूफल, नीबू , नारंगी, नारियल, केले, आम और अनार क्रमशः३, ३ , २१ और है स्वर्ण मुद्राओं के खरीदे; मुझे बतलाओ कि जब इन भिन्नों का योग किया जाय तो क्या परिणाम होगा? ॥५७-५८॥ १,२०, ॐ और २१ को जोड़ो ॥५५॥ भिन्नों के ३ समूह हैं, जहाँ हर १, २, और ३ से क्रमशः आरम्भ होते हैं और उक्तरोत्तर एक द्वारा बढ़ते चले जाते हैं जब तक कि ऐसे हरों में अंतिम ९,१० और १६ (क्रमशः विभिन्न समूह में) नहीं हो जाते । इन भिन्नों के समूह में अंश, हरों के समूह की प्रथम संख्या के तुल्य हैं, और इन उपर कथित प्रत्येक समूह वालों का प्रत्येक हर उत्तरवर्तों द्वारा गुणित किया जाता है। अंतिम हर, प्रत्येक दशा में अपरिवर्तित रहता है क्योंकि उसके उत्तरवर्ती हर का अभाव रहता है)। बतलाओ कि अंतमें इन परिणामी भिन्नों के प्रत्येक समूह का योग क्या होगा ? ॥६०॥ भिन्नों के चार कुलक (sets) हैं । हर १,२,३ और ४ से क्रमशः आरम्भ होते हैं और उत्तरोत्तर एक द्वारा बढ़ते चले जाते हैं जब तक कि अंतिम हर भिन्न २ कुलकों में क्रमवार २०, ४२, २५ और ३६ नहीं हो जाते । इन भिन्ना के कुलकों के अंश इन हरों के कुलकों की प्रथम संख्या के बराबर हैं। हरों के कुलक का प्रत्येक भिन्न उत्तरवती द्वारा गुणित किया जाता है (अंतिम हर प्रत्येक दशा में अपरिवर्तित रहता है।) अंत में, परिणामी भिन्ना में (६० ) परिणामी प्रश्न ये हैं:-मान बतलाओ (i) १४* २xs+sxe+.....+ 1, ग. सा० सं०-७
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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