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________________ गर्भ अध्ययन १. माहे उ हेमगा गब्भा, २. फग्गुणे अब्भसंथडा ३. सितोसिणा उ चित्ते, ४. वइसाहे पंचरूविया। -ठाणं. अ.४, उ.४, सु.३७६ ९. उदग-तिरिक्ख जोणिय-मणुस्सी गब्भस्स कायट्ठिई परूवणं प. उदगगब्भे णं भंते ! उदगगब्भे त्ति कालओ केवच्चिरं होइ? उ. गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणंछ मासा। प. तिरिक्खजोणियगब्भे णं भंते ! तिरिक्खजोणियगब्भे त्ति कालओ केवच्चिर होइ? उ. गोयमा !जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अट्ठ संवच्छराई। प. मणुस्सीगब्भे णं भंते ! मणुस्सीगब्भे त्ति कालओ केवच्चिर होइ? उ. गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बारस संवच्छराई। प. काय-भवत्थे णं भंते ! काय भवत्थे त्ति कालओ केवच्चिर होइ? उ. गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं चउव्वीसं संवच्छराई। प. मणुस्स-पंचेंदियतिरिक्खजोणियबीएणं भंते ! जोणिब्भूए केवइयं कालं संचिट्ठइ? - १५४५ १. माघ में हिमपात से उदक गर्भ रहता है। २. फाल्गुन में आकाश के बादलों से आच्छादित होने पर उदक गर्भ रहता है। ३. चैत्र में अतिशीत तथा अतिउष्णता से उदक गर्भ रहता है। ४. वैशाख में पंचरूपिका होने से उदक गर्भ रहता है। ९. उदक-तिर्यञ्चयोनिक-मनुष्य स्त्रियों के गर्भ आदि की कायस्थिति का प्ररूपणप्र. भन्ते ! उदकगर्भ, (पानी का गर्भ) उदकगर्भ के रूप में कितने काल तक रहता है ? उ. गौतम ! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट छह मास तक। प्र. भन्ते ! तिर्यञ्चयोनिकगर्भ, तिर्यञ्चयोनिकगर्भ के रूप में कितने काल तक रहता है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट आठ वर्ष तक। प्र. भंते ! मानुषीगर्भ, मानुषीगर्भ के रूप में कितने काल तक रहता है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट बारह वर्ष तक। प्र. भंते ! काय भवस्थ जीव काय भवस्थ के रूप में कितने काल तक रहता है ? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट चौवीस वर्ष तक। प्र. भंते ! मनुष्य और पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक सम्बन्धी योनिगत बीज (वीर्य) योनिभूत (प्रजनन शक्ति) रूप में कितने काल तक रहता है? उ. गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक। १०. गर्भ में स्थित जीव के अवस्थान का प्ररूपणप्र. भंते ! गर्भ में रहा हुआ जीव क्या उत्तानक चित-लेटा हुआ, करवट लिये, आम के समान कुबड़ा, खड़ा बैठा या सोता हुआ होता है तथा माता के सोने पर सोया हुआ, जागने पर जागा हुआ, सुखी होने पर सुखी और दुखी होने पर दुःखी होता है? उ. हाँ, गौतम ! गर्भ में रहा हुआ जीव उत्तानक यावत् माता के दुःखी होने पर दुःखी होता है, प्रसवकाल में अगर वह गर्भगत जीव मस्तक द्वारा या पैरों द्वारा गर्भ से बाहर आए तब तो भली-भांति आ जाता है यदि वह टेड़ा (आड़ा) होकर आता है तो मर जाता है। ११. एक भवग्रहण की अपेक्षा एक जीव के जनकों का प्रमाणप्र. भंते ! एक जीव एक भव ग्रहण की अपेक्षा कितने जीवों का पुत्र हो सकता है? हा उ. गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता। -विया. स. २, उ. ५, सु. २-६ १०. गब्भट्ठियस्स जीवस्स अवट्ठाण परूवणंप. जीवे णं भंते ! गब्भगए समाणे उत्ताणए वा, पासिल्लए वा, अंबखुज्जए वा, अच्छेज्ज वा, चिठेज्ज वा, निसीएज्ज वा, तुयट्टेज्ज वा, मातुए सुवमाणीए सुवइ, जागरमाणीए जागरइ, सुहियाए सुहिए भवइ, दुहियाए दुहिए भवइ? उ. हंता, गोयमा ! जीवे णं गब्भगए समाणे उत्ताणए वा जाव दुहियाए दुहिए भवइ। अहे णं पसवणकाल समयंसि सीसेण वा, पाएहिं वा आगच्छइ सममागच्छइ, तिरियमागच्छइ विणिहायमावज्जइ। -विया. स. १, उ.७, सु. २१-२२ (क) ११. एग भवग्गहणं पडुच्च एग जीवस्स जणयप्पमाणंप. एगजीवे णं भंते ! एगभवग्गहणेणं केवइयाणं पुत्तत्ताए हव्वमागच्छइ?
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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