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________________ गर्भ अध्ययन उ. गोयमा ! से णं सन्नी पंचेंदिए सव्वाहिं पज्जत्तीहिं पज्जत्तए वीरियलद्धीए वेउव्वियलद्धीए पराणीयं आगयं सोच्चा निसम्म पएसे निच्छुभंति, निच्छुभित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णइ, वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णित्ता चाउरंगिणिं सेणं विउव्वइ, चाउरंगिणीं सेणं विउव्वेत्ता चाउरंगिणिए सेणाए पराणीएणं सद्धिं संगामं संगामेइ, से णं जीवे-अत्थकामए, रज्जकामए, भोगकामए, कामकामए, अत्थकंखिए, रज्जकंखिए, भोगकंखिए, कामकंखिए, अत्थपिवासिए, रज्जपिवासिए, भोगपिवासिए, कामपिवासिए, तच्चित्ते तम्मणे तदज्झवसिए तत्तिव्वज्झवसाणे तदट्ठोवउत्ते तदप्पियकरणे तब्भावणाभाविए १५४३ उ. गौतम ! गर्भ में रहा हुआ संज्ञी पंचेन्द्रिय और समस्त पर्याप्तियों से परिपूर्ण जीव, वीर्यलब्धि और वैक्रियलब्धि द्वारा शत्रुसेना का आगमन सुनकर, अवधारण करके अपने आत्मप्रदेशों को गर्भ से बाहर निकालता है, बाहर निकालकर वैक्रियसमुद्घात करता है, वैक्रिय समुद्घात करके चतुरंगिणी सेना की विकुर्वणा करता है, चतुरंगिणी सेना की विकुर्वणा करके उस सेना से शत्रुसेना के साथ युद्ध करता है। वह अर्थ (धन) का कामी, राज्य का कामी, भोग का कामी, काम का कामी, अर्थाकांक्षी, राज्याकांक्षी, भोगाकांक्षी, कामाकांक्षी, अर्थ-पिपासु, राज्य-पिपासु, भोग-पिपासु एवं काम-पिपासु, एएसिणं अंतरंसि कालं करेज्जा नेरइएसु उववज्जइ, से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"गब्भगए समाणे जीवे ' अत्थेगइए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा।" प. जीवेणं भंते ! गब्भगए समाणे देवलोगेसु उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! अत्थेगइए उववज्जेज्जा अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ "गभगए समाणे जीवे अत्थेगइए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा?" उ. गोयमा ! से णं सन्नी पंचिंदिए सव्वाहिं पज्जत्तीहिं पज्जत्तए तहारूवस्स समणस्स वा, माहणस्स वा अंतिए एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं सोच्चा निसम्म तओ भवइ संवेगजायसड्ढे तिव्वधम्माणुरागरत्ते, से णं जीवे-धम्मकामए पुण्णकामए सग्गकामए मोक्खकामए, धम्मकंखिए पुण्णकंखिए सग्गकंखिए मोक्खकंखिए, धम्मपिवासिए पुण्णपिवासिए सग्गपिवासिए मोक्खपिवासिए, तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदज्झवसिए तत्तिव्वज्झवसाणे तदट्ठोवउत्ते, तदप्पियकरणे, तब्भावणाभाविए, उन्हीं में चित्त वाला, उन्हीं में मन वाला, उन्हीं में आत्मपरिणाम वाला, उन्हीं में अध्यवसित, उन्हीं में प्रयल-शील, उन्हीं में उपयोग वाला, उन्हीं के लिए क्रिया करने वाला और उन्हीं भावनाओं से भावित हो और उसी समय में मृत्यु को प्राप्त हो तो वह नरक में उत्पन्न होता है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"गर्भ में रहा हुआ कोई जीव नैरयिकों में उत्पन्न होता है और कोई जीव उत्पन्न नहीं होता है।" प्र. भंते ! गर्भस्थ जीव क्या देवलोक में उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! कोई जीव उत्पन्न होता है और कोई जीव उत्पन्न नहीं होता है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "गर्भस्थ जीव कोई देवलोक में उत्पन्न होता है और कोई जीव उत्पन्न नहीं होता है?" उ. गौतम ! वह गर्भस्थ संज्ञी पंचेन्द्रिय और सब पर्याप्तियों से पर्याप्त जीव, तथारूप श्रमण या माहन के पास एक भी आर्य और धार्मिक सुवचन सुनकर अवधारण करके शीघ्र ही संवेग से धर्मश्रद्धालु बनकर, धर्म में तीव्र अनुराग रक्त होकर, वह धर्म का कामी, पुण्य का कामी, स्वर्ग का कामी, मोक्ष का कामी, धर्माकांक्षी, पुण्याकांक्षी, स्वर्ग का आकांक्षी, मोक्षाकांक्षी, धर्मपिपासु, पुण्यपिपासु, स्वर्गपिपासु एवं मोक्षपिपासु, उसी में चित्त वाला, उसी में मन वाला, उसी में आत्मपरिणाम वाला, उसी में अध्यवसित, उसी में तीव्र प्रयत्नशील, उसी में उपयोगयुक्त, उसी के लिए अर्पित होकर क्रिया करने वाला, उसी की भावनाओं से भावित हो और उसी समय में मृत्यु को प्राप्त हो तो देवलोक में उत्पन्न होता है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि एएसिणं अंतरंसि कालं करेज्जा देवलोएसु उववज्जइ, से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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