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________________ परिशिष्ट ३ गणितानुयोग आवलिया वि तत्तिया चेव, तेण पर अजहण्णमणुकोसवाई ठाणाई जाय उक्कोसयं जुत्तासंखेज्जयं ण पावइ । प. उक्कोसयं जुत्तासंखेज्जयं केत्तियं होइ ? उ. उकोस जुत्तासंखेज्जयं जहणएणं जुत्तासंखेज्जएन आवलिया गुणिया अण्णमण्णब्भासो रूवूणो उक्कोसयं जुत्तासंखेज्जयं होइ । अहवा जहण्णयं असंखेज्जासंखेज्जयं रूवणं उक्कोसयं जुनासंखेज्जयं हो। प. जहण्णयं असंखेज्जासंखेज्जयं केत्तियं होइ ? उ. जहण्णएणं जुत्तासंखेन्जएणं आवलिया गुणिया अण्णमण्णव्यास पडिपुण्णो जहष्णवं असंखेज्जासंसेज्जयं होइ । अहवा उक्कोसए जुत्तासंखेज्जए रूवं पक्खित्तं जहण्णयं असंखेज्जासंखेज्जयं होइ । तेण परं अजहण्णमणुक्कोसयाई ठाणाई जाव उक्कोसयं असंखेज्जासंखेज्जयं ण पावइ । प. उक्कोसयं असंखेज्जासंखेज्जयं केत्तियं होइ ? उ. जहण्णयं असंखेज्जासंखेज्जयं जहण्णयं असंखेज्जासंखेज्जयमेत्ताणं रासीणं अण्णमण्णब्भासो रूवूणो उक्कोसयं असंखेज्जासंखेज्जयं होइ। अहवा जहण्णयं परित्ताणंतयं रूवूणं उक्कोसयं असंखेज्जासंखेज्जयं होइ । प. जहण्णयं परित्ताणं तयं केत्तियं होइ ? उ. जहण्णयं असंखेज्जासंखेज्जयं जहण्णयं असंखेज्जासंखेज्जमेत्ताणं रासीण अण्णमण्णमासो परिपुण्णी जाण परित्ताणंतयं होइ। अहवा उक्रोस असंखेज्जाज रूवं पक्खित्तं जहणणय परित्ताणंतयं होइ । रोग पर अजहरणमणुकोसयाई यणाई जाव उकोसयं परित्ताणंतयं ण पावइ । प. उक्कोसयं परित्ताणंतयं केत्तियं होइ ? उ. जहण्णयं परित्ताणंतयं जहण्णयपरित्ताणंतयमेत्ताणं रासीणं अण्णमण्णवभासो रूवणो उक्कोसयं परित्ताणंतयं होइ । अहवा जहण्णयं जुत्ताणंतयं रूवणं उक्कोसयं परित्ताणंतयं होइ । प. जहण्णयं जुत्ताणंतयं केत्तियं होइ ? उ. जहण्णयं परित्ताणंतयं जहण्णयपरित्ताणंतयमेत्ताणं रासीणं अण्णमण्णव्यास पडिपुण्णो जहा जुत्तानंत हो अहवा उक्कोसए परित्ताणंतए रूवं पक्खित्तं जहण्णयं जुत्तातयं होइ । २०३१ आवलिका भी जघन्य युक्ताअसंख्यात तुल्य समय-प्रमाण वाली जानना चाहिए। तत्पश्चात् जघन्य युक्ताअसंख्यात से आगे जहाँ तक उत्कृष्ट युक्ता असंख्यात प्राप्त न हो, वहाँ तक मध्यम युक्ता असंख्यात कहना चाहिए। प्र. उत्कृष्ट युक्ता असंख्यात का कितना प्रमाण है ? उ. जघन्य युक्ता असंख्यात राशि को आवलिका के समयों से परस्पर अभ्यास रूप गुणा करने पर प्राप्त प्रमाण में से एक न्यून करने पर उत्कृष्ट युक्ता असंख्यात होता है। अथवा जघन्य असंख्याताअसंख्यात राशि प्रमाण में से एक कम करने से उत्कृष्ट युक्ता असंख्यात होता है। प्र. जघन्य असंख्याताअसंख्यात का क्या प्रमाण है ? उ. जघन्य युक्ताअसंख्यात के साथ आवलिका की राशि का परस्पर अभ्यास करने से प्राप्त परिपूर्ण संख्या जघन्य असंख्याता असंख्यात है। अथवा उत्कृष्ट युक्ताअसंस्थात में एक का प्रक्षेप करने से जघन्य असंख्याता असंख्यात होता है। तत्पश्चात् मध्यम स्थान होते और वे स्थान उत्कृष्ट असंख्याता असंख्यात प्राप्त होने से पूर्व जानना चाहिए। प्र. उत्कृष्ट असंख्याता असंख्यात का प्रमाण कितना है ? उ. जघन्य असंख्याताअसंख्यात राशि को उसी जघन्य असंख्याताअसंख्यात राशि से अन्योन्य अभ्यास- गुणा करने पर प्राप्त संख्या में से एक न्यून करने पर उत्कृष्ट असंख्याताअसंख्यात है। अथवा एक न्यून जघन्य परीतानन्त उत्कृष्ट असंख्याताअसंख्यात का प्रमाण है। प्र. जघन्य परीतानन्त का कितना प्रमाण है ? उ. जघन्य असंख्याताअसंख्यात राशि को उसी जघन्य असंख्याता असंख्यात राशि से परस्पर अभ्यास रूप में गुणित करने से प्राप्त परिपूर्ण संख्या जघन्य परीतानन्त का प्रमाण है। अथवा उत्कृष्ट असंख्याता असंख्यात में एक का प्रक्षेप करने से भी जघन्य परीतानन्त का प्रमाण होता है। तत्पश्चात् परीतानन्त का स्थान प्राप्त न होने से पूर्व तक अजघन्य - अनुत्कृष्ट परीतानन्त के स्थान होते हैं। प्र. उत्कृष्ट परीतानन्त कितने प्रमाण में होता है ? उ. जघन्य परीतानन्त की राशि को उसी जघन्य परीतानन्त राशि से परस्पर अभ्यास रूप गुणित करके उसमें से एक न्यून करने पर उत्कृष्ट परीतानन्त का प्रमाण होता है। अथवा जघन्य युक्तानन्त की संख्या में से एक न्यून करने से भी उत्कृष्ट परीतानन्त की संख्या बनती है। प्र. जघन्य युक्तानन्त कितने प्रमाण में होता है ? उ. जघन्य परीतानन्त की राशि को उसी राशि से अभ्यास रूप गुणा करने से प्राप्त प्रतिपूर्ण संख्या जघन्य युक्तानन्त है। अथवा उत्कृष्ट परीतानन्त में एक प्रक्षिप्त करने से जघन्य युक्तान्त होता है।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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