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________________ २०१८ प. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे इमीसे ओसप्पिणीए सुसमदुस्समाए समाए पढममज्झिमेसु तिभाएसु भरहस्स वासस्स केरिसए आयारभावपडोयारे होत्था? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे होत्था, सो चेव गमो णेअव्वो णाणत्तं-दो धणुसहस्साई उड्ढं उच्चत्तेणं, तेसिं च मणुआणं चउसट्ठिपिट्ठकरंडगा, चउत्थभत्तस्स आहारत्थे समुप्पज्जइ, ठिई पलिओवम, एगृणासीइं राइंदियाई सारखंति, संगोवेंति जाव देवलोएसु उववजंति, देवलोगपरिग्गहिआ णं ते मणुआ पण्णत्ता, समणाउसो ! प. तीसे णं भंते ! समाए पच्छिमे तिभाए भरहस्स वासस्स केरिसए आयारभावपडोयारे होत्था? उ. गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे होत्था, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव मणीहिं उवसोभिए, तं जहा कित्तिमेहिं चेव, अकित्तिमेहिं चेव। प. तीसे णं भंते ! समाए पच्छिमे तिभागे भरहे वासे मणुआणं केरिसए आयारभावपडोयारे होत्था? उ. गोयमा ! तेसिं मणुयाणं छविहे संघयणे, छव्विहे संठाणे, बहूणि धणुसयाणि उड्ढे उच्चत्तेणं जहण्णेणं संखिज्जाणि वासाणि, उक्कोसेणं असंखिज्जाणि वासाणि आउअं पालेंति, पालित्ता अप्पेगइया णिरयगामी, अप्पेगइया तिरिअगामी, अप्पेगइया मणुस्सगामी, अप्पेगइया देवगामी, अप्पेगइया सिझंति, बुज्झति, मुच्चंति, परिणिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। -जम्बू. वक्ख.२,सु.३३-३४ द्रव्यानुयोग-(३) प्र. भंते ! इस अवसर्पिणी के सुषमदुषमा आरे के प्रथम तथा मध्यम त्रिभाग में जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र का आकार भाव स्वरूप कैसा होता है? उ. हे आयुष्मन् श्रमण गौतम ! उसका भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय होता है। उसका पूर्ववत् वर्णन जानना चाहिए। अन्तर यह है उस समय के मनुष्यों के शरीर की ऊँचाई दो हजार धनुष होती है। उनकी पसलियों की हड्डियाँ चौंसठ होती है। एक दिन के बाद उनमें आहार की इच्छा उत्पन्न होती है। उनकी आयु एक पल्योपम की होती है। अपने यौगलिक शिशुओं का वे ७९ दिन-रात पालन-पोषण करते हैं, सुरक्षा करते हैं यावत् उन मनुष्यों का जन्म देवलोक में होता है। वे मनुष्य देवलोक वासी ही कहे गए हैं। प्र. भंते ! उस आरे के अंतिम भाग में भरत क्षेत्र का आकार स्वरूप कैसा होता है? उ. गौतम ! उस समय मुरज के ऊपरी भाग जैसा उसका भूमिभाग बहुत समतल तथा रमणीय होता है यावत् कृत्रिम एवं अकृत्रिम मणियों से उपशोभित होता है। प्र. भंते ! उस आरे के अंतिम तीसरे भाग में भरत क्षेत्र में मनुष्यों का आकार स्वरूप कैसा होता है ? । उ. गौतम ! उन मनुष्यों के छहों प्रकार के संहनन होते हैं, छहों प्रकार के संस्थान होते हैं, उनके शरीर की ऊँचाई सैकड़ों धनुष परिमाण होती है। उनका आयुष्य जघन्य संख्यात वर्षों का तथा उत्कृष्टतः असंख्यात वर्षों का होता है। अपनी आयु पूर्ण कर उनमें से कई नरक गति में, कई तिर्यञ्च गति में, कई मनुष्य गति में और कई देव गति में उत्पन्न होते हैं तथा कई सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिर्वृत्त और समग्र दुःखों का अन्त करने वाले होते हैं। ४. हे आयुष्मन् श्रमण ! दो कोटाकोटि सागरोपम के प्रमाण वाले सुषम-दुःषमा नामक तृतीय आरे के व्यतीत होने पर अनन्त वर्ण पर्यायों आदि के क्रमशः हीन होते-होते अवसर्पिणी काल का दुषम-सुषमा नामक चौथा आरा प्रारम्भ होता है। प्र. भंते ! उस समय भरत क्षेत्र का आकार भाव स्वरूप कैसा कहा गया है? उ. गौतम ! उस समय में भरत क्षेत्र का भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय होता है। मुरज के ऊपरी भाग जैसा समतल है यावत् कृत्रिम तथा अकृत्रिम मणियों से उपशोभित होता है। प्र. भंते ! उस समय भरत क्षेत्र के मनुष्यों का आकार भावस्वरूप कैसा कहा गया है? उ. गौतम ! उन मनुष्यों के छह प्रकार के संहनन होते हैं, छह प्रकार के संस्थान होते हैं उनकी ऊँचाई अनेक धनुष प्रमाण होती है। वे जघन्य अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट पूर्वकोटि का आयु भोगकर उनमें से कई नरक गति में, कई तिर्यञ्च गति में कई मनुष्य गति में तथा कई देव गति में जाते हैं और कई सिद्ध, बुद्ध, मुक्त एवं परिनिवृत्त होते हैं तथा समस्त दुःखों का अन्त करते हैं। हातहा ४. तीसे णं समाए दोहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कते अणंतेहिं वण्णपज्जवेहिं जाव परिहायमाणे-परिहायमाणे एत्थ णं दूसमसुसमा णामं समाकाले पडिवज्जिसु, समणाउसो ! प. तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आयारभावपडोयारे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव मणीहिं उवसोभिए तं जहा कित्तिमेहिं चेव, अकित्तिमेहिं चेव। प. तीसे णं भंते ! समाए भरहे मणुआणं केरिसए आयारभावपडोयारे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! तेसिं मणुआणं छव्विहे संघयणे, छब्बिहे संठाणे, बहूई धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं, जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी आउअं पालेंति, पालित्ता, अप्पेगइआ णिरयगामी, अप्पेगइया तिरियगामी, अप्पेगइया मणुयगामी, अप्पेगइआ देवगामी, अप्पेगइआ सिझंति, बुझंति, मुच्चंति, परिणिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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