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________________ २०१४ द्रव्यानुयोग-(३) पृ.६९४ चेत्तासोएसु मासेसु पोरिसीच्छायप्पमाणं चैत्र और आसोज मास में पौरुषी छाया का प्रमाणसूत्र ६ (ख) चेत्तासोएसु णं मासेसु सइ छत्तीसंगुलियं सूरिए पोरिसीछायं चैत्र और आश्विन मास में सूर्य एक बार छत्तीस अंगुल प्रमाण निव्वत्तइ। -सम.सम.३६, सु.४ पौरुषी छाया करता है। कत्तियबहुल सत्तमीए पोरिसीच्छायप्पमाणं कार्तिक वदी सप्तमी को पौरुषी छाया का प्रमाणसूत्र ६ (ग) कत्तियवहुलसत्तमीए णं सूरिए सत्ततीसंगुलियं पोरिसिच्छायं कार्तिक कृष्णा सप्तमी के दिन सूर्य सैंतीस अंगुल की पौरुषी छाया निव्वत्तइत्ता णं चारं चरइ। -सम. सम.३७, सु.५ करता हुआ गति करता है। पृ.६९९ कम्माकम्मभूमिसु ओसप्पिणी-उस्सप्पिणी कालस्स भावाभाव कर्म-अकर्म भूमियों में अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल के भाव-अभाव परूवणं का प्ररूपणसूत्र १२ (ख) प. एएसु णं भंते ! तीसासु अकम्मभूमीसु अस्थि ओसप्पिणी इ वा, प्र. भंते ! इन (उपर्युक्त) तीस अकर्मभूमियों में क्या अवसर्पिणी उस्सप्पिणी इवा? और उत्सर्पिणी काल है ? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे। उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प. एएसु णं पंचसु भरहेसु, पंचसु एरवएसु अस्थि ओसप्पिणी इ प्र. भंते ! इन पाँच भरत और पाँच ऐरवत क्षेत्रों में क्या वा, उस्सप्पिणी इवा? अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल है ? उ. हंता, गोयमा ! अथि। उ. हाँ, गौतम ! है। एएसु णं पंचसु महाविदेहेसु णेवत्थि ओसप्पिणी नेवत्थि इन (उपर्युक्त) पाँच महाविदेह क्षेत्रों में वहाँ न तो अवसर्पिणी उस्सप्पिणी अवट्ठिए णं तत्थ काले पण्णत्ते समणाउसो! काल है और न उत्सर्पिणी काल है। -विया. स. २०, उ.८, सु. ३-५ हे आयुष्मन् श्रमण ! वहाँ (एकमात्र) अवस्थित काल कहा गया है। ओसप्पिणी-उस्सप्पिणीए सुसमसुसमा कालस्समान परूवणं- अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी के सुषमसुषमा कालमान का प्ररूपणसूत्र १२ (ग) जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए जम्बूद्वीप द्वीप के भरत ऐरवत क्षेत्र में अतीत उत्सर्पिणी के सुसमसुसमाए समाए चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो हुत्था। "सुषमसुषमा" नामक आरे का कालमान चार कोडाकोडी सागरोपम का था। जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु इमीसे ओसप्पिणीए जम्बूद्वीप द्वीप के भरत और ऐरवत क्षेत्र में इस अवसर्पिणी के सुसमसुसमाए समाए चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो "सुषमसुषमा" नामक आरे का कालमान चार कोडाकोडी पण्णत्तो। सागरोपम का कहा है। जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु आगमेस्साए उस्सप्पिणीए जम्बूद्वीप द्वीप के भरत और ऐवत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी के सुसमसुमाए समाए चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो "सुषमसुषमा" नामक आरे का कालमान चार कोडाकोडी भविस्सइ। सागरोपम का होगा। एवं धायइसंडदीव पुरथिमद्धे वि। इसी प्रकार धातकीखण्ड के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में एवं एवं पुक्खरवरदीव पच्चत्थिमद्धे वि। -ठाणं अ. ४, उ. २, सु. २९९ अर्धपुष्करवरद्वीप के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में काल जानना चाहिए। भरहेवासे ओसप्पिणीकालस्स छण्हंआरकाणं आयारभाव पडोयार भरत क्षेत्र में अवसर्पिणी काल के छः आरों के आकार भाव स्वरूप परूवणं का परूपणसूत्र १२ (घ) प. १.जंबुद्दीवेणं भंते ! दीवे भरहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए प्र. १.भंते ! जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में इस अवसर्पिणी काल के
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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