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________________ २०१२ उ. एगदव्वं पडुच्च-अजहण्णमणुक्कोसेणं एक्कं समयं, नाणादव्वाइं पडुच्च सव्वद्धा। प.३. णेगम-ववहाराणं अवत्तव्वयदव्वाइं कालओ केवचिरं होइ ? उ. एगंदव्वं पडुच्च अजहण्णमणुक्कोसेणं दो समया, नाणादव्वाई पडुच्च सव्वद्धा। प.१. णेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाणमंतरं कालओ केवचिरं होइ? उ. एगंदव्वं पडुच्च-जहण्णेणं एगं समय,उक्कोसेणं दो समया, नाणादव्वाइं पडुच्च नत्थि अंतरं। प.२. णेगम-ववहाराणं अणाणुपुब्विदव्वाणमंतरं कालओ केवचिरं होइ? उ. एगं दव्वं पडुच्च-जहण्णेणं दो समया, उक्कोसेणं असंखेज कालं, नाणादव्वाइं पडुच्च णस्थि अंतरं। प.३. णेगम-ववहाराणं अवत्तव्वगदव्वाणं अंतरं कालओ केवचिरं ( द्रव्यानुयोग-(३) ) उ. एक द्रव्य की अपेक्षा तो अजघन्य और अनुत्कृष्ट स्थिति एक समय की तथा अनेक द्रव्यों की अपेक्षा सर्वकालिक है। प्र.३. नैगम-व्यवहारनयसम्मत अवक्तव्य द्रव्य कितने काल रहते हैं ? उ. एक द्रव्य की अपेक्षा अजघन्य-अनुत्कृष्ट स्थिति दो समय की है। अनेक द्रव्यों की अपेक्षा सर्वकालिक है। प्र.१. नैगम-व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वी द्रव्यों का अन्तर कितने समय का होता है? उ. एक द्रव्य की अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय का और उत्कृष्ट अन्तर दो समय का है। किन्तु अनेक द्रव्यों की अपेक्षा से अन्तर नहीं है। प्र.२. नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनानुपूर्वी द्रव्यों का अन्तर कितने समय का होता है? उ. एक द्रव्य की अपेक्षा जघन्य दो समय का और उत्कृष्ट असंख्यात काल का है। अनेक द्रव्यों की अपेक्षा से अन्तर नहीं है। प्र.३. नैगम-व्यवहारनयसम्मत अवक्तव्य द्रव्यों का अन्तर कितने समय का होता है? उ. एक द्रव्य की अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय का और उत्कृष्ट असंख्यात काल का है। अनेक द्रव्यों की अपेक्षा से अन्तर नहीं है। प्र. नैगम-व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वी द्रव्य शेष द्रव्यों के कितने भाग प्रमाण है? उ. यहाँ क्षेत्रानुपूर्वी जैसा ही कथन समझना चाहिए। भावद्वार और अल्पबहुत्व का भी कथन क्षेत्रानुपूर्वी जैसा ही समझना चाहिए। यह अनुगम का स्वरूप है। यह नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी है। होइ? उ. एगं दव्वं पडुच्च-जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्ज कालं, नाणादव्वाइं पडुच्च-णत्थि अंतरं। प. णेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाइं सेसदव्वाणं कइभागे होज्जा? उ. जहेव खेत्ताणुपुव्वीए। भावो वि तहेव अप्पाबहु पि तहेव नेयव्वं । संग्रहनयसम्मत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी से तं अणुगमे। संतंणेगम-ववहाराणं अणोवणिहिया कालाणुपुव्वी। -अणु सु. १८३-१९८ संगहणय सम्मय अणोवणिहिया कालाणुपुब्बीसूत्र १ (घ) प. से किं तं संगहस्स अणोवणिहिया कालाणुपुव्वी? उ. संगहस्स अणोवणिहिया कालाणुपुब्बी-पंचविहा पण्णत्ता, तंजहा१. अट्ठपयपरूवणया, २.भंगसमुक्कित्तणया, ३.भंगोवदंसणया, ४. समोयारे, ५. अणुगमे। प. से किं तं संगहस्स अट्ठपयपरूवणया?. उ. संगहस्स अटठपयपरूवणयाइ पंच वि दाराई संगहस्स खेत्ताणुपुव्बीए गमेण भाणियव्वाणि। णवर-ठिईअभिलावो। से तं संगहस्स अणोवणिहिया कालाणुपुब्बी। से तं अणोवणिहिया कालाणुपुवी। -अणु सु. १९९-२०० ओवणिहिया कालाणुपुव्वीसूत्र १ (ङ) - प. से किं तं ओवणिहिया कालाणुपुव्वी? प्र. संग्रहनयसम्मत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? उ. संग्रहनयसम्मत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी पाँच प्रकार की कही गई है, यथा१.अर्थपदप्ररूपणता, २. भंगसमुत्कीर्तनता, ३. भंगोपदर्शनता, ४. समवतार, ५. अनुगम। प्र. संग्रहनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता का क्या स्वरूप है ? उ. संग्रहनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता आदि इन पाँचों द्वारों का कथन संग्रहनयसम्मत क्षेत्रानुपूर्वी के समान जानना चाहिए। विशेष-प्रदेशावगाढ के बदले स्थिति कहना चाहिए। यह संग्रहनयसम्मत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी है। यह अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी है। औपनिधिकी कालानुपूर्वी प्र. औपनिधिकी कालानुपूर्वी का क्या स्वरूप है?
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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