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________________ द्रव्यानुयोग-(३) सामान्यतः अनुवेलंधर नागराजों के आवास पर्वतों का प्ररूपण जम्बूद्वीप द्वीप की बाहरी वेदिका के अन्तिम भाग से चारों विदिशाओं में लवण समुद्र में बयालीस-बयालीस हजार योजन जाने पर अनुवेलंधर नागराजों के चार आवास पर्वत कहे गए हैं, यथा १. कर्कोटक, २. विद्युत्भ, ३. कैलाश, ४. अरूणप्रभ। उनमें पल्योपम की स्थिति वाले चार महर्धिक देव रहते हैं, यथा ( २००२ पृ.३५० ओहेण अणुवेलंधर णागरायाणं आवास पव्ययाणं परूवणंसूत्र ६६५ (ख) जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ चउसु विदिसासु लवणसमुदं बायालीसं बायालीस जोयणसहस्साई ओगाहेत्ता, एत्थ णं चउण्हं अणुवेलंधर णागराईणं चत्तारि आवासपव्वया पण्णत्ता, तं जहा१.कक्कोडए, २.विज्जुप्पभे, ३.केलासे, ४.अरूणप्पभे। तत्थं णं चत्तारि देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्ठिईया परिवसंति,तं जहा१.कक्कोडए, २.कद्दमए, ३. केलासे, ४.अरूणप्पभे। -ठाणं.अ.४, सु.३०२ पृ.३५२ महापायालाणं रयणप्पभा पुढवीए अंतरं परूवणंसूत्र ६७४ (ख) वलयामुहस्स णं पायालस्स हेट्ठिल्लाओ चरिमंताओ इमीसेणं रयणप्पभाए पुढवीए हेठिल्ले चरिमंते, एस णं एगूणासीइं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। एवं केउस्स वि, जूयस्स वि, ईसरस्स वि। -सम.सम.७९,सु.१-२ १. कर्कोटक, ३. कैलाश, २. कर्दमक, ४. अरूणप्रभ। महापाताल कलशों का रत्नप्रभा पृथ्वी से अंतर का प्ररूपण वलयामुख पातालकलश के नीचे के चरमान्त से इस रलप्रभा पृथ्वी के नीचे के चरमान्त का अबाधा अन्तर उन्नासी हजार योजन का कहा गया है। इसी प्रकार केतु, यूपक और ईश्वर नामक महापाताल कलशों से भी अंतर जानना चाहिए। पृ.३६१ धातकीखण्ड द्वीप में क्षेत्रादि की संख्या का प्ररूपण धातकीखण्ड द्वीप मेंभरत, ऐरवत, हैमवत, हैरण्यवत, हरिवर्ष, रम्यक्वर्ष, पूर्वविदेह, अपरविदेह, देवकुरू, देवकुरूमहाद्रुम, देवकुरूमहाद्रुमवासी देव, उत्तरकुरू, उत्तरकुरूमहाद्रुम, उत्तरकुरूमहाद्रुमवासी देव दो-दो कहे गए हैं। धायइसंडदीवे खेत्ताइ संखा परूवर्णसूत्र ७०२ (ख) धायसंडे णं दीवेदो भरहाई, दो एरवयाई, दो हेमवयाई, दो हेरण्णवयाई, दो हरिवासाई, दो रम्मगवासाइं, दो पुव्वविदेहाई, दो अवरविदेहाई, दो देवकुराओ, दो देवकुरूमहद्दुमा, दो देवकुरूमहदुमवासी देवा, दो उत्तरकुराओ, दो उत्तरकुरूमहदुमा, दो उत्तरकुरूमहद्दुमवासी देवा। -ठाणं. अ.२, सु.१०० पृ.३७४ मंडलिय पव्वया णं नामाणिसूत्र ७५१ (ख) तओ मंडलिया पव्वया पण्णत्ता,तं जहा१.माणसुत्तरे, २. कुंडलबरे, ३. रूयगवरे। -ठाणं. अ.३, उ.४, सु.२०५ पृ.३७५ माणुसुत्तर पव्ययस्स बाहिरं चंदसूराणं अवट्ठिय जोग पखवणंसूत्र ७५३ (ख) वहियाओ मणुस्सनगस्स चंदसूराणं अवट्ठिया जोगा। मांडलिक पर्वतों के नाम मांडलिक पर्वत तीन कहे गए हैं, यथा१. मानुषोत्तर, २.कुण्डलवर, ३. रूचकवर। मानुषोत्तर पर्वत के बाहर चन्द्र सूर्यों के अवस्थित योग का प्ररूपण मानुषोत्तर पर्वत के बाहर चन्द्र व सूर्य अवस्थित योग वाले हैं।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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