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________________ १९९१ परिशिष्ट : ३ धर्मकथानुयोग नेयव्वं अविसेसियं जाव पभू समिया आउज्जिया पलिज्जिया जाव सच्चे णं एसमढे णो चेव णं आयभाववत्तव्वयाए। अहं पि णं गोयमा ! एवमाइक्वामि भासेमि पण्णवेमि परूवेमि यावत् वे सम्यक् रूप से सम्पन्न (समित) हैं, अभ्यस्त हैं (असम्पन्न या अनभ्यस्त नहीं हैं) वे उपयोग वाले हैं, अनुपयोग वाले नहीं हैं, वे विशिष्ट ज्ञानी हैं, सामान्य ज्ञानी नहीं हैं यावत यह बात सत्य है, इसलिए उन स्थविरों ने कही है, किन्तु अहंभाव के वश होकर नहीं कही है। हे गौतम ! मैं भी इसी प्रकार कहता हूँ, भाषण करता हूँ, बताता हूँ और प्ररूपणा करता हूँ किपूर्वतप के कारण से देवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं, पूर्वसंयम के कारण देवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं, कर्मिता (कर्मक्षय होने बाकी रहने) से देवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं तथा संगिता (राग आसक्ति) के कारण देवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं और पूर्वतप, पूर्वसंयम, कर्मिता और संगिता से देवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं। यही बात सत्य है, इसलिए उन्होंने कही है, किन्तु अपना अहंभाववश नहीं कहते हैं। पुवतवेणं देवा देवलोएसु उववज्जति, पुव्वसंजमेणं देवा देवलोएसु उववज्जति, कम्मियाए देवा देवलोएसु उववजंति, संगियाए देवा देवलोएसु उववज्जति, पुव्वतवेणं पुव्वसंजमेणं कम्मियाए संगियाए अज्जो ! देवा देवलोएसु उववजंति, सच्चे णं एस मढे, णो चेवणं आयभाववत्तव्वयाए। -विया स.२, उ.५,सु.१६-२५ गोत्र के मूल और उत्तर भेदों का प्ररूपण भाग २,खण्ड ६,पृ.१७२ गोत्तस्स मूलोत्तर भेय परूवणंसूत्र ३५९ (ख) सत्त मूलगोत्ता पण्णत्ता,तं जहा१. कासवा, २. गोयमा, ३. वच्छा, ४. कोच्छा, ५. कोसिया, ६. मंडवा,७. वासिट्ठा। १. जे कासवा ते सत्तविहा पण्णत्ता,तं जहा १.ते कासवा, २.ते संडिल्ला, ३.ते गोला, ४. ते वाला, ५.ते मुंजइणो, ६.ते पव्वइणो, ७.ते वरिसकण्हा। २. जे गोयमा ते सत्तविहा पण्णत्ता,तं जहा १.ते गोयमा, २.ते गग्गा, ३.ते भारद्दा, ४.ते अंगिरसा, ५.ते सक्कराभा, ६.ते भक्खराभा, ७.ते उदत्ताभा। ३. जे वच्छा ते सत्तविहा पण्णत्ता,तं जहा १.ते वच्छा, २.ते अग्गेया, ३.ते मित्तेया, ४. ते सामलिणो, ५.ते सेलयया, ६.ते अट्ठिसेणा, ७.ते वीयकण्हा। ४. जे कोच्छा ते सत्तविहा पण्णत्ता,तं जहा १.ते कोच्छा, २.ते मोग्गलायणा, ३.ते पिंगलायणा, ४. ते कोडीणो, ५.ते मंडलिणो, ६.ते हारिया, ७.ते सोमया। ५. जे कोसिया ते सत्तविहा पण्णत्ता, तं जहा १.ते कोसिया, २.ते कच्चायणा, ३.ते सालंकायणा, ४. ते गोलिकायणा, ५.ते पक्खिकायणा,६.ते अग्गिया, ७.ते लोहिच्चा। मूल गोत्र (एक पुरुष से उत्पन्न वंश परम्परा) सात कहे गए हैं, यथा१. काश्यप, २. गौतम, ३. वत्स, ४. कुत्स, ५. कौशिक, ६. माण्डव,७. वाशिष्ठ। १. जो काश्यप गोत्री हैं वे सात प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. काश्यप, २. शाण्डिल्य, ३. गोल, ४. बाल, ५. मौंजकी, ६. पर्वती, ७. वर्षकृष्ण। २. जो गौतम गोत्री हैं, वे सात प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. गौतम, २. गर्ग, ३. भारद्वाज, ४. आंगिरस, ५.शर्कराभ, ६.भास्कराभ, ७. उदत्ताभ। ३. जो वत्स गोत्री हैं, वे सात प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. वत्स, २. आग्नेय, ३. मैत्रेय, ४. शाल्मली, ५. शैलक, ६.अस्थिषैण, ७. वीतकृष्ण। ४. जो कौत्स गोत्री हैं, वे सात प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कौत्स, २. मौद्गलायन, ३. पिंगलायन, ४. कौडिन्य, ५. मण्डली, ६. हारित, ७. सोमक। ५. जो कौशिक गोत्री हैं, वे सात प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कौशिक, २. कात्यायन, ३. सालंकायन, ४.गोलिकायन, ५. पाक्षिकायन, ६. आग्नेय, ७. लौहित्य।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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