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________________ प्रकीर्णक प. आहोहिए णं भंते ! मणुस्से जे भविए अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववज्जित्तए से नूणं भंते ! से खीणभोगी नो पभू उट्ठाणेणं जाव पुरिसक्कारपरक्कमेणं विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए, से नूणं भंते ! एयमट्ठ एवं वयह ? उ. गोयमा ! एवं चेव जहा छउमत्थे जाव महापज्जवसाणे भवइ। प. परमाहोहिए णं भंते ! मणुस्से जे भविए तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झित्तए जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेत्तए, से नूणं भंते ! से खीणभोगी नो पभू उट्ठाणेणं जाव पुरिसक्कारपरक्कमेणं विउलाई भोगभोगाइं भुजमाणे विहरित्तए, से नूणं भंते ! एयमट्ठ एवं वयह ? उ. गोयमा ! नो इणढे समठे, सेसं जहा छउमत्थस्स। प. केवली णं भंते ! मणूसे जे भविए तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झित्तए जाव अंतं करेत्तए,ते नूणं भंते ! ते खीणभोगी नो पभू उट्ठाणेणं जाव पुरिसक्कारपरक्कमेणं विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए, से नूणं भंते ! एयमलैं एवं वयह? उ. गोयमा ! एवं चेव जहा परमाहोहिए जाव महापज्जवसाणे भवइ। ' -विया. स.७, उ.७, सु. २०-२३ ५९. अद्दाईपेहणा विण्णाणंप. १. अदाए णं भंते ! पेहमाणे मणूसे किं अद्दाय पेहेइ, अत्ताणं पेहेइ, पलिभागं पेहेइ? १९१५ प्र. भन्ते ! ऐसा अधोऽवधिक (नियत क्षेत्र का अवधिज्ञानी) मनुष्य जो किसी देवलोक में देव रूप में उत्पन्न होने वाला हो तो भंते ! वास्तव में वह क्षीणभोगी उत्थान यावत् पुरुषकार पराक्रम द्वारा विपुल भोगोपभोगों को भोगने में समर्थ नहीं है? तो भन्ते ! क्या आप इस अर्थ को इसी तरह कहते हैं ? उ. गौतम ! छद्मस्थ के समान महापर्यवसान वाला होता है पर्यन्त समग्र कथन करना चाहिए। प्र. भन्ते ! ऐसा परमावधिक (परम) अवधिज्ञानी मनुष्य जो उसी भवग्रहण से सिद्ध होने वाला है यावतू सर्व दुखों का अन्त करने वाला है तो भन्ते ! वास्तव में वह क्षीणभोगी उत्थान यावत् पुरुषकार पराक्रम से विपुल भोगोपभोगों को भोगने में समर्थ नहीं है? भन्ते ! क्या आप इस अर्थ को इसी तरह कहते हैं? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है,शेष वर्णन छद्मस्थों के समान जानना चाहिए। प्र. भन्ते ! केवलज्ञानी मनुष्य जो उसी भव ग्रहण से सिद्ध होने वाला है यावत् सभी दुखों का अन्त करने वाला है तो भन्ते ! वास्तव में वह क्षीण भोगी उत्थान यावत पुरुषकार पराक्रम से विपुल भोगोपभोगों को भोगने में समर्थ नहीं है? भन्ते ! क्या आप इस अर्थ को इसी तरह कहते हैं ? उ. गौतम ! इसका कथन परमावधिज्ञानी की तरह महापर्यवसान वाला होता है पर्यन्त करना चाहिए। ५९. आदर्श आदि को देखने सम्बन्धी विज्ञानप्र. भन्ते ! दर्पण में अपना प्रतिबिम्ब देखता हुआ मनुष्य क्या दर्पण को देखता है या अपने आपको देखता है अथवा अपने प्रतिबिम्ब को देखता है? उ. गौतम ! वह दर्पण को देखता है, अपने शरीर को नहीं देखता है किन्तु अपने शरीर का प्रतिबिम्ब देखता है। इसी प्रकार इस अभिलाप के अनुसार क्रमशः २. असि, ३. मणि, ४. गहरा पानी ५. तेल, ६. गीला गुड़ (काकब) ७. वसा के विषय में कथन करना चाहिए। ६०. दौड़ते हुए घोड़े के 'खु खु' शब्द करने के हेतु का प्ररूपण प्र. भन्ते ! दौड़ता हुआ घोड़ा ‘खु खु' शब्द क्यों करता है? ' उ. गौतम ! दौड़ते हुए घोड़े के हृदय और यकृत के बीच में कर्कट नामक वायु उत्पन्न होती है। इससे दौड़ता हुआ घोड़ा 'खु खु' शब्द करता है। उ. गोयमा ! अद्दाई पेहेइ, णो अत्ताणं पेहेइ, पलिभागं पेहेइ। एवं एएणं अभिलावेणं २. असिं, ३. मणिं, ४. उडुपाणं, ५.तेल्लं,६.फाणियं,७. वसं। -पण्ण प.१५, उ.१, सु. ९९९ ६०. धावमाणस्स आसस्स ‘खुखु' सद्दकरणे हेऊ परूवणं- प. आसस्स णं भंते ! धावमाणस्स किं 'खु खु'त्ति करेइ? । उ. गोयमा ! आसस्स णं धावमाणस्स हिययस्स य जगयस्स य अंतरा एत्थ णं कक्कडए णामं वाए समुट्ठइ जे णं आसस्स धावमाणस्स 'खु खु'त्ति करेइ। 3 -विया.स.१०,उ.३,सु. १८ ६१. दव्वाणुओगस्स उवसंहारो संसारत्था य सिद्धा य इह जीवा वियाहिया। रूविणो चेव रूवी य अजीवा दुविहा वि य ।। ६१. द्रव्यानुयोग का उपसंहार इस प्रकार संसारस्थ और सिद्धों की अपेक्षा जीवों का तथा रूपी और अरूपी की अपेक्षा दोनों प्रकार के अजीवों का कथन किया गया है। इस प्रकार जीव और अजीव के कथन को सुनकर और उस पर श्रद्धा करके (ज्ञान एवं क्रिया आदि) सभी नयों से सम्मत संयम में मुनि रमण करें। इह जीवमजीवे य सोच्चा सद्दहिऊण य। सबनयाणं अणुमए रमेज्जा संजमे मुणी॥ -उत्त. अ.३६,गा.२४८-२४९
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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