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________________ १९१० द्रव्यानुयोग-(३) ५०. आसंसापयोगस्स दस भेया दसविहे आसंसप्पओगे पण्णते,तं जहा १. इहलोगासंसप्पओगे, २. परलोगासंसप्पओगे, ३. दुहओलोगासंसप्पओगे, ४. जीवियासंसप्पओगे, ५. मरणासंसप्पओगे। ६. कामासंसप्पओगे, ७. भोगासंसप्पओगे, ८. लाभासंसप्पओगे, ९. पूयासंसप्पओगे, १०. सकारासंसप्पओगे। -ठाणं.अ.१०,सु.७५९ ५१. अथिर-थिर-बालाईणं परियट्टणा-अपरियट्टणा सासयाइ परवणंप. से नूणं भंते ! अथिरे पलोट्टइ, नो थिरे पलोट्टइ? अथिरे भज्जइ, नो थिरे भज्जइ? सासए बालए,बालियत्तं असासयं? सासए पंडिए, पंडियत्तं असासयं? उ. हता, गोयमा ! अथिरे पलोट्टइ जाव पंडियत्तं असासयं। -विया.स.१,उ.९, सु.२८ ५२. सेलेसि पडिवनगस्स अणगारस्स परप्पयोगेणविणा एयणाइ णिसेह पखवणंप. सेलेसिं पडिवन्नए णं भंते ! अणगारे सया समियं एयइ वेयइ जाय तं तं भावे परिणमइ? ५०. आंशसा प्रयोग के दस भेद आशंसा प्रयोग (अभिलाषा या प्रयल) के दस प्रकार कहे गए हैं, यथा१. इहलोक की आशंसा करना, २. परलोक की आशंसा करना, ३. इहलोक और परलोक की आशंसा करना, ४. जीवन की आशंसा करना, ५. मरण की आशंसा करना, ६. काम (शब्द और रूप) की आशंसा करना, ७. भोग (गंध, रस और स्पर्श) की आशंसा करना, ८. लाभ की आशंसा करना, ९. पूजा की आशंसा करना, १०. सत्कार की आशंसा करना। ५१. अस्थिर स्थिर बालादि का परिवर्तन-अपरिवर्तन और शाश्वतादि का प्ररूपणप्र. भन्ते ! क्या अस्थिर आत्मा ही बदलती है और स्थिर आत्मा नहीं बदलती है? क्या अस्थिर आत्मा ही नियम का भंग करती है और स्थिर आत्मा नहीं करती है? क्या बाल आत्मा शाश्वत है और बालत्व आत्मा अशाश्वत है ? क्या पण्डित आत्मा शाश्वत है और पण्डितत्व अशाश्वत है? उ. हां, गौतम ! अस्थिर आत्मा बदलती है यावत् (आत्मा का) पण्डितत्व अशाश्वत है। ५२. शैलशी प्रतिपन्नक अणगार के पर प्रयोग के बिना एजनादि के निषेध का प्ररूपणप्र. भन्ते ! शैलेशी अवस्था प्राप्त अनगार क्या सदा निरन्तर कांपता है, विशेषरूप से कांपता है यावत् उन-उन भावों में परिणमता है? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, पर-प्रयोग के बिना कंपन आदि संभव नहीं है। ५३. एजना के भेद और चार गतियों में प्ररूपण प्र. भन्ते ! एजना कितने प्रकार की कही गई है? उ. गौतम ! एजना पाँच प्रकार की कही गई है, यथा १. द्रव्य एजना, २. क्षेत्र एजना, ३. काल एजना, ४. भव एजना, ५. भाव एजना। प्र. १. भन्ते ! द्रव्य एजना कितने प्रकार की कही गई है ? उ. गौतम ! द्रव्य एजना चार प्रकार की कही गई है, यथा १. नैरयिक द्रव्य एजना, २. तिर्यञ्चयोनिक द्रव्य एजना, ३. मनुष्य द्रव्य एजना, ४. देव द्रव्य एजना। उ. गोयमा ! नो इणठे समठे,नऽन्नत्यगेणं परप्पयोगेणं। -विया. स. १७, उ.३, सु.१ ५३. एयणाया भेया चउगईसुय पसवर्ण प. कइविहाणं भंते ! एयणा पन्नत्ता? उ. गोयमा ! पंचविहा एयणा पन्नत्ता,तं जहा १. दव्वेयणा, २. खेतेयणा, ३. कालेयणा, २. कालयणा, ४. भवेयणा, ५. भावेयणा। प. १.दव्वेयणा णं भंते ! कइविहा पन्नत्ता? उ. गोयमा ! चउव्विहा पन्नत्ता,तं जहा १. नेरइयदव्वेयणा, २. तिरिक्खजोणियदव्वेयणा, ३. मणुस्सदव्वेयणा, ४. देवदव्वेयणा।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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