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________________ पुद्गल अध्ययन ३. असंखेज्जपएसोगाढा पोग्गला पएसट्ठयाए असंखेज्जगुणा, दव्वट्ठपएसट्ठयाए१. सव्वत्थोवा एगपएसोगाढा पोग्गला दव्वट्ठ अपएसट्ठयाए, २. संखेज्जपएसोगाढा पोग्गला दव्वट्ठयाए संखेज्जगुणा, ते चेव पएसट्ठयाए संखेज्जगुणा, - १८६१ ) ३. (उनसे) असंख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गल प्रदेश की अपेक्षा असंख्यातगुणे हैं। द्रव्य-प्रदेश की अपेक्षा१. एक प्रदेशावगाढ पुद्गल द्रव्य और अप्रदेश की अपेक्षा सबसे अल्प हैं। २. (उनसे) संख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा संख्यातगुणे हैं और वे ही प्रदेश की अपेक्षा संख्यातगुणे हैं। ३. (उनसे) असंख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा असंख्यातगुणे हैं और वे ही प्रदेश की अपेक्षा असंख्यातगुणे हैं। प्र. भंते ! एक समय की स्थिति वाले, संख्यातसमय की स्थिति वाले और असंख्यातसमय की स्थिति वाले पुद्गलों में द्रव्य की अपेक्षा, प्रदेश की अपेक्षा और द्रव्य-प्रदेश की अपेक्षा कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक है? उ. गौतम ! जैसे अवगाहना का अल्पबहुत्व कहा वैसे ही स्थिति का भी अल्पबहुत्व कहना चाहिए। ३. असंखेज्जपएसोगाढा पोग्गला दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा, ते चेव पएसट्ठयाए असंखेज्जगुणा। प. एएसि णं भंते ! एगसमयट्टिईयाणं संखेज्जसमय ट्ठिईयाणं असंखेज्जसमयट्ठिईयाण य पोग्गलाणं दव्वट्ठयाए पएसट्ठयाए दव्वट्ठपएसट्ठयाए कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा ! जहा ओगाहणाए भणिया तहा ठिईए वि अप्पाबहुयं भाणियव्यं।' -विया. स. २५, उ.४, सु. ११९-१२० १00. परमाणुपोग्गलाणं खंधाण य वण्णाई पडुच्च दब्वट्ठयाईहिं अप्पाबहुयंप. एएसि णं भंते ! १.एगगुणकालगाणं, २. संखेज्जगुणकालगाणं, ३. असंखेज्जगुणकालगाणं, ४. अणंतगुणकालगाण य पोग्गलाणं दव्वट्ठयाए पएसट्ठयाए दव्वट्ठपएसट्ठयाए कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा ! एएसिं जहा परमाणुपोग्गलाणं अप्पाबहुयं तहा एएसि पि अप्पाबहुयं, एवं सेसाण वि वण्ण-गंध- रसाणं। १00.परमाणु पुद्गल और स्कन्धों का वर्णादि की अपेक्षा द्रव्यादि विवक्षा द्वारा अल्पबहुत्वप्र. भंते ! इन १. एक गुण कृष्ण वर्ण वाले, २. संख्यातगुण कृष्ण वर्ण वाले, ३. असंख्यातगुण कृष्ण वर्ण वाले और . ४. अनन्तगुण कृष्ण वर्ण वाले, पुद्गलों में द्रव्य विवक्षा, प्रदेश विवक्षा और द्रव्य-प्रदेश विवक्षा से कौन-किससे अल्प यावत् विशेषाधिक है? प. एएसि णं भंते ! १.एगगुणकक्खडाणं, २. संखेज्जगुणकक्खडाणं, ३. असंखेज्जगुणकक्खडाणं, ४. अणंतगुणकक्खडाण य पोग्गलाणं दव्वट्ठयाए पएसट्ठयाए दव्वट्ठ-पएसट्ठयाए कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? गोयमा ! १. सव्वत्थोवा एगगुणकक्खडा पोग्गला दव्वट्ठयाए, २. संखेज्जगुणकक्खडा पोग्गला दबट्ठयाए संखेज्जगुणा, ३. असंखेज्जगुणकक्खडा पोग्गला दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा, उ. गौतम ! जिस प्रकार परमाणु-पुद्गलों का अल्प-बहुत्व कहा है उसी प्रकार इनका भी अल्प-बहुत्व कहना चाहिए। इसी प्रकार शेष वर्ण, गंध और रसों का अल्पबहुत्व कहना चाहिए। प्र. भंते ! इन १. एक गुण कर्कश, २. संख्यातगुण कर्कश, ३. असंख्यातगुण कर्कश और ४. अनन्तगुण कर्कश पुद्गलों में द्रव्य विवक्षा, प्रदेश विवक्षा तथा द्रव्य-प्रदेश विवक्षा से कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक है? उ. गौतम ! १. एक गुण कर्कश पुद्गल द्रव्य विवक्षा से सबसे अल्प हैं, २. (उनसे) संख्यातगुण कर्कश पुद्गल द्रव्य विवक्षा से संख्यातगुणे हैं, ३. (उनसे) असंख्यातगुण कर्कश पुद्गल द्रव्य विवक्षा से असंख्यातगुणे हैं, १. पण्ण, प. ३, सु. ३३१-३३२
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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