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________________ १८३४ उ. गोयमा ! एवं चेव। दं.३-११.एवं जाव थणियकुमारत्ते। प. द. १२. एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स पुढविकाइयत्ते केवइया ओरालियपोग्गलपरियट्टा अतीता? उ. गोयमा ! अणंता। प. केवइया पुरेक्खडा? उ. गोयमा ! कस्सइ अत्थि, कस्सइ नत्थि। जस्सऽत्थि जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणता वा। दं.१३-२१.एवं जाव मणुस्से। द. २२-२४. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियत्ते जहा असुरकुमारत्ते। •प. एगमेगस्स णं भंते ! असुरकुमारस्स नेरइयत्ते केवइया ओरालियपोग्गलपरियट्टा अतीता? उ. गोयमा ! एवं जहा नेरइयस्स वत्तव्वया भणिया तहा असुरकुमारस्स वि भाणियव्वा जाव वेमाणियत्ते। एवं जाव थणियकुमारस्स। एवं पुढविकाइयस्स वि। एवं जाव वेमाणियस्स। सव्वेसिं एक्को गमो। प. दं. १. एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयत्ते केवइया वेउव्वियपोग्गलपरियट्टा अतीता? उ. गोयमा ! अणंता। प. केवइया पुरेक्खडा? उ. एगुत्तरिया जाव अणंता। । द्रव्यानुयोग-(३)) उ. गौतम ! पूर्ववत् जानना चाहिए। दं.३-११. इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. दं.१२. भंते ! पृथ्वीकाय अवस्था में प्रत्येक नैरयिक जीव के अतीतकाल में कितने औदारिक पुद्गल-परिवर्त हुए हैं ? उ. गौतम ! वे अनन्त हुए हैं। प्र. भविष्य में कितने होंगे? उ. गौतम ! किसी के होंगे और किसी के नहीं होंगे। जिसको होंगे, उसके जघन्य एक दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात या अनन्त होंगे। दं.१३-२१. इसी प्रकार मनुष्य भव पर्यन्त कहना चाहिए। दं. २२-२४. जिस प्रकार असुरकुमारभव के विषय में कहा उसी प्रकार वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकभवं के विषय में भी कहना चाहिए। प्र. भंते ! नैरयिकभव में प्रत्येक असुरकुमार के अतीतकाल में कितने औदारिक पुद्गल परिवर्त हुए हैं? उ. गौतम ! जिस प्रकार (प्रत्येक) नैरयिक जीव का कथन किया है, उसी प्रकार (प्रत्येक) असुरकुमार के भी वैमानिक भव-पर्यन्त कथन करना चाहिए। इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त कहना चाहिए। इसी प्रकार पृथ्वीकाय के विषय में भी कहना चाहिए। इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त आलापक कहना चाहिए। सबका कथन एक समान है। प्र. दं. १. भंते ! प्रत्येक नैरयिक जीव के नैरयिक भव में अतीतकाल में कितने वैक्रिय पुद्गल परिवर्त हुए हैं ? उ. गौतम ! अनन्त हुए हैं। प. भविष्यकाल में कितने होंगे? उ. (किसी के होंगे और किसी के नहीं होंगे, जिनके होंगे) उनके एक से लेकर अनन्त पर्यन्त होंगे। दं. २-११. इसी प्रकार स्तनितकुमार भव पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. दं. १२. भंते ! पृथ्वीकायिक भव में प्रत्येक नैरयिक जीव के अतीत काल में कितने वैक्रिय पुद्गल-परिवर्त हुए हैं ? उ. गौतम ! एक भी नहीं हुआ है। प्र. भविष्यकाल में कितने होंगे? उ. एक भी नहीं होगा। दं. १३-२४. इस प्रकार जहाँ वैक्रिय शरीर है, वहाँ एक से लेकर उत्तरोत्तर वैक्रिय पुद्गल परिवर्त जानना चाहिए। जहाँ वैक्रिय शरीर नहीं है, वहाँ (प्रत्येक नैरयिक के) पृथ्वीकाय भव में (वैक्रिय पुद्गल परिवर्त के विषय में) कहा उसी प्रकार प्रत्येक वैमानिक जीव के वैमानिक भव पर्यन्त कहना चाहिए। तैजस पुद्गल-परिवर्त और कार्मण पुद्गल-परिवर्त सर्वत्र एक से लेकर उत्तरोत्तर अनन्त पर्यन्त कहने चाहिए। दं.२-११.एवं जाव थणियकुमारत्ते। प. दं. १२. एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स पुढविकाइयत्ते ___ केवइया वेउव्विय पोग्गलपरियट्टा अतीता? उ. गोयमा ! नत्थि एक्को वि। प. केवइया पुरेक्खडा? उ. नस्थि एक्को वि। दं.१३-२४. एवं जत्थ वेउव्वियसरीरं तत्थ एगुत्तरिओ, जत्थ नत्थि तत्थ जहा पुढविकाइयत्ते तहा भाणियव्वं जाव वेमाणियस्स वेमाणियत्ते। तेयापोग्गलपरियट्टा कम्मापोग्गलपरियट्टा य सव्वत्थ एगुत्तरिया भाणियव्या।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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