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________________ पुद्गल अध्ययन कोहविवेगे जाव मिच्छादसणसल्लविवेगे एस णं कतिवण्णे जाव कतिफासे पन्नत्ते? उ. गोयमा ! अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे पण्णत्ते। -विया. स. १२, उ.५, सु.८ १३. उप्पत्तियाई चउबुद्धीसु उग्गहाईसु उट्ठाणाईसु य वण्णाइ अभाव परूवणंप. अह भंते ! उप्पत्तिया वेणइया कम्मया पारिणामिया एस णं कतिवण्णा जाव कतिफासा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अवण्णा जाव अफासा पन्नत्ता। प. अह भंते ! उग्गहे ईहा अवाय धारणा एस णं कतिवण्णा जाव कतिफासा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अवण्णा जाव अफासा पन्नता। प. अह भंते ! उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कारपरक्कमे एस णं कतिवण्णे जाव कतिफासे पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अवण्णा जाव अफासा पन्नत्ता। __-विया. स. १२, उ.५, सु. ९-११ १४. ओवासन्तरेसुतणुवायाईएसु पुढवीसुय वण्णाइ परूवणं १७७५ क्रोधविवेक यावत् मिथ्यादर्शनशल्य विवेक ये सब कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श वाले कहे गए हैं? उ. गौतम !(ये सभी) वर्णरहित, गन्ध रहित, रसरहित और स्पर्श रहित कहे गए हैं। १३. औत्पातिकी आदि चार बुद्धियों अवग्रहादि और उत्थानादि में वर्णादि के अभाव का प्ररूपणप्र. भंते ! औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिकी और पारिणामिकी बुद्धि कितने वर्ण यावत् कितने स्पर्श वाली कही गई हैं? उ. गौतम ! ये वर्ण यावत् स्पर्श रहित कही गई हैं। प्र. भंते ! अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा ये कितने वर्ण यावत् कितने स्पर्श वाले कहे गए हैं ? उ. गौतम ! ये वर्ण यावत् स्पर्श से रहित कहे गए हैं। प्र. भंते ! उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम ये कितने वर्ण यावत् कितने स्पर्श वाले कहे गए हैं? उ. गौतम ! ये वर्ण यावत् स्पर्श से रहित कहे गये हैं। प. सत्तमे णं भंते ! ओवासंतरे कतिवण्णे जाव कतिफासे पण्णत्ते? . उ. गोयमा ! अवण्णे जाव अफासे पन्नत्ते। प. सत्तमे णं भंते ! तणुवाए कतिवण्णे जाव कतिफासे पण्णते? उ. गोयमा ! जहा पाणाइवाए। १४. अवकाशांतरों तनुवातादि और पृथ्वियों में वर्णादि का प्ररूपणप्र. भंते ! सप्तम अवकाशान्तर कितने वर्ण यावत् कितने स्पर्श वाला कहा गया है? उ. गौतम ! वह वर्ण यावत् स्पर्श से रहित कहा गया है। प्र. भंते ! सप्तम तनुवात कितने वर्ण यावत कितने स्पर्श वाला कहा गया है? उ. गौतम ! प्राणातिपात के समान इसके वर्णादि का कथन करना चाहिए। विशेष-आठ स्पर्श वाला कहना चाहिए। जिस प्रकार सप्तम तनुवात के विषय में कहा है उसी प्रकार सप्तम घनवात, घनोदधि और सातवीं पृथ्वी के विषय में भी कहना चाहिए। छठा अवकाशान्तर वर्ण यावत् स्पर्श रहित है। छठा तनुवात, घनवात, घनोदधि और छठी पृथ्वी ये सब आठ स्पर्श वाले कहे गए हैं। जिस प्रकार सातवीं पृथ्वी सम्बन्धी वर्णन किया उसी प्रकार प्रथम पृथ्वी पर्यन्त कथन करना चाहिए। णवरं-अट्ठफासे पन्नत्ते। एवं जहा सत्तमे तणुवाए तहा सत्तमे घणवाए, घणोदही पुढवी। छठे ओवासंतरे अवण्णे जाव अफासे पण्णत्ते। छठे तणुवाए, घणवाए, घणोदही, पुढवी एयाइं अट्ठ फासाई। एवं जहा सत्तमाए पुढवीए वत्तव्वया भणिया तहा जाव पढमाए पुढवीए भाणियव्वं। -विया. स. १२, उ.५, सु. १२-१७ १५. रयणप्पभाइ पुढवीसुपोग्गलदव्वाणं वण्णाइ परूवणं प. अस्थि णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहेदव्वाई वण्णओ काल-नील-लोहिय-हालिद्द-सुक्किलाइं, गंधओ सुभिंगंध-दुब्भिगंधाइं, रसओ तित्त-कडु-कसाय-अंबिलमहुराई, फासओ कक्खड-मउय-गरुय-लहुय-सीयउसिण-निद्ध-लुक्खाई, अन्नमन्त्रबद्धाइं अन्नमन्नपुट्ठाई जाव अन्नमन्नघडताए चिट्ठति? उ. हंता, गोयमा ! अत्थि। १५. रत्नप्रभा आदि पृथ्वियों में पुद्गल द्रव्यों के वर्णादि का प्ररूपणप्र. भंते ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे जो द्रव्य हैं वे वर्ण से कृष्ण नील, रक्त, पीत और शुक्ल हैं, गन्ध से सुगन्धित और दुर्गन्धित हैं, रस से तीखा, कडुवा, कषैला, अम्ल और मधुर हैं, स्पर्श से कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध तथा रुक्ष हैं ? अन्योन्यबद्ध हैं, अन्योन्यस्पृष्ट हैं यावत् अन्योन्य (परस्पर) मिले हुए हैं ? उ. हाँ, गौतम ! हैं।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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