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________________ १७४६ सेतं रूवि अजीवपण्णवणा । सेतं अजीवपण्णवणा । - पण्ण. प. १, सु. १३ (१-५) १०. रूवि - अजीव - दव्वाणं- अनंतत्त परूवणं प से णं भन्ते । किं संखेज्जा, असंखेज्जा, अनंता ? उ. गोवमा ! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता । प से केणट्ठेण भन्ते ! एवं युच्चइ 'नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता ?' उ. गोयमा ! अनंता परमाणु पोग्गला, अणता दुपदेसिया संधा जाब अणता दसपदेसिया खंधा, अर्णता संखेज्जपदेसिया संधा, अणता असंखेज्जपदेसिया खंधा, अनंता अणतपदेसिया खंधा । से तेणट्ठेणं गोवमा ! एवं युच्चइ 'ते णं नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता'।' १. विया. स. २५उ. २ सु. २ - अणु. सु. ४०३ यह रूपी अजीव प्रज्ञापना हुई। यह अजीव प्रज्ञापना हुई। द्रव्यानुयोग - ( ३ ) १०. रूपी अजीव द्रव्यों के अनंतत्व का प्ररूपण प्र. भन्ते ! क्या वे (रूपी अजीव द्रव्य) संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? उ. गौतम ! वे संख्यात और असंख्यात नहीं हैं किन्तु अनन्त हैं। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि 'वे संख्यात और असंख्यात नहीं है किन्तु अनन्त है?" उ. गौतम ! परमाणु पुद्गल अनन्त हैं, द्विप्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं यावत् दशप्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं। संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं, असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं और अनन्त प्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"ये संख्यात और असंख्यात नहीं है किन्तु अनन्त हैं।'
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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