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________________ १७३६ ४. हालिद्दवण्णपरिणया वि, ५. सुक्किलवण्णपरिणया वि। गंधओ- १. सुब्भिगंधपरिणया वि, २. दुब्भिगंधपरिणया वि । फासओ - १. कक्खडफासपरिणया वि, २. मउयफासपरिणया वि ३. गरुयफासपरिणया वि, ४. लहुयफासपरिणया वि, ५. सीयफासपरिणया वि, ६. उसिणफासपरिणया वि, ७. निद्धफासपरिणया वि, ८. लुक्खफासपरिणया वि । संठाणओ - १. परिमंडलसंठाणपरिणया वि, २. वट्टसंठाणपरिणया वि, ३. तंससंठाणपरिणया वि. ४. चउरंससंठाणपरिणया वि, ५. आयतसंठाणपरिणया वि' । २. जे रसओ कडुयरसपरिणया ते वण्णओ- १. कालवण्णपरिणया वि, २. नीलवण्णपरिणया वि, ३. लोहियवण्णपरिणया वि, ४. हालिद्दवण्णपरिणया वि, ५. सुक्किलवण्णपरिणया वि। गंधओ - १. सुब्भिगंध परिणया वि, २. दुब्भिगंध परिणया वि। फासओ - १. कक्खडफासपरिणया वि, २. मउयफासपरिणया वि, ३. गरुयफासपरिणया वि, ४. लहुयफासपरिणया वि, ५. सीयफासपरिणया वि, ६. उसिणफासपरिणया वि, ७. निद्धफासपरिणया वि, ८. लुक्खफासपरिणया वि। संठाणओ - १. परिमंडलसंठाणपरिणया वि, २. वट्टसंठाणपरिणया वि, ३. तंससंठाणपरिणया वि, ४. चउरंससंठाणपरिणया वि, ५. आयतसंठाणपरिणया वि२ । ३. रसओ कसायरसपरिणया ते वण्णओ - १. कालवण्णपरिणया वि, २. नीलवण्णपरिणया वि, 1. रसओ तित्तए जे उ, भइए से उ वण्णओ। गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओ विय ॥ उत्त. अ. ३६, गा. २९ ४. पीतवर्ण-परिणत भी हैं, ५. शुक्लवर्ण- परिणत भी हैं। वे गन्ध से - १. सुगन्ध - परिणत भी हैं, २. दुर्गन्ध - परिणत भी हैं। वे स्पर्श से - १. कर्कशस्पर्श-परिणत भी हैं, २. मृदुस्पर्श- परिणत भी हैं, ३. गुरुस्पर्श-परिणत भी हैं, ४. लघुस्पर्श - परिणत भी हैं, ५. शीतस्पर्श- परिणत भी हैं, ६. उष्णस्पर्श- परिणत भी हैं, ७. स्निग्धस्पर्श-परिणत भी हैं, ८. रूक्षस्पर्श-परिणत भी हैं। वे संस्थान से - १. परिमण्डलसंस्थान- परिणत भी हैं, २. वृत्तसंस्थान - परिणत भी हैं, ३. त्र्यनसंस्थान - परिणत भी हैं, ४. चतुरस्रसंस्थान- परिणत भी हैं, ५. आयतसंस्थान - परिणत भी हैं। २. जो रस से कटुरस-परिणत हैं वे वर्ण से - १. कृष्णवर्ण-परिणत भी हैं, २. नीलवर्ण-परिणत भी हैं, ३. रक्तवर्ण-परिणत भी हैं, ४. पीतवर्ण- परिणत भी हैं, ५. शुक्लवर्ण- परिणत भी हैं। वे गन्ध से - १. सुगन्ध-परिणत भी हैं, २. दुर्गन्ध - परिणत भी हैं। वे स्पर्श से - १. कर्कशस्पर्श-परिणत भी हैं, द्रव्यानुयोग - (३) २. मृदुस्पर्श-परिणत भी हैं, ३. गुरुस्पर्श- परिणत भी हैं, ४. लघुस्पर्श- परिणत भी हैं, ५. शीतस्पर्श - परिणत भी हैं, ६. उष्णस्पर्श-परिणत भी हैं, ७. स्निग्धस्पर्श-परिणत भी हैं, ८. रुक्षस्पर्श-परिणत भी हैं। वे संस्थान से - १. परिमण्डलसंस्थान - परिणत भी हैं, २. वृत्तसंस्थान - परिणत भी हैं, ३. त्र्यम्नसंस्थान - परिणत भी हैं. ४. चतुरस्रसंस्थान - परिणत भी हैं, ५. आयतसंस्थान - परिणत भी हैं। ३. जो रस से कषायरस-परिणत हैं वे वर्ण से - १. कृष्णवर्ण-परिणत भी हैं, २. नीलवर्ण - परिणत भी हैं, २. रसओ कडुए जे उ भइए से उ वण्णओ। गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओ विय ॥ - उत्त. अ. ३६, गा. ३०
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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