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________________ अजीव द्रव्य अध्ययन जे रसपरिणया ते पंचविहा पण्णत्ता,तं जहा१. तित्तरसपरिणया, २. कडुयरसपरिणया, ३. कसायरसपरिणया. ४. अंबिलरसपरिणया, ५. महुररसपरिणया। जे फासपरिणया ते अट्ठविहा पण्णत्ता,तं जहा१. कक्खडफासपरिणया, २. मउयफासपरिणया, ३. गरुयफासपरिणया, ४. लहुयफासपरिणया, ५. सीयफासपरिणया, ६. उसिणफासपरिणया, ७. निद्धफासपरिणया, ८. लुक्खफासपरिणयारे। जे संठाणपरिणया ते पंचविहा पण्णता,तं जहा१. परिमंडलसंठाणपरिणया, २. वट्टसंठाणपरिणया, ३. तंससंठाणपरिणया, ४. चउरंससंठाणपरिणया, ५. आयतसंठाणपरिणया। -पण्ण.प.१,सु.७-८ । १७३१ जो रसपरिणत हैं, वे पांच प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. तिक्तरस के रूप में परिणत, २. कटुरस के रूप में परिणत, ३. कषायरस के रूप में परिणत, ४. अम्लरस के रूप में परिणत, ५. मधुररस के रूप में परिणत। जो स्पर्शपरिणत हैं, वे आठ प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कर्कशस्पर्श के रूप में परिणत, २. मृदुस्पर्श के रूप में परिणत, ३. गुरुस्पर्श के रूप में परिणत, ४. लघुस्पर्श के रूप में परिणत, ५. शीतस्पर्श के रूप में परिणत, ६. उष्णस्पर्श के रूप में परिणत, ७. स्निग्धस्पर्श के रूप में परिणत, ८. रूक्षस्पर्श के रूप में परिणत। जो संस्थानपरिणत हैं, वे पाँच प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. परिमण्डल संस्थान के रूप में परिणत, २. वृत्त (चूड़ी) के संस्थान के रूप में परिणत, ३. त्रिकोण संस्थान के रूप में परिणत, ४. चतुष्कोण संस्थान के रूप में परिणत, ५. आयतसंस्थान के रूप में परिणत। ३. १. प. (क) से किं तं रसनामे? उ. पंचविहे पण्णत्ते,तं जहा१.तित्तरसनामे जाव ५. महुररसनामे। से तं रसनामे। -अणु. कालदारे, सु. २२२ प. (ख) से किं तं रसगुणप्पमाणे? उ. पंचविहे पण्णत्ते,तं जहा १.तित्तरसगुणप्पमाणे जाव ५. महुररसगुणप्पमाणे। से तं रसगुणप्पमाणे। -अणु. कालदारे, सु. ४३२ (ग) पंच रसा पण्णता,तं जहा१.तित्ता जाव ५. महुरा। -ठाणं अ. ५, उ. १, सु. ३९०/२ (घ) रसओ परिणया जे उ, पंचहा ते पकित्तिया। १.तित्त, २. कडुय, ३. कसाया, ४. अंबिला, ५. महुरा तहा॥ -उत्त.अ.३६,गा.१८ (ङ) जीवा. पडि.१, सु.५ (च) विया. स.८, उ.१,सु.४८ (छ) विया. स.८,उ.१,सु.७७ २. प. (क) से किं तं फासनामे? उ. अट्ठविहे पण्णत्ते, तं जहा१. कक्खडफासनामे जाव ८. लुक्खफासनामे। से तं फासनामे। -अणु. कालदारे, सु. २२३ प. (ख) से किं तं फासगुणप्पमाणे? उ. अट्ठविहे पण्णत्ते, तं जहा १. कक्खडफासगुणप्पमाणे जाव ८. लुक्खफासगुणप्पमाणे। से तं फासगुणप्पमाणे। -अणु. कालदारे, सु. ४३३ (ग) फासओ परिणया जे उ अट्ठहा ते पकित्तिया। १. कक्खडा, २. मउया चेव, ३. गरुया, ४. लहुया तहा॥ १.सीया, ५. उण्हा य, ६. निद्धा य, तहा ७.लुक्खा य आहिया। इह फासपरिणया एए, पुग्गला समुदाहिया॥ -उत्त.अ.३६,गा.१९-२० (घ) जीवा. पडि.१, सु.५ (ङ) विया. स.८, उ.१, सु.४८ (च) विया. स.८, उ.१, सु.७८ प. (क) से किं तं संठाणनामे? उ. पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा १. परिमंडलसंठाणनामे जाव ५. आयतसंठणनामे। से तं संठाणनामे। _ -अणु. कालदारे, सु. २२४ प. (ख) से किं तं संठाणगुणप्यमाणे? उ. पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा १. परिमंडलसंठाणगुणप्पमाणे जाव ५. आयतसंठाणगुणप्पमाणे। से तं संठाणगुणप्पमाणे। से तं अजीवगुणप्पमाणे। -अणु. कालदारे, सु.४३४ (ग) संठाणपरिणया जे उ,पंचहा ते पकित्तिया। १.परिमंडला य २. वट्टा,३.तंसा, ४-५. चउरसमायया ॥ -उत्त.अ.३६,गा.२१ (घ) जीवा. पडि. १, सु.५ (ङ) विया. स.८, उ.१, सु. ४८ (च) विया. स.८, उ.१,सु.७९
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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