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________________ १७१४ (१२) वेय दारं सवेदओ जाव नपुंसगवेदओ जहा आहारओ। अवेदओ जहा अकसायी। (१३) सरीर दारं ससरीरीजाव कम्मगसरीरी जहा आहारओ, णवरं-जस्सजं अत्थि। असरीरीजहा नो भवसिद्धीय-नो अभवसिद्धीओ। - द्रव्यानुयोग-(३)) (१२) वेद द्वार सवेदक से नपुंसकवेदक पर्यन्त का कथन आहारक के समान है। अवेदक अकषायी के समान है। (१३) शरीर द्वार सशरीरी से कार्मणशरीरी पर्यन्त का कथन आहारक के समान है। विशेष-जिसके जो शरीर हो वह कहना चाहिए। अशरीरी का कथन नो भवसिद्धिक-नो अभवसिद्धिक के समान है। (१४) पर्याप्तक द्वार पांच पर्याप्तियों से पर्याप्तक और पांच अपर्याप्तियों से अपर्याप्तक का कथन आहारक के समान है। एक वचन और बहुवचन की अपेक्षा सर्वत्र दण्डकों का कथन करना चाहिए। ४. चरम और अचरमों के अन्तर का प्ररूपण चरम और अचरम जीवों में अन्तर नहीं है। ५. चरमाचरमों का अल्पबहुत्वप्र. भंते ! इन चरम और अचरम जीवों में से कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक है? उ. गौतम ! १. अचरम जीव सबसे थोड़े हैं, २.(उनसे) चरम जीव अनन्तगुणे हैं। (१४) पज्जत्त दारं पंचहिं पज्जत्तीहिं पंचहिं अपज्जत्तीहिं जहा आहारओ। काम सव्वत्थ एगत्तपुहत्तेणं दंडगा भाणियव्वा। -विया.स.१८.उ.१,सु.६४-१०२ ४. चरिमाचरिमाणं अंतर परूवणं चरिमाचरिम जीवेसुणत्थि अंतरं। -जीवा. पडि.९, सु.२३६ ५. चरिमाचरिमाणं अप्पबहुत्तंप. एएसि णं भंते ! जीवाणं चरिमाणं अचरिमाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा !१.सव्वत्थोवा जीवा अचरिमा, २. चरिमा अणंतगुणा,' -पण्ण. प.३, सु.२७४ अजीवाणं चरिमाचरिमत्तं ६. परिमंडलाइ संठाणाणं चरिमाचरिमत्त परूवणंप. परिमंडले णं भंते ! संठाणे संखेज्जपएसिए संखेज्जपएसोगाढे किंचरिमे,अचरिमे, चरिमाई अचरिमाइं, चरिमंतपएसा, अचरिमंतपएसा? उ. गोयमा ! परिमंडले णं संठाणे संखेज्जपएसिए संखेज्जपएसोगाढे, नो चरिमे, नो अचरिमे, नो चरिमाइं, नो अचरिमाइं, नो चरिमंतपएसा,नो अचरिमंतपएसा, नियमा अचरिमं च, चरिमाणि य, चरिमंतपएसा य, अचरिमंतपएसा य, एवं जाव आयए, प. परिमंडले णं भंते ! संठाणे असंखेज्जपएसिए संखेज्जपएसोगाढे किं चरिमे, अचरिमे, १. जीवा. पडि.९.सु.२३६ अजीवों का चरमाचरमत्व ६. परिमंडलादि संस्थानों के चरमाचरमत्व का प्ररूपणप्र. भंते ! संख्यातप्रदेशी और संख्यातप्रदेशावगाढ परिमण्डल संस्थान क्या(एक वचन से) चरम या अचरम है, (बहुवचन से) चरम या अचरम हैं, चरमान्तप्रदेश हैं या अचरमान्त प्रदेश हैं ? उ. गौतम ! संख्यातप्रदेशी और संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डल संस्थान, (एक वचन से) चरम नहीं है और अचरम भी नहीं है, (बहुवचन से) चरम नहीं हैं और अचरम भी नहीं हैं, चरमान्तप्रदेश नहीं हैं और अचरमान्तप्रदेश भी नहीं हैं, नियमतः एक अचरम, बहुत चरम, चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश है। इसी प्रकार आयतसंस्थान पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. भंते ! असंख्यातप्रदेशी और संख्यातप्रदेशावगाढ परिमण्डल संस्थान क्या(एक वचन से) चरम है या अचरम है,
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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