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________________ १७१० उ. गोयमा सिय चरिमे सिय अचरिमे। दं. २-२४. एवं निरंतरं जाव बेमाणिए। प. दं. १ नेरइया णं भंते ! भवचरिमेण किं चरिमा, अचरिमा ? उ. गोयमा चरिमा वि, अचरिमा वि दं. २ २४ एवं निरंतर जाय वैमाणिया । (४) भासा दारं प. दं. १ नेरइए णं भंते ! भासाचरिमेणं किं चरिमे, अचरिमे ? उ. गोयमा ! सिय चरिने यि अचरिमे। . २.११, १७-२४ एवं (एगिंदियवज्जे) निरंतरं जाव माणिए । प. बं. १ नेरड्या णं भंते ! भासाचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा ? उ. गोयमा चरिमा वि, अचरिमा वि दं. २-११, १७-२४ एवं एगिंदियवज्जा निरंतरं जाव वैमाणिया । (५) आणापाणु दारं प. बं. १ नेरइए णं भंते! आणापाणुचरिमेणं किं चरिमे, अचरिमे ? उ. गोयमा ! सिय चरिमे, सिय अचरिमे, ६. २-२४ एवं निरंतर जाव वैमाणिए । प. दं. १ नेरइया णं भंते! आणापाणुचरिमेण किं चरिमा, अचरिमा ? उ. गोयमा ! चरिमा वि, अचरिमा वि द. २-२४ एवं निरंतरं जाव वेमाणिया । (६) आहार दारं प. दं. १ नेरइए णं भंते ! आहारचरिमेणं किं चरिमे, अचरिमे ? उ. गोयमा सिय धरि सिय अचरिमे, दं. २-२४ एवं निरंतरं जाव वेमाणिए । प. दं. १ नेरइया णं भंते ! आहार चरिमेणं किं चरिमा, अचरिमा ? उ. गोयमा ! चरिमा वि, अचरिमा वि द. २-२४ एवं निरंतर जाय वेमाणिया, (७) भाव दारं प. पं. १ नेरइए णं भंते! भावचरिमेण किं चरिमे, अचरिमे ? द्रव्यानुयोग - ( ३ ) उ. गौतम ! वह कथंचित् चरम है और कथंचित् अचरम है। दं. २-२४. इसी प्रकार निरन्तर (एक) वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. दं. १. भंते ! ( अनेक) नैरयिक भवचरम की अपेक्षा से चरम हैं या अचरम हैं ? उ. गौतम ! वे चरम भी हैं और अचरम भी हैं। दं. २-२४. इसी प्रकार निरन्तर वैमानिकों पर्यन्त जानना चाहिए। (४) भाषा द्वार प्र. दं. १. भंते! (एक) नैरयिक भाषाचरम की अपेक्षा से चरम है या अचरम है ? उ. गौतम ! वह कथंचित् चरम है और कथंचित् अचरम है। दं. २ ११, १७-२४. इसी प्रकार निरन्तर (एकेन्द्रिय दण्डकों को छोड़कर) वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. दं. १. भंते ! ( अनेक) नैरयिक भाषाचरम की अपेक्षा से चरम हैं या अचरम हैं ? उ. गौतम ! वे चरम भी हैं और अचरम भी हैं। द. २११, १७-२४ एकेन्द्रिय दण्डकों को छोड़कर इसी प्रकार निरन्तर वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। (५) प्र. आनपान द्वार दं. १. भंते ! (एक) नैरयिक आनपान (श्वासोच्छ्वास) चरम की अपेक्षा से चरम है या अचरम है ? उ. गौतम वह कथंचित् चरम है और कथंचित अचरम है। दं. २-२४. इसी प्रकार निरन्तर (एक) वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. दं. १. भंते ! ( अनेक) नैरयिक आनपानचरम की अपेक्षा से चरम हैं या अचरम हैं ? उ. गौतम ! वे चरम भी हैं और अचरम भी हैं। दं. २-२४. इसी प्रकार निरन्तर वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए। (६) आहार द्वार प्र. दं. १. भंते ! (एक) नैरयिक आहारचरम की अपेक्षा से चरम है या अचरम है ? उ. गौतम! यह कथंचित् चरम है और कथंचित् अचरम है। दं. २-२४. इसी प्रकार निरन्तर (एक) वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. दं. १. भंते ! ( अनेक) नैरयिक आहारचरम की अपेक्षा से चरम हैं या अचरम हैं ? उ. गौतम ! वे चरम भी हैं और अचरम भी हैं। दं. २-२४. इसी प्रकार निरन्तर वैमानिक देवों पर्यन्त कहना चाहिए। (७) भाव द्वार प्र. दं. १. भंते! (एक) नैरयिक भावचरम की अपेक्षा से चरम है. या अचरम है ?
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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