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________________ समुद्घात अध्ययन १६८७ २. कसायसमुग्घाएप. दं. १. एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स णेरइयत्ते केवइया कसायसमुग्घाया अतीता? उ. गोयमा ! अणंता। प. भंते ! केवइया पुरेक्खडा? उ. गोयमा ! कस्सइ अस्थि, कस्सइ णत्थि। जस्सऽत्थि एगुत्तरियाए जाव अणंता। प. दं. २. एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स असुरकुमारत्ते केवइया कसायसमुग्घाया अतीता? उ. गोयमा ! अणंता। प. भंते ! केवइया पुरेक्खडा? उ. गोयमा ! कस्सइ अस्थि, कस्सइ णत्थि। जस्सऽस्थि सिय संखेज्जा, सिय असंखेज्जा, सिय अणंता। दं.३-११.एवं जाव णेरइयस्स थणियकुमारत्ते। पुढविकाइयत्ते एगुत्तरियाए णेयव्वं, एवं जाव मणूसत्ते। वाणमंतरत्ते जहा असुरकुमारत्ते। २. कषाय समुद्घातप्र. दं. १. भंते ! एक-एक नारक के नारक पर्याय में कितने कषायसमुद्घात व्यतीत हुए हैं ? उ. गौतम ! अनन्त हुए हैं। प्र. भंते ! भविष्य में कितने होने वाले हैं? उ. गौतम ! किसी के होने वाले हैं और किसी के नहीं होने वाले हैं। जिसके होने वाले हैं, उसके एक से अनन्त पर्यन्त होने वाले हैं। प्र. दं.२. भंते ! एक-एक नारक के असुरकुमारपर्याय में कितने कषायसमुद्घात व्यतीत हुए हैं ? उ. गौतम ! अनन्त हुए हैं। प्र. भंते ! भविष्य में कितने होने वाले हैं? उ. गौतम ! वे किसी के होने वाले हैं, किसी के नहीं होने वाले हैं। जिसके होने वाले हैं उसके कदाचित् संख्यात, कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त होने वाले हैं। दं. ३-११. इसी प्रकार नारक का स्तनितकुमारपर्याय पर्यन्त में (अतीत-अनागत कषायसमुद्घात) समझना चाहिए। नारक का पृथ्वीकायिकपर्याय में एक से लेकर अनन्त पर्याय जानना चाहिए। इसी प्रकार मनुष्यपर्याय पर्यन्त समझना चाहिए। नारक के वाणव्यन्तर पर्याय में असुरकुमार पर्याय के समान जानना चाहिए। ज्योतिष्क देव पर्याय में अतीत कषायसमुद्घात अनन्त हैं। अनागत कषायसमुद्घात किसी के होंगे और किसी के नहीं होंगे। जिसके होंगे, उसके कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त होंगे। इसी प्रकार वैमानिकपर्याय में भी कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त होंगे। असुरकुमार के नैरयिकपर्याय में अतीत कषायसमुद्घात अनन्त होते हैं। अनागत (कषायसमुद्घात) किसी के होंगे और किसी के नहीं होंगे, जिसके होंगे उसके कदाचित् संख्यात, कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त होंगे। असुरकुमार के असुरकुमारपर्याय में अतीत (कषायसमुद्घात) अनन्त कहे हैं। अनागत एक से लेकर अनन्त पर्यन्त कहने चाहिए। दं. २-२४. इसी प्रकार नागकुमार पर्याय से लेकर वैमानिक पर्याय पर्यन्त जैसे नैरयिक के लिए कहा है वैसे ही कहना चाहिए। इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्याय पर्यन्त भी यावत् वैमानिक पर्याय में पूर्ववत् कहना चाहिए। जोइसियत्ते अतीता अणंता, पुरेक्खडा कस्सइ अस्थि, कस्सइ णत्थि। जस्सऽस्थि, सिय असंखेज्जा, सिय अणंता। एवं वेमाणियत्ते वि, सिय असंखेज्जा, सिय अणंता। असुरकुमारस्स णेरइयत्ते अतीता अणंता। पुरेक्खडा कस्सइ अस्थि, कस्सइणत्थि। जस्सऽत्थि सिय संखेज्जा, सिय असंखेज्जा, सिय अणंता। असुरकुमारस्स असुरकुमारत्ते अतीता अणंता। पुरेक्खडा एगुत्तरिया जाव अणंता। दं.२-२४. एवं नागकुमारत्ते निरंतरं जाव वेमाणियत्ते जहाणेरइयस्स भणियं तहेव भाणियव्वं । एवं जाव थणियकुमारस्स वि जाव वेमाणियत्ते।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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